तेरी आदत मुझे को लगी है क्यूं
हर गड़ी मुझे तू दिखती है क्यूं
कुछ सोच सकू ना तेरे बिना ये आँखे ये रात बर जगी है क्यूं
कैसा है ये दिवानापन
तेरे बिना अब गुजरे ना दिन
कैसा है ये दिवानापन
तेरे बिना अब गुजरे ना दिन तू नहीं तो है बस सूनपन
लगता नहीं अब मेरा मन
उज़े को सता के
मुश्कुरा के यूँ
ये पलके तू अपनी जुकाती है क्यूं
के
आखो में तेरा ही छेहरा है
दिल पे तेरा ही पहरा है
आखो में तेरा ही छेहरा है
दिल पे तेरा ही पहरा है
मेरी नींद भी,
खौब भी,
मेरी चाहतें ऐसास भी
तुझसे
जुड़ने लगे क्यों
तेरी आदत उज़को रगी है क्यों