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Bài hát vishakha me rai damodar ke pawan katha do ca sĩ Kanchan thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat vishakha me rai damodar ke pawan katha - Kanchan ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Vishakha Me Rai Damodar Ke Pawan Katha chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Vishakha Me Rai Damodar Ke Pawan Katha

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

जै स्री कृष्णा राधे राधे आज मैं आपको सुनाओंगी बहुत ही सुन्दर कहानी राई दामोदर की ध्यान से सुनना और कमेंट बुक्स में जै हो राई दामोदर की अवश्य लिखना
तो चलिए सुरू करते हैं कथा
प्राचीन समय की बात है एक गाउं में दो मा बेटी रहती थी बेटी का नाम था राई वह बहुत ही सुन्दर और सुशील थी
राई भगवान स्री कृष्ण की परमबगत थी बड़ी शर्धा और सचे भाव से भगवान स्री कृष्ण की पूजा किया करती थी
हर समय कृष्ण भगवान का नाम अपने मन में समर्ण किया करती थी
तो एक पार कृष्ण भगवान ने सोचा कि राई की प्रिक्षा ले जाए तो भगवान स्री कृष्ण ने उसकी प्रिक्षा लेने हितू
डांसरिया बेसने वाले बन कर आ गए और गली गली में आवाजें देने लगे जैसे ही वो राई की गली से गुजरने लगी तो राई अपनी मां से बोली की मा मुझे भी डांसरिया चाही
तो मा बोली कि मैं पैसे कहां से लाओ इतनी पैसे नहीं है बेटा मेरे पास
तो वो बोली कि मा बाजरी है ना वो ही ले लो बाजरी के बदले मुझे डांसरीया दिला दे ना
तो राई की मा ने कहा ठीक है बेटा ये कहे कर राई और उसकी मा बाजरी ले कर
दांसरिया बेशने वाले के पास गई और बोली कि मुझे एक दांसरिया चाहिए इसके बदले में मेरे पास पैसे तो नहीं है ये बाजरी ले लो
तो बेश बदले हुए क्रिशन भगवान उनसे बाजरी ले कर उस पर जोर से फूंक मारी तो वो बाजरी तो उठ गई और उसके जो कुछ फूस थे अंदर वो राई के आंख में चले गई तो राई जोर जोर से रोने लगी और भगवान वहां से अंतर द्यान हो गई
तो राई की मा इदर उदर देखती रह गई कि वो आखिर गया कहा उदर राई की दोनों आंखें खूल नहीं रही थी वो जोर जोर से रो रही थी तो राई की मा सोचने लगी कि इसे लेकर कहा जाओं कैसे इसके आंख से वो फूस निकालूं
तो इतने में वहाँ पर एक वेद आता है
तो वो वेद का रूप धारन किये कृष्ण भगवानी होती है
और आवाज देने लगती है कि मैं वेद हूँ
किसी को इलाज कराना हो तो करवा लो
तो राई की मा उसे भाग कर बुला कर लाती है
और कहती है वेद जी मेरी बेटी की आँख में फूस गिर गया है
अगर आप उसे निकाल दो तो आपकी अती कृपा होगी
तो यहे सुनकर वेद बने स्री कृष्ण भगवान
राई की मा के साथ उसके घर जाते हैं
और देख कर कहते हैं कि अगर तुम अपनी बेटी का विवाह मेरे साथ करोगी
तो मैं फूस निकाल दूँगा अन्यथा मैं नहीं निकालूँगा
तो राई की मा ने सोचा कि बेटी की आँखों का सवाल है
वैसे वेद है डरने की कोई बात नहीं है
आज नहीं तो कल इसकी शादी तो करनी पड़ेगी
तो राई की मा ने कहा कि हाँ तुम इसका फूस निकाल दो
इसकी आँखें सही हो जाए और मैं उसके बाद में
इसका विवाह तुम्हारे साथ करवा दूँगी
तो वेद ने राई की आँखों से फूस निकाल दिया
फूस के निकालते ही राई की दोनों आँखे बिल्कुल सुवस्थ हो गई
तो राई की मा ने दोनों की सगाई कर दी और कार्टिक शुकल ग्यार्स के दिन दोनों का विवहबी निष्चित कर दिया
अब मा सोचने लगी की बेटी को क्या दूँगी और साधी में क्या समान कहां कहां से लाओंगी और कैसे मैं इतनी साधी की तयारीया करूँगी
सोचते सोचते वह है सबसे पहले सोनी की दुकान पर जाकर बोली
कि सुनार मेरी बेटी के लिए हार बना दो और लोंग और बिच्चे भी घड़ देना
तो सुनार बोला कि मुझे समय नहीं है
मैं तो भगवान स्री कृषिन की शादी है उनके लिए गहने बना रहा हूँ
तो फिर वो हलुआई के पास जाती है कि सादी के लिए मिठाई तैयार कर दो
तो वो भी मना कर देता है कि मुझे तो कृषिन भगवान की शादी में मिठाई तैयार करनी है
इसी लिए मैं नहीं बना सकता
बन्या के यहां जाती है सामान के लिए
तो बन्या कहता है
मेरी दुकान का सारा सामान तो
कृषिन बगवान की शादी में जाएगा
जहां जहां वो गई
वहां से उसे वही जवाव मिला
तो सब से जवाब लेकर
वो दुखी होकर घर आ गई और सोचनी लगी कि अब क्या करूँ
शादी के दिन नजदी का रहे हैं बिना तैयारी के शादी कैसे करूँ
आखिर वो पल भी आ गया जिस समय उसकी शादी होनी थी
सारे गाम वाले सोच रहे थे कि राई की माने कोई भी तैयारी नहीं की फिर इसकी शादी कैसे करेगी
आज तो इसकी शादी है इतने में डोल और बाजे बजने लगे
तो सारे गाउं के लोग इकठा हो गए देखने के लिए
कि राई की बारात तो आ गई है और उसकी मासी कोई भी तैयारी नहीं की
अब कैसे होगा
तो जैसे ही राई का दुल्ला तोरन पर आता है
और राई की मा वहाँ पर सुआगत के लिए जाती है
तो देखती है कि सामने दुले के रूप में
श्यम भगवान स्री कृषन जी खड़े हैं
तो उन्हें देखकर वो फूली नहीं समाती
और देखती है कि उसकी जोंपडी तो महल में बदल गई है
और ठाट से विवहा की तयारिया हो रही है
भगवान स्री कृषण की माया से
राई के विवाह की सारी तैयारियां
हो गई, गहने, कपड़े, लटे, अरोसी,
पडोसी, मिठाईयां सब कुछ तैयार
हो गई वहां पर, तो मान एक
खूब ठाट से राई का विवाह
भगवान स्री कृषण के साथ कर दिया
गया और अच्छी तरह से विदाई भी कर दी कृष्ण जी राई को लेकर द्वारका चले गए और वहां जाकर राई को लेकर
एक अलग महल में रहने लगे अब वह दूसरी राणियों के पास ना जाते थे ना बोलते थे तो यह देखकर यह देखकर
भगवान श्री कृष्ण की दूसरी राणियां राई से इर्श्य करने लगे ऐसा करते-करते साथ-आठ महीने बीट गए और
सावन का महीना आया तो राई तो पीहर गई तो भगवान जी ने सोचा कि राई के लिए तीज वेशता तो कृष्ण जी ने साथ
श्री के पेस वे पांच सोने के पचेटे रखे और दो हंसों को बुलाया और बोला कि सीधे-सीधे राई के पास जाना है और
कहीं बीच में मत रुखना राई के पीहर चले जाओ तो हंसों ने कहा ठीक है आज या मान कर चल पड़े जब राधा रुखमण
पता चला तो उन्होंने हंसों को रोक कर अपनी महन में बुला लिया और कहा कि थक जाओगे दूर तक जाना है थोड़े
से मोती चुख लो तो हंस आ गए और मोती चुखने लगे तो राधा रुखमण ने सारा सामान निकाल लिया और उसके अंदर फटे
बुलाने कपड़े और पांच कांटे बांध कर रख और पोटली हंसों को दे दी हंस सामान लेकर राज के पास चले गई
तो राज तो बड़ी ही खुश हुई और नाशने लगी और जोर-जोर से कहने लगी कि देखो देखो दामोदर जी ने मेरे लिए उपहार
भेजा है चलो देखते हैं जल्दी से क्या भेजा है जैसे ही राज ने पोटली को खोली तो पांचों अंगुलियां उन
पांचों पांटों में चुप गई तो राज बहुत ही दुखी हुई सावन का महीना खत्म हो गया भगवान स्री कृषिण राज को
बेने आए तो राज उनसे बोली नहीं जब कृषिण भगवान उसे भूलाने की कोशिश करते तो राज उनसे दूर हो जाते तो
भगवान स्री कृषिण ने सचा कोई बात नहीं है कई दिन बीत गए महिनों बीत गए पर राज फिर भी नहीं बोल राज
गही बोलती नहीं थी फिर भी भगवान स्री कृष्ण को प्रेम पूर्वक बोजन करवाती थी भी बोजन में गही जरूर देती थी है
तो एक दिन भगवान स्री कृष्ण ने सोचा कि बिलोने का सारा गही खा लेता हूं देखते हूं कि गही गही कहा से लाई थी
तब सुबह राई ने देखा कि बिलोने में दही नहीं है
तो उसने सुचा कि अब दामोदर जी को दही कहां से खिलाओंगी
तो इतने में बगवान श्री कृषन जी गूजरी का वेस बना कर दही बेचने वाले बन कर आ गए
और गली में आवाजें देने लगे कि दही ले लो दही ले लो
तो राई बाग कर नीचे जाती है और कहती है कि थोड़ा सा दही मुझे भी चाहिए
तो गूजरी रूपी बगवान बोले कि राई तुम उदास दिखाई दे रही हो
हमने सुना है कि आप बगवान से नराज हैं
तो राई बोले कि तुझे क्या मतलब तु जा तेरा काम कर
तो गूजरी बनी बगवान स्री कृषन जी बोले कि सहेली जैसी है हम दोनों
अपने मन की बात तो कहो क्या पता मैं तुम्हारी कोई मदद कर दू
मैं किसी को कुछ नहीं कहूंगी तो राई ने सारी बात गूजरी को बता दी
सुनते ही बगवान को बड़ा चम्बा हुआ और वे अपने असली रूप में आ गए
और बोले कि ये कैसे हुआ मैंने तो तुम्हारे लिए जरी के बेश वे सोने के पचेटे बेचे थे
तो बगवान ने तुरंथ हंसों को बुलाया और पूछा कि तुम रस्ते में कहीं रुके थे
तो हंस बोले नहीं हम कहीं नहीं रुके थे
जाते समिया रादा रुकमन के महल में मोती चुँने के लिए थोड़ी देर के लिए रुके थे और कहीं नहीं रुके
तो श्री कृषण ने राधा रुक्मन को बुलाया और कूछा की आपने ऐसा गलत काम क्यों किया
तो राधा रुक्मन बोली की गलत काम ना करूँ तो क्या करूँ
जब से राई आई है आप हमारे महल में आते ही नहीं है इसी लिए मैंने ये काम किया है
राई सावन में चली गई फिर भी आप हमारे महल में नहीं आये
क्यों मुझसे ऐसी क्या गल्दी हो गई जो आप हमारे महल में नहीं आती हो
तो बगवान स्री क्रिशन जी बोले कि हमको जो प्रेम से बुलाते हैं
हम वहां जाते हैं
अगर आप हमको प्रेम से बुलाते हैं तो हम जरूर आते हैं
लेकिन आज तुमने यह बता कर अपने प्रेम का इजहार कर दिया है
फिर भगवान स्री केशन बोले कि कार्तिक का महिना राई को दूँगा
पांस जिने पस्तिया रादा रुक्मन को वैज्ञारय सत्या भामा को दूँगा
इस तरहें भगवान स्री केशन ने अपनी सब राणियों को मान दिया
तभी से माना जाता है कि जो भी ओरत कार्तिक महा में और बेशाक महा में
राई दामोदर की कहानी सुनती है उसे अपने स्वामी का खूब मान सम्मान और प्यार मिलता है
बोलो राई दामोदर की जेहो
अब दूसरी कथा सुनेंगे गनेशजी की
एक बार गनेशजी महराज एक सेटची के खेत में से जा रहे थे
तो उन्होंने बारा दाने अनाच के तोड़ दिये
अचानक फिर गनेश जी के मन में आया कि मैंने तो सेट जी के यहां चोरी कर ले और वो पस्तावा करने लगे
और सोचने लगे कि मुझसे यह पाप हो गया अब मैं क्या करूँ
तो सोचते सोचते गनेश जी ने कहा कि चलो मैं सेट जी के बारा साल नोकरी पर है जाता हूँ � میरे बाप कम हो जाएंगे
यह सोचकर गनेश जी एक बालक का रूप धारन करके सेट जी के घर चले गए और कहने लगे कि मुझे कोई काम पर रख लो
तो शेट जी को जरूर थी और उन्होंने काम पर रख लिया। एक दिन शेठानी जी राक से हाथ दो रही थी। तो गनेश जी ने शेठानी जी का हाथ पकड़ कर मिटी से दुला दिया। शेठानी शेठ जी के पास गई और बोली कि ऐसा क्या नोकर रखा है। नोकर होकर मेरा
हाथ पकड़ लिया तो गनेश जी को बुला कर शेठ जी ने कहा कि क्यों भी तुमने ऐसा क्यों भीआ। शेठानी का हाथ क्यों पकड़ा तुम तो गनेश जी
गिनेस जी ने कहा कि मुझे तो टाइम नहीं है गनेश तू शेठानी को कुम के मेले में सिनान करवा के ले आओ तो गनेश ची
शेठानी को लेकर फुट के मेले में चले गए तो वहां जाकर शेठानी तो किनारे पर बैठ कर थोड़ा थोड़ा पानी
गए कर नाहा रही थी तो गनेश जी ने उसका हाथ पकड़ा और आगे ले जाकर डूपकी लगवा कर वापिस लियाई तो घर आकर
शेठानी ने शेठ से कहा कि गनेश जी ने तो मेरी इज्जत नहीं रखी इतने सारे लोग थे उनके बीच में मुझे गसीट
पानी में आगे ले गया तो शेठ जी ने फिर गनेश जी को बुलाया बई तूने ऐसा क्यों किया तो गनेश जी ने कहा
कि शेठानी जी तो गंदे पानी से किनारी पर बैठ कर ना रही थी तो मैं तो आगे ले जाकर अच्छे पानी में डूपकी लगवा कर लाया
इससे अगले जनम में बहुत बड़े राजा और राजपाठ मिलेंगे
तो सेट जी ने सोचा कि गनेश जी है तो सचा
एक दिन सेट जी के गर में पूजा पाठ हो रही थी
भवन हो रहा था तो सेट जी हवन पर बैठे थे
और गनेश जी को कहा कि जाओ सेठानी को बुला कर लाओ
तो जैसे ही गनेश जी सेठानी को बुलाने अंदर गए
तो सेठानी तो काली चुनरी ओड कर तयार होकर गनेश जी के साथ चलने लगी
तो गनेश जी ने उस चुनरी को उतार कर फाड दिया
और कहा कि लाल रंग की चुनरी ओट के चलो
तो सेठानी नराज होके सो गए
उदर हावन पर बैठे हुए सेठ जी सेठानी का इंतजार कर रहे थे
काफी देर हो चुकी थी सेठानी जी बाहर नहीं आये
तो सेठ जी उटकर श्वम अंदर गए तो देखा तो सेठानी जी सो रही थी
तो सेठ जी ने कहा कि क्या बात है
तो सेठानी बोली कि आज तो गनेश जी ने हती कर दी
मेरी चुनरी भाड़ दी
तो सेठ जी ने गनेश जी को बुला कर बहुत डांडा और कहा
कि तुम बहुत बदमाशी करते हो
तो गनेश जी ने कहा कि पूजा बाठ में काले रंग का वस्तर नहीं पहनते
इसलिए मैंने तो सिर्फ लाल वस्तर पहनने के लिए बोला था
काला वस्तर पहनने से कोई भी सुब काम सफल नहीं होता
तो फिर सेट जी ने सोचा कि गनेश जी है तो समझ्दार
ऐसा करते करते कई दिन बीट गई
एक दिन सेट जी के घर में गनेश पूजा थी
तो पंडिज जी ने कहा कि वो तो गनेश जी की मूर्टी लाना तो भूल ही गए
अब क्या करेंगे
तो गनेश ची बोला कि मेरे को ही मूर्ती बना कर युराजमान कर लो
आपकी पूजा सखल हो जाएंगे
आपके सारे काम सखल हो जाएंगे
तो यह सुनकर सेट ची को बहुत ही गुस्सा आया
और वो बोले कि अब तक तो तुम सेठानी से मजाक करते थे
वो तो ठीक था लेकिन अब तो मुझसे भी करने लगे
तो गनेश ची बोले कि मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ
मैं तो सच कह रहा हूँ
ऐसा कहते ही गनेश ची ने अपना असली रूप धर्म कर लिया
तो सेठ और सेठानी तो देखते ही रह गए
फिर उन्होंने गनेश ची की पूजा शुरू की
पूजा खतम होते ही गनेश ची तो वहाँ से अंतर ध्यान हो गई
अब और सेठ और सेठानी को बहुती अपसोस हो रहा था
कि इतने सालों से हमारे पास गनेश ची रह रही थे
और हमें पता ही नहीं चला
अनजाने में हमने उनसे कितना काम करवाया
ऐसा सूषते सूषते सेट जी तो बहुत ही दुखी हो गया
तो गनेस जी ने रात को सपने में आकर सेट जी से कहा
कि सेट जी आपके खेद से मैंने 12 साल पहले
12 अनाज के दाने तोड़ दिये थे
उसी का कर्ज उतारने के लिए मैंने आपके घर बारा सालों तक नोगरी की थी
आपको अपसोस करने की कोई जरूरत नहीं है
आज से तुम्हारे घर में कोई भी चीज की कमी नहीं रहेगी
इस परकार से गनेश जी के आशिर्वाद से सेठ और सेठानी उत्रवान और धन्वान हो गए
हे गनेश भगवान जैसी कृपा आपने सेठ और सेठानी पर की वैसी सप्पर करना
बोलो गनेश गजानन की जैहो

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