भगवान सिवजी की पाबन पुनीत कथा के अंतरगत सूत जी महराजी कहते हैं कि वे मुनि सृष्ट साधक
इन सभी से सृष्टी की उत्पत्ती में इस संसार में मैंने सभी को साथ में लिया तब जाकर के यह सृष्टी आगे बड़ी
और इस प्रकार अंभिकापति महादेव जी की आज्ञा से अपने पूर्व कर्मों के अनुसार बहुत से प्राणी असंख सृष्ट
दुजों को उत्पन्न किया कल्प भेद से दक्ष के साथ कन्याएं बताइए अलग-अलग कल्पों में अलग-अलग संख्यां भी है
रेकल्प का भेद है 60 कन्नाएं वर्ष उनमें से दस कन्याओं का विभाग तो है धर्म के साथ किया है जो मैं ने
पूर्वबत कहा 27 कन्याएं चंद्रमा को व्याही बजाई गये हैं तीरफर कन्याओं का हाथ दक्ष ने कषेप महाराज के हाथ
में दिया है और नारद उन्होंने चार कन्याएं सृष्ट रूप वाले तारक्ष जिनको अर्ष्ट नेमी कहते हैं अर्ष्ट
नेमी को चार कन्याएं दी हैं आगे चलकर बताया है कि महाराज दो-दो कन्याएं जो है अर्पित की हैं अंगीरा
को और क्रशास्यों नाम के रिश्व के दो-दो कन्याएं इनको प्रदानिक हैं कि दक्षिणी महात्मा कश्यप को जिनती
रह कन्याओं का विधि विधान पूर्वक दान किया उनकी संतानों से सारी यह तीनों लोगों की सृष्टि बताई गई है जिनको
उत्तरपता नहीं होता न हो वह वह कहती थे कश्याप कि मैं इन सब रिश्यों कि ही यह समझ सकती नोगों में समस्त
प्रकार से सभी हम और आप सभी रिश्यों की ही संतान है रिश्यों से ही हम सबकी उत्पत्ति हुई होगी सभी बहाया कहा है
आका बुर्णन ब्रह्मभाजी ने किया है इसके बश्चात भगवान शिवका महाराज यहां से कैलास पर्वत पर सभी को आदेश
करके कैलास पर्वत पर बास होना बताया है रुद्र सहीता यहां पर प्रथम खंड के बश्चात दूती खंड प्रारंभ
करना हुआ है आगे चलकर श्री सुरुद्ध जी महाराज सोनकाज्ञ कृषियों को कथा स्रवण कराते हुए कहते हैं यहां पर
बहुत सी कथाओं को विषय पूर्वक किया है और बहुत सी कथाओं को सूख्षम रूप से बर्णन किया है संध्याकि आत्मा
अपने आपको महाराज भगवान सिव के चरणों में स्मर्पत करना दूती जन्म अरुंधति के रूप में प्राप्त करना और
मुनिवर वसिष्ठ के साथ में इनका विवाह होना बताया है ब्रह्मा जी का रुद्र के विवाह के लिए प्रयत्न ब्रह्मा
जी ने भगवान सिव के विवाह के लिए प्रयत्न किया है भगवान बृष्णु को उन्हें शिवा की आराधना के लिए उपतिष
देकर के और चिंता मुक्त किया है अगला कचे शूध जी कहते हैं शिवा की प्राप्त रखी गई है और भगवती सिवा के
के लिए ये दक्ष को भगबाती जेयर दंबा की तबस्तिया करने का आदिश दिया है दक्ष ने भगबाती की तपस्तिया
किया भगबाती ने प्रसन्न होकर के और दक्ष को वर्दान दिया है क्या आप चिंता ना करें मैं असहीं आपके घर
आपकी इक्षाओं को पूर्ण करने के लिए आपके घर में आकर के उत्पन्न होंगी और आपको समस्त प्रकार से जो जो
आपके कामनाएं हैं उन सब को मैं आपको प्राप्त कराऊंगे ब्रह्मा जी की आज्यासे दक्ष द्वारा मैतुरी सृष्टि
धर्म भया अपने पुत्र हर्यस्यों और समलासों को निप्रत्ति मार्ग में भेजने के लिए और दक्ष ने नारद को जबकि
नारद जी को श्राप देना पड़ा आगे चलकर दक्ष की साथ कन्याओं का अवधार दक्ष और वारणी के यहां पर देवी सिवा का
अवतार दक्ष द्वारा उनकी सुधी की गई है तथा सती के सद्गुण एवं चेष्टाओं से माता बता की प्रसन्नता है जब भगवती
देवताओं का कैलास ने जाकर के भगवान सिबि की बहुत प्रकार से प्रार्थना की भगवान सिव को सब बताया
तब जाकर हटाएंगे ने आश्वसंदिय कर्मा जी कारदरदेव से सत्रिपेशात्म होने के लिए प्रार्थना की गई भ्रमा
जी ने प्रार्थना की अनुरुद्ध किया भगवान विष्णु के द्वारा अनुमोधन किया गया और भगवान सिव जी ने ब्रह्मा
और विष्णु दोनों की बात को सुनकर के और महाराज आशोस्त कर दिया और कहा कि मैं सिवा सती के साथ विभाह
स्वीकार करता हूं सती कोशिश से बर्की प्राप्ति है भगवान सिव का ब्रह्मा जी को दक्ष के पास बेद करके
सती को बरण करने की इक्षा जताई सताई कहांचार कि महा देव आपकी पुत्री सती को स्वीकार किया है सती को गिर्घन
दिया है ब्रह्मा जी से दक्ष की अनुमति पाकर देवता और मुनियों सहित भगवायन सिव का दक्ष के घर जाना भया
है दक्ष द्वारा सभी का बहुत प्रकार से सत्कार भया है और सत्य मैया का सिव जी के साथ में विवाह भया है
है आगे चलकर के सत्यों के द्वारा अग्निक की परिक्रमा लगाई गई है हरी द्वारा सिव तत्तु का वर्णन किया गया है
सिव का ब्रह्मा जी को दिए हुए बर्के अनुसार बेदी पर सदा के लिए अवस्थान तथा सिव और सत्य का यहां से दक्ष
विदा किया है बाबा कहलास परवत पर गए हैं और अनेक प्रकार से भोगविलास करते हैं शति का प्रश्न था उनके
उत्तर में भगवान सिव द्वारा ज्ञान नवदा भक्ति बताई गई है भगवान सिव का तो देखिए बताऊं एक ही काम भगवान सिव
कथा सुनते हैं और कथा कहते है भगवत्ति कि सिंदेवा ने अनिक तरफ प्रकार के प्र phi बगवान सिंदेवा सभी
को मया सति को बताते हैं जो नवधा भकति राघव में प्रश्न बज्जाकों बताई मैया तेरे अंदर सबकूण है वह
कथा में हम सुन चुके हैं वही नवदा भक्ति जो है भगवाईन सिव मैया सती को बताएं स्रवणम कीर्तनम चैवों
इसमरणम सेवनम तथा दाश्यम तथार जनम देवी बंदनम ममसरवदा सख्यात्मारपणम चेति नवां गानी विदुर्भुदा
शास्त्र कहता है नोव में से एक भी अगर हमारे पास आ जाए तो हम भगवाईन के परमप्रिय जनव में से एक
हो जाते हैं चाहिए ट्रेन के भक्ति संत्र pole तीनों लोकों में उसके समान कोई भक्ति दिखाई ही शाहित
जो लोकों में और शिव देवी को कथा मया उपदेश करते हैं यहां पर समस्त प्रकार से भगवति शती को भगवान
शिव ने न अवधा भक्ति की कथा को स्रुब्ध कराया था और यहां से शिव प्राण में वह कथा प्रारम्ब होती
रहती है जो कथा अब तभी में अपने घर में पढ़ते हैं कि इसको रती खंड़ मी कहते थे सब तीतर चर्त्र भी
कहते हैं तो राम और मानस में बाल पांड में आप इसको पढ़ सकते हैं बाल कांड में सफेद तक संपूर्ण बर्ण
अपना लोग शिव पुराण में शिव पुराण में थोड़ा ज्यादा तुष्ट पुरिण रही है
लिखा है भगभान शिव-भागवाद तो देखिए रिलास पर वास करते हैं और एक जगह कहीं इस्थाई वापस नहीं
करते हैं और महराज भ्रमण करते रहते हैं