आनन्द की आहा, आनन्द
आजकर आनन्द को बड़ा सस्ता कर रखा है
हम कहीं भी जाते हैं, किसी मिठाई वाली के दुकान पर यदि पहुँच जाए
कोई मिठाई यदि हमने सेवन कर ली, तो क्या कहते हैं, आनन्द आगा
स्वादिस्ट भोजन यदि जिव्बा को मिल जाए, स्वादिस्ट भोजन पाने के बाद में क्या कहते हैं, आनन्द आगा
कहीं बाहर यदि चले जाए, किसी रेस्टोरेंट में जाकर भोजन करें, तो क्या कहेंगे, आनन्द आगया
अरे महाराज आनंद इतना सस्ता नहीं है
आनंद क्या है
आनंद है परमात्मा का नाम आनंद धन
जो आनंद के सिंदु है
और एक और बात
इस दुनिया में इस संसार में हर चीज का उल्टा है
जैसे कि
धनवान का उल्टा
निर्धन
आज का उल्टा
कल
सुबह का उल्टा
साम
लेकिन क्या कोई बताएगा
आनंद का कुछ उल्टा होता है
मैं मेरी तरफ से कुछ नहीं कहूँगी
आप ही बताएंगे
क्या आनंद का कुछ उल्टा होता है
एक महापूरुस कहते है
आनंद का उल्टा होता है निरानन
तो महाराज निरा तो आपने अपनी तरफ से लगा दिया आनन्द तो जैसा कतेसा ही है
आनन्द का कभी कुछ उल्टा नहीं होता
तो जो आनन्द घन है वही परमातमा स्रिकृष्ण है
सच्चिदा आनन्द रूपाए विजबोत पत्या दिहेतवे
जो इस विज्व की उत्पत्ती करता है
जो इस विज्व को बनाता है
वो जब मुस्कुराता है तो इस समस्त संसार का निरमान हो जाता है
जब वो थोड़ा सा कंभीर होता है तो समस्त संसार का स्रजन होने लगता है
संसार में ऐसा कोई नहीं है जो हुखा सोता हो
भगबान हर एक की देवस्था करके रखते हैं
चाहे वो कहीं से भी करे
भूखा किसी को सोने नहीं देता
जब उसने जन्म दिया है
तो हमें अन्न भी देते हैं
ऐसे परमपिता परमात्मा
और जो एक बार अपनी भूखुटे को यदि तेड़ा कर ले
तो इस समस्त संसार का प्रले नास हो जाता है
समस्त संसार में प्रले आ जाती है
ऐसे परमपिता परमात्मा है
ताप अत्रे विनासाय
जो तीनो प्रकार के तापों का नास करते हैं
तीनो प्रकार के ताप कोन-कोन से
आधी जही किताप
आधी भूति किताप
है जो इस प्रकार के पाप हैं इस प्रकार कि ताकर सब्दीद मुक्ति हमारे भगबान सुरकृष्ण दिलाते हैं
कैसे से की तौर तीन प्रकार किताप होते हैं कि यह इतना एक दैशिक दारें दूसरा हम सभी ने फसल ही महराज
खेतों में जाकर फसल बोदी तो हमने हमारे देहे को कश्ट दिया तभी तो उस खेत में बीज पड़ा
दूसरी बात आती है देविक ताप की यदि परमात्मा की इक्षा हुई तो वर्षा अच्छी करेंगे तो हमारी फसल अच्छी होगी
यदि हमारे कर्म अच्छी होंगे तो भगवान इस रितु को उसके अनुशार करेंगे
तीसरी आती है बहुतिक ताप
यदि हमने पाप कर्म की हैं महराज तो ये जो हमारा देहे है ना जाने कौन कौन से जमाने की नई नई बीमारियां उठपन हो जाती है
लेकिन जब राम जी का राज चल रहा था
राम जी के राज में इन तीनो प्रकार के तापो को किसी ने विगर्शित नहीं किया था
देहे की देविक बहुतिक तापा राम राज का हु नहीं किया था
श्री राघ्वेंद्र सरकार के राज्य में इन तापों का नामोनिसान नहीं था
जिस प्रकार ये तीन प्रकार के ताप है ऐसे तीन प्रकार की भक्ती भी होती है
मनसहा वाचहा कर्मना, मन से भक्ती वानी से भक्ती और कर्म से भक्ती
तापत्रयो विनासाय स्री कृष्णाय वयो नमा
इसे सत्य सरूप, चित्य सरूप और आनन्द सरूप
भगवान की चरणों में
इस व्यास पीट से आप सभी के लिदे से
उन स्री कृष्ण को हम प्रणाम करते हैं
स्री कृष्णाय वयो नमा
इसे सच्चिदानन्द महनाल
सत् कही जोगन सेनाल
चित्चेतन निसकल जगमाल
घट घट में जो करे आनन्दा
ताकर नाम सच्चिदानन
इसे परमपिता परमात्मा
सत्य सरूप के चरणों में
हम बारंबार प्रणाम करते हैं
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