हमें वो पसंद आता है, वो सुरुची है
क्या हमारे सास्त्रों में ऐसा लिखा है कि नारिया जो है वो
स्किया जो है, बेटिया जो है, वो चोटे कपड़े पहने, कम कपड़े पहने
लेकिन वो पाश्यात संस्कृती है जो वो विदेशी करते है
और उनका अनुशरन हम कर रहे हैं
किसके माध्यम से टेलिविजन देखते हैं
सब सिनेमा घर जाते हैं
फिल्मों में आता है
सब देख रहे हैं
मन अच्छा लगता है
ये कितना अच्छा दिखता है
मैं भी पहनो तो कैसे दिखू
ये सुरूची है
ये हमारा सुन्दर मन कहता है
कि उस चीज का अनुशरन करे
उसे पकड़े
और हम वही करते हैं
लेकिन
अंत में परिणाम क्या होता है
देखिए
अगर आप सुन्दर नीती से चलेंगे
आप हमारी संस्कृति और सब्धटा को
धान धान देते हुए चलेंगे
तो आपके पास
आपके घर में ध्रू आएगा
और ध्रू का अर्थ क्या है
अविनाश्य
जिसका कोई
वर्णन नहीं है
शब्जों में
वो है
ऐसे संस्कार आपके घर में
लेकिन अगर आप सुरूची का
अनुसरन करेंगे ना
जो मन पसंद कर रहा है ऐसे चीजों का
तो आपके घर में
उत्तम आएगा
अच्छा तो रहेगा लेकिन
वो कम समय के लिए रहेगा
अच्छा तो होगा लेकिन
कम समय के लिए रहेगा
पूरे समय के लिए वो साथ देने वाला
नहीं है
और होता यही है एक बार हुआ क्या
आप दो मित्र थे
अब निकले यात्रा करने के लिए
तो एक मित्र ने कहा भाई
दो तीन दिन की लंदी यात्रा है
थोड़ी अच्छी व्यवस्था करके चलना
तो उस मित्र ने क्या किया
पूरे बोरिया विस्तर अपने पैक तीया
पूरे जितने समाच थे
सब पैक कर लिया
लेकिन साथी साथ अब बताईये
आप कहीं घूधने जाते हैं तो क्या
अपने विस्तर और पलंग को
साथ ले करके जाते हैं क्या
जाते हैं
ऐसा किसी यात्री को आपने देखा है
कि जो अपने बिस्तर तक को साथ लेकर के चले
अपने पलंग को भी साथ लेकर के चले
ऐसा कोई यात्री देखा है
होते ही नहीं है
लेकिन उस वेट्ठी ने वही किया
साथ में पलंग ले लिया
और पलंग के लिए गद्धा भी पकड़ लिया
और ओरने के लिए रजाई भी पकड़ा है
और तक्किये भी रखना है
पूरा आराम मिलना चाहिए
तो दूसरे मित्र ने पूछा बाई हम कित यात्रा में जा रहे हैं
भगवान की भजन किर्टन करने के लिए
और आप इतने सारी समाज चू ले करके जा रहे हो
तो उस मित्र ने क्या कहा
किते हैं कि भाई अब इतनी लंबी यात्रा हम दे करेंगे
तो ठक जाएंगे
जब हम ठक जाएंगे तो इस पलंग को वहाँ पर बिछाएंगे
और फिर अराम से सोएंगे
तबदी की यात्रा से
तो यह हमारा मन वतन्द करता है
और उस चीज़ को जब हम करते हैं
तो वह सिर्फ छंड समय के लिए
हमें सुख देता है
वो अराम्ट सिर्फ छंड समय के लिए
सुख देने वाला है
लेकिन अगर उसी जग़ा
वो किस मार्ग के लिए दिकले है
किस काम के लिए दिकले है
अब तान पाद राजा की दो राणिया
सुनिती और सुरूची
सुनिती बड़ी राणिये है
और सुरूची चोथी राणिये है
सुनिती का बालग है
दुरू
सुरुची का बालक है उत्तम
राजा सुरुची को बड़ा पसंद करते हैं
हम और आप जैसे
जैसे हमें सुरुची सुन्दल जो दिखता है
उस पर हम जल्दी आकर शिर्फ होते हैं वैसे ही
राजा उन्हें बड़ा पसंद करते हैं
एक दिन राजा दिखविजई हो करके
युद्ध करके आये विजई हुए थे
अब अपने महल में जैसे ही बैठे हैं तो
बालक दूड़ते दौड़ते पिताजी के पास आये
पिताजी कहते हुए और गोधी में बैठे हैं
बगल में माता शुरूची खड़ी हुई थी
उसने दूड़ों को उतार दिया
आपके तुम यहाँ पर नहीं बैठ सकते
बालक दूड़ों ने कहा क्यों नहीं बैठ सकता
तो शुरूची ने कहा क्यों कि तुम मेरे कुट्र मही हो
यहां पे सिर्फ उत्तम बैठ सकता है और कोई नहीं
तो दुरू ने कहा कि मैया मैं क्यों नहीं बैठ सकता है
तो शुरुची ने कहा क्योंकि तुमने मेरे कोख से जनम नहीं लिया है
अगर जिस दिन तुम मेरे गर्ब से जनम ले करके आओगे
तब तुम राजा की गोधी में बैठने की अधिकारी बनोगे
बालक दुरू को रोना आये
क्योंकि पिताजी भी कुछ नहीं कह रहे माता से
तो बालक दुरू रुदन करते हुए अपनी माता जे पास पहुचे
कि उनकी पास सुनिती के पास सारी बाते बताई
कहा कि मया ने पिताजी की गोधी में बैठने को नहीं दिया
सुनिती ने कहा कि क्यों सारी बाते बताई
कहा कि कहती हुई कि जब मैं उसकी गर्वक से जन्म ले कर गया हुआ
तभी पिताजी की गोधी में बैठ सकता हूँ
तो मैया सुनीती ने बहुत सी सुन्दर सीख अपने बालक को दी
कहा कि बेटा वो तो संसारिक पिता है
आज है कल नहीं रहेंगे
अगर बैठना ही है तो उस परम पिता की गोधी ने बैठो
जो हमेशा है अगर एक बार बैठ गये ना
तो वहाँ से उतर नहीं पाओगे
ऐसे पिता की गोधी ने बैठो
तो बालक दूर छोटा सा बच्चा पाँच रोश करे
जैसा बच्चों को आप सिखाओगे ना
वैसा ही वो सिखते अब कहने लगा कि ये परम पिता कहा है
मुयाने बताया वो ऐसे ही नहीं मिलते
उनके लिए तब करना पड़ता है
तब जाकर के मिलते हैं
उसने लगे तब कैसे करते हैं
तब करने के लिए एकांट जगा होना चाहिए
लोग वन में जाते हैं तब करने के लिए
तब जाकर के वो परमात्मा मिलते हैं
जरी मिलते हैं और
अपनी गोध में बिठा लेते हैं
सारी इक्षा भूदी कर देते हैं
अब विश्राम किया मैया ने
राज का समय था बालक जुरू के मन में तो सिर्फ एक ही
बात गुंज रही थी कि मुझे
अपने पिताजी की गोधी में बैठना है
और वो परम पिताजी की गोधी में बैठना है
जो कैसे मिलेंगे तपस्या से मिलेंगे
तप से मिलेंगे
निकल गए वन की ओर
सिर्फ भगवाद का नाम मुख से स्मरन कर रहे हैं
कह रहे हैं कि हे प्रभू
मुझे चर्णों से लगा ले
मिर्शा मुरले वाले
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