एएक्या ये क्या..
ये क्या क्या हो राज हमने में
एक्या ये क्या..
ये वेरा है अधी ज मीमाने।
ये ये क्या?
ये साला क्या होरा सब बारे?
सोच में नोड,
दिल में कोड,
सर में बोच,
मेरे कल का अराम खोर
मेरे बोल जाके खोच, मेरी मलका करे बोर
तेरा शोर, ताला कोल, अपने सर का बड़े बोल
मूथ तो कोल और लें मुझे तू हलका
मैं जिस नजर भी देखो देखता है अजाबसा,
आँखो के इस जंगल में मैं डूटगा हूँ रासदा
जातने की आदत है अब इसका कोई लाज लाज
चाटते फिर रहेंगी ये मैल मेरे हाथ का
अनार वाले ये सब के सब बेकार साले उकार डाले,
खानों के बर्दे भाड़ डाले
पका पका के चबा चबा के हिले हैं मूथ तेरा जैसे हिलते हैं सबा के पराटे
करम करम फिर भी दिक्ते बिलकुल नरम हैं
बरम हैं साथ दोस्त को कम उच्छे करम है
पापने बनाया इसे ना मुझे कोई शरम है अपने दिमाग इसके मुकाई
हिपाप ही तो मरम है एरो को छोड़ चानी मैं पूरा सा करूं
समझ अंदासे कुट्टगू मैं सिर्फरा मैं पाकलूं ना जाने तू मेरा जनू
खोलता मेरा लहू बोलते मेरे कलम मैं भूबस एक कासे तो लिखूंगा इस जमीन पे
आवाजे आसमाने की हकुमतों के जोलजाल
और कारणामों की पढ़ी बंदी हुई है वहाँ
और कितने नामों की यमन के चोटे बच्चे फलसीन के
जवानों की इंसानों की नमाज़ पे वारता हैवान का
एमारत ही थी गिर रही बगर रहा इमान ता
वाम सारी चीखोड़ी खामोश उकमरान था कायम
अकीदा एखुदा है अबी मुसल्मान का
ये ये क्या ये क्या क्या हो रहा अजाने में
ये ये क्या ये साला क्या हो रहा जमाने में
ये ये क्या ये क्या क्या हो रहा अजाने में
ये ये क्या ये साला क्या हो रहा जमाने में
माशा है गंदा और पेल चूकी गंदगी
गौड़ अल्ला छोड़ के शैतान की एग बंदगी
अपने ही नफ से इनसान की एग जंग लगी
एक बनदा नहीं ये जमाने को जंग लगी
खुट को जो बदलो माशा भी बदलेगा
अच्छा बूरा क्या जमाना कफ समझेगा
एक दी ये समझे तो खोड़ी समझेंगे
अमल जो करो तो मामला ये सुलचेगा
नहीं कबी भी नहीं गल्लड को होने ना दूँगा
मैं सई पर गई पानी में गई
दूबती नहीं है तो पानी में गई
गई बैस पानी में हर एक कहानी में
हर बन्दा समझता मुलक का बानी मैं माफ करना गल्लड जो निकला रवानी मैं
हो जाते गुना बहुत से जवानी में जैसे के हो रहा इस दुनिया में
गल्लड देखे भी आँके हो जाती हैं वन
हग सच पे कोई भी आवाज न उठाता
इस बक की मायूसी इस बक का गंप पहले मजब फिर फिरका फिर जात ये बात
न समझा बिंते आदम इतनी सी बात के दुनिया ये फानी चार दिन की कहानी
ये मिट्टी ये खाक हम जब की ओकार हो चुकी खटम इंसानियत
ये
यह क्या
खपि ॥॥