Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650
कि अ
अधिकत्मत को पहचानू तुम महान हो हरमान चारीशा में एक चौपाई है आपन तेज शमारो आप तीनों लोग हांकते कांपए
आपन तेज शमारो आप तीनों लोग हांकते कांपए अपने तेज को शमालू अपनी शक्ति को शमालू स्वयं को पहचानू तुम क्या हो
कि कितने लोग अपने आपको भी भूल गई कि मैं कौन हूं
और स्वयं को भूल जाओ
है तो जीवन में दुख नहीं मिठेगा बहुत दुखी रहो गया कि 20 जुलाहें कि किसी मेला में घूमने गए
मेला से घूमकर लोटे तो रास्ते में एक नाला आता था नाला में एक जुलाहां डूब गया कि 19 जुलाहें बचे तो
आपको नाला की किनारे ब Fact रो रहे थे कभी झाल वहां पर निकले वह चुलाहां को रोता हुआ देखकर के कभी
सामस्थी �illon हो जाए जो दुखी को देखकर दुखी हो जाए सुखी को देखकर सुखी हो जाए वह शांतरी भगवान होता है
है पर दुखेन यह दुखी सुखो यस्व परस्त्रियाः संसारे यश्मिन साहद एक घया साथो चाथ जो हर्री
शोइषज़ पदंपुराण का इस लोक है पदंपुराण की रिशी ने कहा है जो दूसरे के दुखों में
द्रिवित हो जाता है, पिगल जाता है, और दूसरों की सुखों में प्रसन्न होता है, उसे साथ छात हरी समझना चाहिए, इस दर्ती पर वो भगवान का रूप होता है।
ज्यादातर लोगों का मन ऐसा होता है
दूसरों को दुखी देख करके लोग प्रसंद होते हैं
और दूसरों को सुखी देख करके लोग दुखी होते हैं
मनोशे की मन में बड़ी ईर्शा काम करती है
लेकिन जिसका मन दूसरों को सुखी देख करके खुश होता है
है और दूसरों को दुखी देखकर के दृवित हो जाता है वह हरी भगवान का रूप होता है कि पर आया दर्द अपनाएं उसे भगवान
कहते हैं किसी के काम जो आएं उसे इंशान कहते हैं किसी के काम जो आएं उसे इंशान कहते हैं
पर आया दर्द अपनाएं उसे भगवान
भगवान कहते हैं उसे भगवान कहते हैं उसे भगवान कहते हैं कबीर शाहब अभी चुपके से छुट्टी दूँगा
बस पांच मिनट कबीर शाहब उन जुलाहों को दुखी देख करके उनके साथ में बैठ करके पूछने लगे क्यों दुखी हो
जुलाहों ने कहा हमारा एक साथी जुलाहां डूब गया नाला पे
कबीर साहब ने कितने जुलाहे हो
बले बीश जुलाहे थे उननीस ही रह गए एक डूब गया
कबीर साहब ने कहा गिनो गिना उननीस निकले
फिर जुलाहे रोने लगे कि एक मेरा साथी डूब गया
कविर शाहब ने कहा मैं गिन देता हूँ
कविर शाहब ने गिना एक, दो, तीन, चार, पांच, शे, साथ, आठ, नौ, दस, ग्यारा, बारा, तेरा, चोदा, पंदरा, सोला, सत्रा, अठारा, उन्निस, बीस
कविर शाहब ने कहा बीस पूरे हो तू, कम नहीं हो
जुलाहे रोने लगे कि हम कम है, एक डूब गया, हमको भरमित मत करो
कविर शाहब ने कहा फिर से गिनो, तो उन्होंने फिर से गिना, एक, दो, पंदरा, सोला, सत्रा, आठारा, उन्निस
अरे हम उन्निस हैं, प्रभू, बाबा क्यों परिशान करते हैं, एक डूब गया मेरा साथ
को नहीं जुलाव ने
कहा आपने को नहीं कंता हूं बाकी सब को दिया था मेरी दूबा नहीं है आपने को ना छोड़ देगा है
रोकार है एक वह यह जब ने तुम अपने को कर दो तो पूरा हो जाएगा यार कहें यह मनुष्य दुनिया इस तरह में
गिंती लगाता. मेरे पास कितने एकड़
जमीन है. दुकानों की गिंती लगाता है.
शाडी की गिंती लगाता है. लाडी की गिंती
लगाता है. बाड़ी की गिंती
लगाता है. सब सामान की गिंती
लगाता है. गाड़ी की गिंती लगाता है.
लेकिन इन्शान अपने आप की गिंती नहीं लगाता
कि मैं भी तु हूँ इस संसार में
इसलिए इन्शान दुखी रहता है
अपने को भी काउंड लेता है
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