एक दिन एक शोहर अपनी बीवी से कहने लगा
बेगम, रात में मैंने एक अजीब और गरीब खाब देखा
मेरी शादी हो रही थी खाब में, मैं दुल्हा बना हुआ था
फिर मैं दुल्हन के कमरे में गया
और मैंने दुल्हन का जैसे ही गुंगट उठाया, मैं बेहोश हो गया
तो बीवी कहने लगी, क्यों, क्या वो इतनी बच्चुरत थी
तो जवाब दिया शोहर ने, नहीं, वो तो तुम थी
वही शक्स एक दिन अपनी बीवी बच्चों को साथ लेकर
खवाली सुनने की कातिर, खवाली के मैदान पहुंचा
तो वहाँ पर औरतों के लिए पर्दे का खास इंतजाम किया गया था
अपनी बीवी बच्चों को पर्दे के पीछे बिठा कर
वो मर्द लोगों में आकर बैड़ गया
तो वहाँ पर इत्तिफाक से खवाल साहब एक ही मिस्रा बार बार दोहरा रहे थे
वो यूं कह रहे थे
पर्दे के पीछे क्या है? पर्दे के पीछे
पर्दे के पीछे क्या है? पर्दे के पीछे
ये सुनकर वो शक्स को घुसा गया। वो शक्स घुसरे से कहने लगा।
अबे, खुवाल साब, होश बहु, कितने बार बोलता है, पर्दे के पीछे क्या, पर्दे के पीछे क्या है, पर्दे के पीछे तो तेरे मा बेहने बिटे हैं।
अब सुनिए थक महा थक दो मशूर चोर थे ये दोनों आपस में दोस्त है एक आएक अपने दोस्त के घर पर महा थक आकर पहुंचा
कौन वा मही रहे खोल बा दराजा
एक हुरिशिद
छुसी कान जुवह बहुत लोस्त बस में �
सब्सक्राइब
आधे
आधे
आधे
देगे, आज मेरा दोस्त बिर्यानी को तो बड़ी अर्मान से खाता सो, असन घी दाल को, बिर्यानी पका को, मेरे दोस्त को पेट भर को खला को, आज शाम को यहां चाता है, सुबक जाता है, आ वही साच हो अंदे जी, अब इस जाको पका चूँ, आ जल्दी जाक पका तू, �
आ बेट बाठख, आ, बोल गई, क्या बा सब अच्छे हैं क्या बा, क्या कि भी, धन्दे दरा कम चल रहें, प्रदार है क्या की, रंदे रंदे, उसके वास्ते मैं बुम्डिया मारिया से तू जे, आ जार यहां धन्दे अच्छे चल रहें करको, आ, ओ, देखें खड़, मै
गीवा महाठक, क्या तेरे घर में सुनने के रिकाबीण हैना।
मैं बोल नहीं तुझे।
ये गवं गया स्तंपोस है, सुनने के रिकाबीण लिया अबा मैं।
बड़ी चाहिए।
क्याँ बीरीयानी क्या है ओह।
बीरीयानी भोज़र है।
अब मैं तो रही था यह खुरशीत या जी हो विशान दाल दिया लगे सो जाने पांप ठक को आया है उन्हें भी हां वहीं
सच करो जी आप सो जाओ करना है जा बाक सो जा जाबा तू एक बेर सीट दिया भावा बेर सीट का तरफ अगर शीघ्र अलयो जी
जी, उठो जी
जी
क्या आ गये वो
उठो जी
क्या आ गये वो, नीन में उठाल रही है
जी, हमारे घर में
वो सुनने के रिकाबियां रातको
तुम्हारे दोस्त को काड को दिये नहीं ठक को
आ
वो दो सुनने के रिकाबियां में दिस ली नहीं जी
क्या जी हो गये सो
दो भी दिसरी ने
नहीं जी
मालम छड़ का
मैं जाक देखतू
क्या ये गुड़ ग्यांतलकाज भिग्गा है इसके पावा
हमारे गौवं के तलाग में च्रेखे इसने
बहुत दूर काम गया ने
हुर्षित
क्या जी हो
हमारे गौवं के तलाग में
छपा काया रिकाबिया
मैं जाक उठाला कातू
जल्दी जाक उठाला का जाओ जी
नाश्टा काडेंद क्या जी
काड को देखे
आबा ठैक
नाश्टा करले आबा
बूद भी लग रहे हैं मन जा
ये महा ठैक
क्या बावा
दो दो जोडी हैं क्या तेरे हाँ
सुनने के रिकाबिया
काक के वा दो जोडी
रात को तुझे ख़ाड को दे नी बिर्या नी
सुनने के रिकाबिया मैं
वो एकी जोडी है थे सो
वो तु तलाग में छपाया था नी
वो जाक उठाला का यास नी
आहा रे
लाइक हम दो सना बेशक उसी की जात थे
खबजा ए खुदरेत में जिसकी सारी काईना थे
या इलाई तू ही कुल का मालिको मुख्तार है
जरे जरे से तेरी तोखीर का इजहार है
हसरते लेकर मदीना जाने वाला चाहिए
हसरते लेकर मदीना जाने वाला चाहिए
गोगर मकसूद मुनसे पाने वाला चाहिए
आस्तां पर उनके सर टुकराने वाला चाहिए
हाँतिन के सामने
हाँतिन के सामने
के सामने फैलाने वाला चाहिए क्या नहीं देते महुम्मद लाने वाला चाहिए
क्या नहीं देते महुम्मद लाने वाला चाहिए
तो हसरते लेकर मदीना जाने वाला चाहिए
हसरते लेकर मदीना जाने वाला चाहिए
पक्र आदम रुषक यीसा मालिक हर दूसरा
बाहते कौनेशाहा अन्बिया बहरे यता
ये हकीकत थे मेरे सरकार थे बहरे यता
भीच देकर साइलों को खुद ही देते थे दूआ
मेरे आगासा करम फर्माने वाला चाहिए
मेरे आगासा करम फर्माने वाला चाहिए
जो महब्बत से न वाखिब हो वो कोई दिल नहीं
उनके दर से लेके कुछ आये न वो साहिल नहीं
रहबरे जिसका न हो मिलती वो से मंजिल नहीं
मिलना बंदे को खुदाते सहल है मुश्किल नहीं
हां अगर दर्ते कोई पहुँचाने वाला चाहिए
हां अगर दर्ते कोई पहुँचाने वाला चाहिए
हस्रते लेकर मधीना जाने वाला चाहिए
मेरे आखा और मेरे सरकार की है शान क्या
ये कुछ ऐसा राज है
अब तक ना दुनिया पर खुला नाम आहमद और आहत में फर्क है बस मीम का
एक हो जाते हैं दोनों मीम को कर दो जुदा
इस महों में को कोई समझाने वाला चाहिए
इस महों में को कोई समझाने वाला चाहिए
हसरते लेकर मदीना जाने वाला चाहिए
आओ जुदा दिकलाती है हर चे रसूल अल्लाह की
हर जगा जल्बान माई है रसूल अल्लाह की
हर जगा जल्बान माई है रसूल अल्लाह की
जान निसारे मुस्तफा था नाम खालिद बिन वलीद
शहर मैदा खाजी इस्लाम खालिद बिन वलीद
वाखी दस्ते करम उन पर रसूल अल्लाह का था रद की जानिब से लखब मशहूर सैफ उल्लाह था
लड़ रहे थे जंग यरमोक में बड़ी ही शान से लड़ते जाते थे खदम हटते न थे मैदान से
लड़ते लड़ते आपकी टोपी एचाने गिर गई टोपी गिरना था के खालिद की नजर भी फिर गई
तेख बारी छोड़ दी एक बात आई ध्यान में ढूंडने टोपी लगे वो जंग के मैदान में
देखा लोगोंने जो खालित को परेशा हाल हैं
आंकनन मुत्रा है च्हिरा, सरके बिक्रे बाल हैं
सब सहाबा ने कहा, मैदान कारेजार है
तेग और तलवार की झनकार ही झनकार है
गादियोंने जान की बाजी लगादी है यहां
काफिरों ने जलते शोलों को हवा दी है यहाँ
शोला ये एहसास क्यों खालित तुमारा सर्द है
जो ख़दम पीछे हटा ये जंग में ना मर दे
हर तरफ हंगामा है माशर है गुल है शोर है
जंग का नक्षा है के दुश्मनों का जोर है
पढ़ रही है तैग बिजली के तरह हर डाल पर
क्या ख़दा का है तमाचा जिन्दगी की गाल पर
गर्म है मैडान जंग तीरों की भी बोचार है
सब शिकन माहो लिख यलगार ही यलगार है
आज है इसलाम की नामों सो इजदत का सवाल
ऐसे आलम में है खालिद तुमको टोपी का ख्याल
एक टोपी की हकेखत क्या है इस मैदान में
क्यों खलल अन्दाज है ये जजबा ये इमान में
लगिन इन बातों का खालिद को हुआ ना कुछ असर
ढूनते ही जा रहे थे अपने टोपी को मगर
दमातन कुछ देर में खालिद की टोपी मिल गई
जोश में खालिद बड़े दिल की कली जो खिल गई
नारा ये तक्बीर मारा खुवत ए इमान से
घुस पड़े मैदान जंग में फिर बड़े अरमान से
दुश्मनों की सफ की सफ एकान ही में चीर दी
दुश्मनों की फोज में मचने लगी एक खलबली
जो भी आया सामने सर सर बुढाते बढ़ गए
याने सईफुल्लाह की खुवत दिखाते बढ़ गए
कामियाबी गाजियों के नाम के हक में हुवी
जंग यर्मों की फता इसलाम के हक में हुवी
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