और ये कथाएं सावधान करती हैं, निकालती हैं, चक्कर से बाहर, पार लगाती हैं कथाएं, आपसे कहा था सत्संग की ये नाव है, जिसमें आप बैठें, अगर भाव से बैठ जाएं ना, कैसे, अगर ये कथा हमारे अंदर बैठ जाएं, तुम पार हो जाओ,
और बड़ी अच्छी एक बात संतों ने कही ये, क्या जिसके जीवन में भगवान की भक्ती हैं, जिसके जीवन में संत हैं, जिसके जीवन में सत्संग है, वो कलियोग में होकर भी कलियोग में नहीं रहता,
उसको कलियोग प्रभावित नहीं कर पाता,
तो कहते हैं क्या उसके जीवन में तो हमेशा कृष्ण युग रहता है
किसके जीवन में जो हमेशा भगवान की भक्ति करता आप और हम हैं कल युग में पर फिर भी यदि भगवान
में जुड़े रहें भगवान की भक्ति करते रहें तो कल युग में नहीं हम कृष्ण युग मैं हैं और मन यदि लग
जाए तो कृष्ण युग ही रहेगा
मैं एक ऑर कितने भक्तु हुए हैं कल युग में इसो जिन्होंने कृष्ण युग ला दिया
और किसी को आप जानते हो ना जानते हो
पर मीरावाई को तो जानते हैं ना
नाम सुना है ना
मीरावाई कल युग में आयी
पर कल युग का प्रभाव नहीं हुआ मीरावाई पर
मीरावाई क्रिष्ट ने युग ला दिया
मीरावाई
भगबान कृष्ण को अपना सर्वस्तु मान लिया और यह बात इसलिए कह रहा है क्योंकि संतों ने यह कह गए हैं क्या
कि कथा भगबान की कहीं भी किसी भी काल में सुने उनके लिए कल युग नहीं कृष्ण युग रहता है नर्शी हुए
भक्तों के लिए सदेव कृष्णियोग अरे कल युग कहां है तो आपने पता सुनाना भी कि कल युग का बास तो जहां
हिंसा हो जुआ हो व्यविचार हो मधिरापान ऐसी जगह कल युग रहता है जहां भगवान की भक्ति होती है और यहीं से
तो यह मतलब नहीं इधर अपने घर चलो जरां अपने अपने आँख बंद करके जिस घर का बातावरण धक्ति नहीं होता है उस
घर में कृष्णियोग होता है राम युग होता है कल्योग नहीं हों और इसलिए अपने घर का बातावरण ऐसा रखो बध रीम
अब भक्ति में है के नहीं कैसे देखे
तो उसका तरीका ये बताया है
कैसे
कि आपके घर का वातावरण यदि ऐसा है
कि किसी भी समय कोई भी आ जाए
आपको सक्षाना ना पड़े
तो समझ लेना कृष्ण युग है
भक्ति में वातावरण
हमेशा
घर का वातावरण ऐसा हो वक्ति में
घर के सभी सदस्य खूब भगमान की वक्ति करते हो
कलियू का सर नहीं करता
अरे बात कर रहे है मीरा बाई की
कितना कष्ट सहन किया मीरा बाई ने
पर फिर भी
कनईया को अपना सब कुछ मानती थी
ये है सच्ची वक्ति
और पार तब होंगे जब मन लगेगा
प्रियास एक ही है
मन लगेगा
पर ये जो इतना सब सुना रहे न अपन किसको सुना रहे
हाँ
मन को
एक समस्य और बताए
यहां से कोई बात बोलते न
तो पड़ोसी की तरफ मत देखा कर
हाँ
यहां से कुछ बोलना तो पड़ो सकते हैं यह इस पर सूट हुआ है। अरे खुद को देखो। यही तो गड़बड़ी है। हमें अपनी कमिया नहीं दिखती। संसार में बात निकालने के जाए ना कमिया डेर मचा दे। खुद की कमि ढूंढो दूर करो। क्योंकि अब तक क
कमी है ना तब तक काम नहीं बनेगा। और यह कथाएं सत्संग, दोहे, चोपाई, द्रस्टांत यह सब क्या है। कई लोग सोचते होंगे कभी कथा सुनाने लगे कभी इदर उदर निकल जाए। एक बात बताओ। छोटे से बच्चे को दबाई देना हो तो सीधे सीधे ख
खाए क्या है। फिर कैसे देओ। उसको बारिक पीस के। कभी चाय में, दूद में, खाने में ऐसे देते ना। ऐसी सीधी सीधी दबाई दी जाए ना तो पचेगी नहीं। यह भी दबाई है। राम नाम की उसदी खरी नियत से खाए अंग रोग व्यापे नहीं महा रोग
हाँ, सूट नहीं हो। इसलिए देना पड़ता है मिला के। हाँ। और सारे की है। मन यह भी बच्चे ही है। यह सुधर जाए। भगवान में लग जाए। और यदि लग गए तो पार। और ना लगे तो बंटडार। बेकार। मन लगा।
ओर संत कहते हैं क्या। कि भगवान की भक्ति मन का तो विश्ै ही है। हा। आयू का विश्ै होता तो अभी कथा सुनेंगे। आप धूप की कितनी उमर थी पहला की कितनी उमर फिक्त है।
जाती का विशे नहीं है
जाती का विशे होता तो रेडास के क्या जाती थी
सबरी की क्या जाती थी
धन का विशे नहीं है
धन का विशे होता सब पाईसे वाले ले भगती
पर सुदामा को नहीं मिलता
भगवान की भगती
मन का विशे है
हमेशा बगवान से जोड़े रहो
सथसंग करते रहो
करते रहो
करते रहो
नाम लेते रहो
क्यों
कब मन लग जाए
काम बन जाए
प्रयास करते रहो
और मन लग जाए तो तुरंट काम बन जाता है
पर समय का प्रभाव देखो
हो मन अच्छे काम में कम लगता है यह जगह आके बेट जाओ ना तो समय का प्रभाव है इसे कई है बार-बार घड़ी
देखें कब चार बजे हां क्यों मन नहीं लगता ना अब आके बेट तो गए उठकर जाओ तो पड़ोसन नाम रखें इसका मन नहीं लग
मन लग जाए तो पार पर समय का प्रभाव मन अच्छे काम से
अलग जल्दी भागता है और ऐसा ही पावन चरित्र है पावन कथा है शिवसती संबाद की है
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