फिर भी ना मुझती प्यास
मिर्था ही रही क्यूं तुझे पाने की ये आज
महरबानिया हम पे कर लो गुफटगू को छेड़ो
खामुशिया जम गई है कुछ हसीन किस से भर लो
इंतजार में तेरी बेताबी वढ़ती है
हर दिन पल इन शाम और सहर खुमारी रहती है
रूट होना बेवजा पासाना तु जरा
लबजे दोस्ती का परदा ढादो अब यहाँ
सोचते है कम भुलाते है हर दम भटकते रहते है गलियों में गुमसं
पास है नदिया फिर भी ना बुजती प्यास मिडता
ही नहीं क्यों तुझे पाने की ये आस गुमशुदा
गुमशुदा गुमशुदा मेरे रूबर उठे यहाँ
रुक मोडली तेरी सासोंने फामोशी आ तेरी बातों में
जर्नों सायू बरसना बंद कर दो आसमा