प्रियमित्रों
आज हम जाने नौ ग्रहों मेंसे दूसरे क्रमांक के ग्रह चंद्र के बारे में।
चंद्रमा यमुना नदी से उद्भावित हुए हैं। इनका गोत्र अत्री है।
जाती वैश्ष वर्ण शुक्ल।
दक्ष प्रजापती की सत्ताइस कन्याओं से इनका विबाह हुआ। और यही
सत्ताइस कन्याएं सत्ताइस नक्षत्रों के नाम से जानी जाती हैं।
शुभाशुभ तत्व शुभ ग्रह। भोगकाल सवा दो दिन।
बीज मंत्र
इनका तांत्रिक मंत्र है
और इनका वैधिक मंत्र है
इनका पुरानोक्त मंत्र है
इनके मंत्रों की जब संख्या अड्टालीस हजार आट्सोच्चोरासी।
जब का समय संध्याकाल।
हवनवस्तु पलाश।
रत्न दस रत्ती का मोती।
और दान करनी की वस्तु
सुवर्ण,
चान्दी,
मोती, चावल, कपूर, घी,
चान्दी का शंक,
सफेद पुष्प,
सफेद वस्त्र,
और सफेद बैल।
तो आईए,
अब हम प्रारंब करें चंद्र कवचम।
विनियोगः अस्यश्रिचंद्र कवचस्तोत्र महामंत्रस्य गौतमरिशिः
अनुष्टुपचंदः श्रीचंद्रोदेवताः चंद्रः प्रीत्यार्थे जपे विनियोगः
समं चतुर्भुजम् वंदे के यूर मुकुतो ज्वलं
वासुदेवस्य नयनं शंकरस्य चभूशनं
एवं ध्यात्व जपे नित्यं शशीनः कवचम् शुभं
शशिहि पातु शिरोधेशं भालं पातु कलानिधि
चक्षुशिहि चंद्रमाह पातु शुति पातु निशापतिहि
प्रानं कुरुपा करः पातु मुखं कुमुद बान्धवः
पातु कंठं चमेसो मह स्कंधव जैवात्रुकस्तता
करव सुधा करः पातु वक्षः पातु निशाकरः
रिदयं पातु में चंद्रो नाभें शंकर भूशणः
मध्यं पातु सुरश्रिष्ठः कटें पातु सुधा करः
पूरु तारपतिहि पातु मुखं को जानुनी सदा
अब दिजह पातु में जंगे पातु पादविधुः सदा
सर्वान्यन्यानि चांगानी पातु चंद्रो खिलं वपुः
एतधि कवचं दिव्यं भुक्ते मुक्ते प्रदायकं
आईये,
अब हम चंद्रस्तोत्र का श्रवन करें
वेतध्यो तिरधंडधरोद्विबाहुः
चंद्रो मृतात्मा वरदहः शशांकः
श्रेयान्सिमहियं प्रदधातु देवः
दधिशंकतु शाराभं ख्षीरोधारणवसंभवं
नमामिशशिनम् सोमं
शंभोर मुकुतः भूशणं
श्रीरसंधो समुत्पन्नो रोहिनी सहितः प्रभुः
हरस्य मुकुतावासः बालचंद्रनमोस्तुते
सुधाययायत्किर्नः
पोशयं त्योशधीवनम्
सर्वन्नरस्सहेतुम्तम् नमामि सिंधुनंदनम्
राकेशं तारकेशं च रोहिनी प्रियसुंदरम्
आईये,
अब हम सुने चंद्र अश्टा विशती नामस्तोत्रम को
गौतम रिशिः विराट छंदः सोमो देवता चंद्रस्य प्रीत्यर्थे जपेविन्योगः।
विश्वन्नरस्से नमामानी शुभधाने महीपते
यानिशुत्वा नरोदुखान मुच्चते नात्रसंशयः
सुधाकरश्च सोमश्च ग्लौवरभ्जः कुमुदप्रियः
शशीहिम करो राजा
दिजराजो निशाकरः
आत्रेय इंदुहु शीतांश शुरूषधीशः कलानिधि
जैवात्रुकोरमाभ्राताः शीरुदार्नवसंभवः
नक्षत्रनायकः शंभुः शीरश्चुडामनिर्विभुः
तापहरतानभोदीपो नामान्येतानियः पठेत प्रत्यहं भक्तिसंयुक्तस्
तस्यपीडाविनश्यति तद्धिनेच पठेत द्यस्तु लभेत सर्वं
समीहितं ग्रहादीनांच सर्वेशां भवेचंद्रबलं सदां
जितिश्रेचंद्राश्टाविश्चति नामस्तोत्रं संपूर्णं
ओम् शांति हे शांति हे शांति हे ओम्