कितने दिनों बाद रंग आए हैंलंबी भी राते के दिन आए हैंफिर से सहर का जनू देखनेनिकले घरों से यहाँ आए हैंकुर्बानियां हमने लाखों हैं दीइन राहों ने कितनी आहें सुनीमन्जर था खामोशियों से बरालब एक दूफा उभरने लगाहमसे गए थे बुरे खाब मेंकब से खड़े बुनते जिरजाद केपहली किरण है किली राशनीआगाज है ये नए राशतेपहती थी खुशियों की नदीया यहीअब देखो फिर से बहार आ गएमन्जर था खामोशियों से बरालब एक दूफा उभरने लगाया कौन ही प्रतावार परदेखता हैप्यार देखा बहार.या कौन भी आजीली भोलता में।लगला ......लगला राचियाद लम्पी