शाम धलती है लेकिन तेरी आदें
हवा भी धीरे से तेरा नाम ले जाए
रात के साएबी मुझसे कहने लगे
तू जो नहीं तो ये दिल क्यूं रहे
तेरा इंतजाल
हर पल किया है
हर एक सांस में तुझे ही जिया है
तूता हूं फिर भी संभलता रहा
तेरे बिना भी तुझ मैं ही रहा
बालिश भी आई थी
तेरी तारा हलकी दिल के किसी कोने में बैठी है बेचानी तेरी
वो हसी अभी गूँजती है जैसे कोई नगमा हवाऊं में बसती है
काशे एक दिन तू लोट आए
मेरी खुश्बू से फिर तक्राए
मैं भी फिर से वोही बन जाओं जो तेरे साथ मुस्कूराया था कभी
तेरा इंतेजार हर पल किया है हर एक सांस में तुझे ही जिया है
तूता हूँ फिर भी संभलता रहा
तेरे बिना भी तज़ में ही रहा