राम चरित मानस का पावन आयोध्या कांड सुनाते हैं
कैसे हुआ वन्वास राम को आज ये तुम्हें बताते हैं
मात पिता की सेवा में तो रगुबर रहते थे हर साल
कैके मा के प्यार पूत्र थे बरतलाल गए ननी हाल
राम चंद्र से दशरत बोले मन में आते हैं ये खयाल
उमको मैं युवराज बनादू वन में तपस्या करूँ फिलहाल
राजा दशरत गुरुवशिष्ट से इसकी सलाह मिलाते हैं
कैसे हुआ बनवास राम को, आज ये तुम्हें बताते हैं
रामचरित मानस का पावन आयोध्य कान्ड since 아 gebru
कैसे हुआ बनवास राम को, आज ये तुमहें बताते हें
पिता शरी जो आग्या आपकी मुझे को भी है वो सुइकार
ऐसा कहकर कोई शल्या को जाके सुनाया था सामाचार
जाके सुनाया था सामाचार
कर लिया दशिरत ने भी जो था करना सब से सलाहो विचार
मंत्रियों को आग्या देकर कैकै भवन के पोचे द्वार
कैकै भवन के पोचे द्वार
कैकै को ये खबर लगी है दशिरत जान नपाते है
कैकै को ये खबर लगी है
दशिरत जान नपाते है
कैसे हुआ वनवास राम को तुमको आज बताते है
आज ये तुम्हें बताते है
राम चरित मानस का पावन पयोध्या कांड सुनाते है
कैसे हुआ वनवास राम को आज ये तुम्हें बताते है
कैकै की एक दासी मन्तरा दुष्टा थी अब गुण की खांड
उसे राम से वैर बडा था दशिरत को ना था अनुमान
दशिरत को ना था अनुमान
कैकै केक बडी
मन्तरा धीरे धीरे भर रही कांड
राज भिशेक राम का तेरे पूत्र की है ये मृत्य समाण
अपने भरत को राजा बनाले बोले उसे जच जाते हैं
गोप भवन में गई कैकै फेक दिये थे हार सिंगार
मुर्छित जैसा ढोंग रचाया डशरत राजा आये द्वान
बोले हुआ तुम्हें क्या चाहिए मैं सेवादार
कैकै बोली दो वर दे दो अगर आपको मुझसे प्यार
जो चाहती हो
मांगो राणि डशरत यूं समझाते हैं
कैसे हुआ वनवास राम को तुमको आज बताते हैं
आज ये तुम्हें बताते हैं
चरित मानस का पावन आयोध्या कांड सुनाते हैं
कैसे हुआ वनवास राम को तुमको आज बताते हैं
यूं समझाते हैं
भरत को राजबना राम चंद्र को दो वनवास
वरना मैं विश पीके मरूंगी कर जाऊँगी सत्यानाश
कर जाऊँगी सत्यानाश
मुर्छित होकर गिरे थे डशरत मुश्किल आया
उनको सांस
राम बिना तो जी नहीं सकता होगा तुमको भी विश्वास
कैसा वर ये मांगा राणी डशरत यूं चक्राते हैं
कैसे हुआ वनवास राम को तुमको आज बताते हैं
सत के बनदन बनदे ते डशिरत अपने पास बुलाए राम
कैकैने ठग लिया है मुझको हो गया बेटा उल्टा काम
उनको वन में जाना होगा राज समहले भरत तमाम
जैसी आग्या पिताजी तुम्हरी राम चंड्र ने किया प्रणाम
राम चंड्र ने किया प्रणाम
कैसे हुआ वंवास राम को आज ये तुम्हे बताते हैं
परित मानस का पावन आयोध्या कांड सुनाते हैं
कैसे हुआ वनवास राम को आज ये तुम्हें बताते हैं
अगर
आयोध्या नगरी चर्चा छिर गई
जैसे फैले वन की आई
कैकै को सब गाली कहते
कैसी आउरत है निरभाग
कैसी आउरत है निरभाग
महलों बीच उदासी छाई
फीके पड़ गए रंग और राइ
राम चंद्र को छोड सभी को
जैसे डस गया काला नाँ
जैसे डस गया काला नाँ
वन का राज पाकर रघुवट मन ही मन हर्षाते हैं
वन का राज पाकर रघुवट मन ही मन हर्षाते हैं
ದಿನದಸ ದಹವನಿಂದವಿದ ಭಜದರದ ವದನದದದ ಆಸವರದದಧರ
ಕತವದದ ಈವಟಗಳದದ ಸಭಚಮದದ ಕಥತಕರತ ಈವಟಗಳದದ ಈವಟಗಳದ �
माता सुमेत्रा और कौशल्या खाये बेटी
हिरदे बाण
राम जी बोले आज्या देदो मा करो ना मन में मलाई
अनलाल भी दे ये ब्यान तीनो चलेंगे वन को भईया जैसा चाहे हरी भगवान
जैसा चाहे हरी भगवान
सत्य धरम के रखवाले हम बिलकुल ना घबराते हैं
कैसे हुआ वनवास राम को आज ये तुम्हें बताते हैं
राम चरित मानस का पावन भयोग्या कांड सुनाते हैं
कैसे हुआ वनवास राम को आज ये तुम्हें बताते हैं
जो सोचा था कहके इन हो गई उसकी पूरन बाद
बागी सब के नैनों से तो असुवन की हो रही बरसाद
भरतलाल अब राजा बनेगा कैसी समय की है करमाद
राम चंद्र अब वन को जाएं सीता लक्षमन होंगे साथ
सीता लक्षमन होंगे साथ
जो
वन को जाएं सीता लक्षमन होंगे साथ
वन वास का पावन आयोध्या कांड सुनाते हैं कैसे
हुआ वन वास राम को आज ये तुम्हें बताते हैं
राजा जैसे वस्त्र जो पहने उनको वही उतारा था
वन जाना तो देर है कैसी मन में यही बिचारा था
मात पिता सब
शोका कुल है गम ही एक सहारा था
चोदबरस अब दूर रहेगा जो आखों का तारा था
जो आखों का तारा था जो आखों का तारा था
राजा दशरत वेवस होकर नैनों नीर बहाते हैं
कैसे हुआ वनवास राम को आज ये तुम्हें बताते हैं
आज ये तुम्हें बताते हैं
शरित मानस का पावन आयोध्या कांड सुनाते हैं
कैसे हुआ वनवास राम को आज ये तुम्हें बताते हैं
शाम को सूरज धल जाते जाते हैं
अपनी गती से चलते हैं
मरे आधा में बन्धे राम जी इदर उदर ना हिलते हैं
यानगरी में तो गम के दिये जलते हैं
अब जाने की
आग्या देदो राम जिशी शिनवाते हैं
विवार्ड गर्ना कुम्जू इनINSPHARE
उत्र भिच्छडे राजा दशिरत पीडा सेहना पाएथे
कई कई सागर भर सकते हैं इतने आसु बहाएथे
इतने आसु बहाएथे
जाव्याकुल बोल न सकते रगवर ने समझाएथे
यश जाएगा निन्दा होगी ऐसा कहके मनाएथे
ऐसा कहके मनाएथे ऐसा कहके मनाएथे
बाज़ पकड फिर राम की दशिरत अपने पास बिटाते हैं
बाज़ पकड फिर राम की दशिरत अपने पास बिटाते हैं
कैसे हुआ वनवास राम को आज ये तुम्हें बताते हैं
आज ये तुम्हें बताते हैं
राम चरित मानस का पावण पयोध्या कांड सुनाते हैं
कैसे हुआ वनवास राम को आज ये तुम्हें बताते हैं
पूट पूट कर रोई नगरी राम लखन का देखा भेश
मृत प्राय से होकर बेट देखो आयोध्या नगर नरेश
कहके इं उस पापिन ने ये ऐसा पेदा
किया कलेश
सारी नगरी व्याकुल हो गई नहीं चली ती किसी की पेश
नहीं चली ती किसी की पेश
कोई
डंकिनी कोई पाफिन कै कै को बतलाते हैं
त Atari api पांड सोना थे।
रत में चड़के चले नगर से फिर से मच गया हाखा
बुरे शकुन तो हुए लंका में आयो धमे था शोकन्ध काई
कहके इ मुस्काई रही बाकी रोए थे जार जार
कैसे हुया वनवास राम को आया
*
देवलोक से सभी देवता शोक करें मुस्काए रहें
अब दैतियों का नाश करेंगे राम जीवन को जाए रहें
राम जीवन को जाए रहें
दुखडा है इस बात का सब को कैसा भेश बनाए रहें
गुरु करण सिंग कमल सिंग ये रहस खास बताए रहें
रहस खास बताए रहें
देखत देखत रत आखों से ओजल ही हो जाते हैं
कैसे हुआ वंवास राम को आझ ये तुम्हें बताते हैं
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