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Aanand Ka Arth Kya Hai

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Lời bài hát: Aanand Ka Arth Kya Hai

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

आनन्द की आहा, आनन्दआजकर आनन्द को बड़ा सस्ता कर रखा हैहम कहीं भी जाते हैं, किसी मिठाई वाली के दुकान पर यदि पहुँच जाएकोई मिठाई यदि हमने सेवन कर ली, तो क्या कहते हैं, आनन्द आगास्वादिस्ट भोजन यदि जिव्बा को मिल जाए, स्वादिस्ट भोजन पाने के बाद में क्या कहते हैं, आनन्द आगाकहीं बाहर यदि चले जाए, किसी रेस्टोरेंट में जाकर भोजन करें, तो क्या कहेंगे, आनन्द आगयाअरे महाराज आनंद इतना सस्ता नहीं हैआनंद क्या हैआनंद है परमात्मा का नाम आनंद धनजो आनंद के सिंदु हैऔर एक और बातइस दुनिया में इस संसार में हर चीज का उल्टा हैजैसे किधनवान का उल्टानिर्धनआज का उल्टाकलसुबह का उल्टासामलेकिन क्या कोई बताएगाआनंद का कुछ उल्टा होता हैमैं मेरी तरफ से कुछ नहीं कहूँगीआप ही बताएंगेक्या आनंद का कुछ उल्टा होता हैएक महापूरुस कहते हैआनंद का उल्टा होता है निराननतो महाराज निरा तो आपने अपनी तरफ से लगा दिया आनन्द तो जैसा कतेसा ही हैआनन्द का कभी कुछ उल्टा नहीं होतातो जो आनन्द घन है वही परमातमा स्रिकृष्ण हैसच्चिदा आनन्द रूपाए विजबोत पत्या दिहेतवेजो इस विज्व की उत्पत्ती करता हैजो इस विज्व को बनाता हैवो जब मुस्कुराता है तो इस समस्त संसार का निरमान हो जाता हैजब वो थोड़ा सा कंभीर होता है तो समस्त संसार का स्रजन होने लगता हैसंसार में ऐसा कोई नहीं है जो हुखा सोता होभगबान हर एक की देवस्था करके रखते हैंचाहे वो कहीं से भी करेभूखा किसी को सोने नहीं देताजब उसने जन्म दिया हैतो हमें अन्न भी देते हैंऐसे परमपिता परमात्माऔर जो एक बार अपनी भूखुटे को यदि तेड़ा कर लेतो इस समस्त संसार का प्रले नास हो जाता हैसमस्त संसार में प्रले आ जाती हैऐसे परमपिता परमात्मा हैताप अत्रे विनासायजो तीनो प्रकार के तापों का नास करते हैंतीनो प्रकार के ताप कोन-कोन सेआधी जही कितापआधी भूति कितापहै जो इस प्रकार के पाप हैं इस प्रकार कि ताकर सब्दीद मुक्ति हमारे भगबान सुरकृष्ण दिलाते हैंकैसे से की तौर तीन प्रकार किताप होते हैं कि यह इतना एक दैशिक दारें दूसरा हम सभी ने फसल ही महराजखेतों में जाकर फसल बोदी तो हमने हमारे देहे को कश्ट दिया तभी तो उस खेत में बीज पड़ादूसरी बात आती है देविक ताप की यदि परमात्मा की इक्षा हुई तो वर्षा अच्छी करेंगे तो हमारी फसल अच्छी होगीयदि हमारे कर्म अच्छी होंगे तो भगवान इस रितु को उसके अनुशार करेंगेतीसरी आती है बहुतिक तापयदि हमने पाप कर्म की हैं महराज तो ये जो हमारा देहे है ना जाने कौन कौन से जमाने की नई नई बीमारियां उठपन हो जाती हैलेकिन जब राम जी का राज चल रहा थाराम जी के राज में इन तीनो प्रकार के तापो को किसी ने विगर्शित नहीं किया थादेहे की देविक बहुतिक तापा राम राज का हु नहीं किया थाश्री राघ्वेंद्र सरकार के राज्य में इन तापों का नामोनिसान नहीं थाजिस प्रकार ये तीन प्रकार के ताप है ऐसे तीन प्रकार की भक्ती भी होती हैमनसहा वाचहा कर्मना, मन से भक्ती वानी से भक्ती और कर्म से भक्तीतापत्रयो विनासाय स्री कृष्णाय वयो नमाइसे सत्य सरूप, चित्य सरूप और आनन्द सरूपभगवान की चरणों मेंइस व्यास पीट से आप सभी के लिदे सेउन स्री कृष्ण को हम प्रणाम करते हैंस्री कृष्णाय वयो नमाइसे सच्चिदानन्द महनालसत् कही जोगन सेनालचित्चेतन निसकल जगमालघट घट में जो करे आनन्दाताकर नाम सच्चिदाननइसे परमपिता परमात्मासत्य सरूप के चरणों मेंहम बारंबार प्रणाम करते हैं

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