हाँ,
हाँ,
मेरे विदों में एक मातर्व के पहार
सोहन से
मेरा प्यारा मारा
तुम रचना
तुम तो कहती जी
के मेरा जैसा कोई दोस्रा नहीं
मुझे देख दे देख दे रात हो जाती थी
अब जो मुरके देखता हूं
तो साहर भे तेरे बैर के निशान भी नहीं
मेरी दिल की धडडडडडड में
दूर दूर विरानी है
जब भी देखता हूं मैं राव को जंग की तरफ
मेरी ही नजर से बादल चाजाते
तेरे प्यार को इस कदर चाहा मैंने
कि अब तेरी चाह सचाहत को चाहता हूं
मेरे इशक की इंतहा कुम्र के देख हर कदम दिवानवार चाहता हूं
उन्हें बहुत दूर का फैसला करकर
क्या पता था दो कदम पर ही रूट जाएंगे
तमाम उम्र उनको मनाने में गुजरेगी
हम तो अपने आप से ही चले जाएंगे