थी जिन्दगी वो तुम जो यहाँ थे
अब तुम नहीं तो क्या जीवन
लडता था जिनकी फरीआद प़े मैं वो याद है आज दुशमन
थी ज़िनदगी वो तुम जो यहाँ थे
अब तुम नहीinvest तो ........क्या जीवन
लडता था जिںकी फरीआद पैं मैं
वहीीाद है .........आज दुशमन
अन्तर की वैठा...
ता
मैं किसको सुनाऊं सागर समंदर में डूब गया हूँ
वापिस किनारे पे कैसे मैं आओं दुश्मन जमाने का मैं बन गया हूँ
रहता था जिनकी परछाई बनके वो खुद चले रौश्मी में क्यूं जानूं
मैं जानूं ना
मैं जानूं ना
शुरुआत में लगता था सब
है कितना मुश्किल ये तुमको बताना
हो गई मोहबत एक हे नजर में
अब है तुम्हें बस अपना बनाना
हो तो गया था साँ
तेरा इशारा मिला मुझे को यूं
मिल ही गया सारा जहां
बदले सपने हकीकत में क्यूं
ये दिल की कहाने मैं किसको सुनाता बदली हकीकत तो बिखरा जहां था
पाप इसमें कैसे वो लम्हों को लाता
बीते समय को मैं कैसे हराता
पन्नों में तुमको जीत गया था
आखिर ये बाजी भी हारी क्यूं जानूना
ज़्यादा बहुत ही प्यार हो तो ये भी गलत है मेरे यारा
तब हमको कैसे पता होगा इतना तुमने भी तो ना बताया
चल तो दिये जिन्दगी से क्यों बिन बताए क्यों बिन कहे
थी चांदनी वो जब तुम यहां थे अब गुम्शदा है वो राते
मुझे.
परछाई बनके वो खुद चले रोशिनी मैं क्यूं जानूना
मैं जानूना
खुद चले रोशिनी मैं जानूना