तू गया मागर
दिल
से नहीं
तेरी कमी तो आई
नहीं
गया ही नहीं
तेरे जाने के बाद भी
हर कोना तुझसे भरा है
जैसे तू रुखसत नहीं हुआ
बस थोड़ा सा
चुप है
वो दरवाजा अब भी धीरे खुलता है
जैसे तुझे आने की आदत हो अब भी
वो चाय की प्याली अकेली नहीं होती
हर भापने तेरा चहरा उबर आता है कहीं
तेरे भेजे गए आखरी
मैसेज को अब तक दिलिट नहीं किया
मैंने तुझे भुलाया नहीं
बस समझा लिया
कोई रोजल
विदा कहे और फिर लोट भी आए
संभाले हुए हूं
क्यूंकि तुझे जरूर अगर खट्म कभी हुआ ही नहीं
मैं कहीं भी जाओं तुझे से दूर नहीं जाओं
क्यूंकि तु अब भी है हर उस चीज में जिसे मैंने तब से छुआ है
नहीं मेरे रूह से फिसला था