Nhạc sĩ: Traditional
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जैसी आराम भक्तों
आज के इस भाग दौड भरी जिन्दगी में
सुन्दर कांड का पाथ करने
या सुनने से
बजरंग बली
सभी प्रकार के कश्टों का निवारन
कर देते हैं
तो आईए
मैं आपको
बहुत ही कम समय में
सिद्ध किया हुआ
अगला सुन्दर कांड का पाथ सुनने जाराँ,
बोललीए पवानसुत धनूमान की जई
जै जै श्रीराम, जै जै स्रीराम
जृराम जयम जयज़राम श्रीराम जयराम जयजराम
स्रिगल शायंनमःहं प्रनवो पोनकमार
खल्बन पावक ज्यान घन जासू हर्दाई आधार बसेराम जर चाप धर
बलि बांधत प्रभु बाड़ है ओ सोतनु बरने न
जाई ओ भैगरी महदेन ही साथ प्रदच्छिन धाई
अंगद कहै जाऊ मैं पाराज ये संसे कछ फिरते बारा
जामवन्त कहतुम सब लाइक पठाईय किम सब ही करनाई
कहै रीच्छपच सुनु हनुमाना काचुप साधी रहे ओ बलवाना
पवन तनै बल पवन समाना उद्विवेक विज्ञान निधान
कवन सुकाज कठिन जगमा ही जो नहीं होई तात तुम पाहे
राम काज लगि तव अवतारा सुन तही भयो परवता कारा
कनक परन तन तेजविराजा मान हूँ अपरगिरिन कर राजा
सिंगनाद करिबार है बारा लिलैनागव जलन दिखारा
सहीत सहाई रावन हे मारी आनवी हाथ रिकोट पारी
जामवन तो मैं पूछवं तोहीं पुछित सिखावन दीज़ हुमोई
इतना करहो तात तुम जाई सीतही देख कहाँ सुधी आई तव
निज़ भुजबल राजवन ना कोटुक लागि संग कपिसे नाज़ो
शीराम जैराम जैराम शीराम जैराम जैराम
कपिसेन संग संघारी निज़ चर राम उसीत ही आनी हैं
त्रैलोक पावन सुझस सुर्मनिनार दादी वकानी हैं
जो सुनत गावत कहत समुझत परम पद नरपावई
रघुबीर पद पातूज मदुकरदास तुलसी गावई
बावे सज रघुनात जसू सुनहि जनर अरुनारी
इन कर सकल मनोरत सिध करें त्रिसिरारी
नीलोत पलतन श्याम काम कोटु सोभा अधिक
सुनियतास गुन ग्राम जासुनाम अगखखग वधिक
स्री राम दे राम दे दे राम
नाने आईस प्रिहार भगवते थे अस्मधी ये सत्यं बदाम चपवान खिल अंतरात्मा
भगतिम प्रेच्छ रखो पंगवनेर भरामे कामादि दोशर है तमकुर मान समच
अतुलिद बलधामं हेम शैलाभधेहं तन जुवन कृशानुं ज्याने नाम अग्रकण्यं
सखल गुन निधानं बान राणाम धीशं रगवते प्रेभक्तं बात जातं नमामे
श्रिराम देरं देदेराव
श्रिराम देरं देदेराव
जामों वंत के बचन सुहाये सुनी हनुमंत हरदे अतिभाये
तब लगे मोही परिखे हुतुम भाई सई दुख कंद मूल फल खाये
जब लगे आम उसी तहीं देखी होई ही काजू होई हर सबिशेके
यह तहीं नाई सवनी कोँ माथा चलेओ हर सी धरी रघुनाता
सिंदुतीर एक भूधर सुन्दर कोतुक पोध चलेओ ता ऊपर
बार बार रघुबेर समारी तर के उपोन तने बलबारी
जहं गिरी जरन देई हनुमंता चलेओ सुगा पाताल तुरंता
जिम्य मोग रघुपति करबाना एही भात चलेओ हनुमाना
जरन देई रघुपति दूत विचारी तै मैंना कहोई शमहारी
हनुमान तेही परसा करपुन कीन प्रनाम
राम काजु कीन है बिनूमोही कहां विश्राम
जात पवन सुत देवन देखा जाने कहूं बलबुद्ध विशेखा
सुरसा नाम अहिन कै माता पठाईनी आई कही तेही बाता
आजु सुरन मोही दीन आहारा सुनत बचन कहा पवन कुमारा
राम काजु करी फिरिमे आवों सीता कैसुदे प्रभून सुनावों
तव तव बदन पैठी हम आई सत्य कहां मोही जान देमाई
कवनेव जतन देही नही जाना गरसःन मोही कहेव अनुमान
जोजन भरितेह बदन पसारा कपितन केन दुगन बेसतार
थो रह जोजन मुखतेह ठयव तुरत पवन सुत बत्ति सभयव
जस जस सुरसा बदन बढ़ावा तास दोन कपिरूप देखाव
सत्य जोजन तही आनन कीन हातील खुरूप पवन सुतलीन
बदन पईठी भुनि बाहरे आवा मागाविदाता हिसरुनाव
मोही जोजन जही लागि पठावा बुधिवल मरमु तोर मैपाव
राम काजु सब करिहाँ तुमवल बुध निधान
आशिष देखी सोहरश चलेव हनुमान
निशचर एक सिंध मौर है करिमाया नव केख गगहै
जेव जन तुझे गगन उड़ाईं जल बिलोकी तिन कै परिछाईं
गहै चाह सकसोन उड़ाईं एहि विदे सदागगन चरखाईं
कोई चल हनुमान कहकीना ता सुकफट कभी तुरते ही चीना
ताहि मारी मारुत सुत वीरा बारी धिपार गयों मत
धीरा तहां जाई देखी बन सोभा गुञ्जत चंचरीक मधुलोबा
नाना तरुपल फूल सुहाईं धगम गबंद देखी मन भाईं
सहल विशाल देखी एक आगें ता परधाईं चड़ें उभे त्यागें
उमान कच्छु कभी कहें धिकाईं प्रहुँ परताप जो काल नहीं खाईं
गिर पर चड़ी लंकाते ही देखी कहीं जाई अति दुर्ग विशेखी
अति ओ तंग जल निधी जो पासा कनक कोट कर परम प्रकास
श्रीराम जैराम जैराम श्रीराम जैराम जैराम
कनक कोट विचेत्र मन करते सुन्दरायत नाँ घणां
चवफट हट सुभट बीती चार पुर बहुबधी बना
गजबाजी खचर निकर पदचर रथ बरूताईं को गने
बहुरूप निशचर जूते अति बलसेन बरनत नहीं बने
बनबाग उपोन भाटिका सरकूप बापी सोहें
नरनाग सुर्गं धर्व कन्या रूप मुनिवन मौवैं
कहु माल देह विशाल सेल समान अति बल गर जैं
नाना अखारें भिराहि बवधी एक एकन तर जैं
करिजतन भटकोटिन विकटतन नगर चहुंद सिरच्छैं
कहु महीं समानुश धेनु खरज खल निसाचर भच्चैं
इही लागी तुलसी दासेन की कथा कच्छोए कहे कैं
कहु बीर सर्ती रत सरीर नित्यागी गत पैहैं सैं
पुर रखवारें देखे बहू कपिवन कीन विचार
तिलग रूप धरो निसी नगर करो पैसार
मसंग समान रूप कबीदारी लंक ही चले उस लंकानी नन लंक कीनी एक नी
सीचरी सो कहकल सिमोही निंदेर जाने ही नी मरमू सथमाुरा मौरा आहार जहा
लगी चोर मुठ का एकमः कपीहनी षूधरेवमाद��धरनीधानमानी पुणिसंभारी उठ
तात मोर अधिपन्य वहूता देखेओ नैनराम करदूता
तात स्वर्ग अपवर्ग सुख धर्य तुलाय के अंग
तूलन ताहि सकल मिली जो सुख लो सत संग
प्रविशिनगर की जै सबका जारदे राखि कोसलपुर राजा
गरल सुधारिप करहिमिताई गोपद सिंदु अनल सितलाय
करुण सुमेर रेनु समताहि राम क्रिपा करिचित वाजाय
अतिल घुरूप धरू हनुमाना पैठानगर सुमेर भगवान
मंदिर मंदिर प्रतिकर सोधा देके जहता अगनित जोधा
गयोधशानन मंदिर माहि अति विछेत्र कहि जात सुनाये सैन किये देखा कभिते ही
मंदिर महुन दीखि बैदे ही भवन एक पुनिदीख सुहावा हरि मंदिर तह भिन बनाओ
रामा युधे अंकित ग्रिह सोभावरनिन जाई
नव तुलशिका व्रिंदत धेखे हरसक फिराई
लंका निश्चर निकर निवासा इहां कहा सज्जन करबास
मन महु तरक करे कभी लागा तेही समय भी शनु जाग
राम राम तेही सुमिरन केना हरदाई हरसक भी सज्जन
चीना यही सन हट करी हौं पहचानी सादुत होई नकार जानी
विप्र रूप धरी वचन सुनाये सुन तब भीशन उठता है आये
कर प्रणाम पोची कुसलाई विप्र कहा हो निज कथा बुजाए
केतों हरिदासन मह कोई मोरे हरदाई प्रीतियती होई
केतों रामुदिन अनुरागी आये उमोही करन बड़भाग
तव हनुमन्त कही सवराम कथा निजनाम
सुनत जुगलतन पुलकमन मगन सुमेरे गुनग्राम
सुनहु पोवन सुतरहनी हमारी जिविदसनने महु जीव विचार
आत कभा हुमोहे जानी अनाथा करी है क्रिपाभान कुलनाता
कामस तनु कछ साधन नाही प्रीतिन पद सरोज मनमाही
अबु मोही भाव भरोस हनुमन्ता बिनु हरिक्रिपा मिले ही नहीं संता
जो रघुबीर अनुग्रा केना तो तुम मोहे दरसु हठी दीना
सुनहु बिभीशन प्रभु कै रीती करें सदा सेव कबर प्रीती
कहाओ कोवन मैं परम कुलीना कभी चंचल सब ही विदीना
प्रातले यो नाम हमारा तही दिनता ही न मिले आहारा
असमै अधम सखा सुनु मोहु पर रघुबीर केन
ही कृपासु मेरे गुना भरे बिलो चननीर
जानत हूं वस स्वामि विसारी फिर अहित काहे न होई दुखारी
एह विदी कहत राम गुन ग्रामा पावा अनिरबाच वेशराम
उनि सब कथा विभीशन कही जही विधी जनक सुता तहरे ही
तव हनु मंत कहा सुनु भराता देखी चाहो जानकी माता
जो गुत विभीशन सकल सुनाई चलो बोवन सुत विदा कराई
खरी स्वाई रूप गयो पुनित हुआ बन अशोक सीता रह जाओ
देखी मन ही महु कीन प्रनामा बैठें बीठ जात निसि जाम
क्रिष्टनु सीष जटा एक वेनी जपती हर्दाय रगुपति गुनशेनी
निजपत नैन दीये मन राम पद कमल लीन
परम दुखी भापोन सुत देखी जानकी दीन
तरुपल्लाव महु रहालु काई करे विचारी करों का भाई
कहीं अवसर रावन तहां आवा संग नारी वहों की ये बनाव
वहों विदिखल सीता ही समुझावा सामधाम भैवेद दिखाव
कहा रावन सुन सुमक सेयानी मन दोधरी आधि सवरान
तव अनुचरी करव पन मोरा एक बार भी लोक ममोरा
त्रिनधरी ओट कहती बैदे ही सो मेरी अवधपती परमसने
सुनुद समुख खद योत प्रकासा कबहुं की नल नी करे विकासा
असमन समुझु कहती जाने की खल सुधी नहीं रखो वीरबान की सथ सुने
हरी आने ही मोही अधमने लजजलाज नहीं तोही आपों सुनिक दोत
समराम ही भानु समान परुषवचन सुनिकाड़ी असी बोला अतिक सियान
सीता तेमं करते अपमान कटी हो तव सिर कठन किरपान
नाहिद सबति मानुमं बानी समुख होती नत जीवन हान
स्याम सरोज दाम सम सुन्दर प्रवभुज करी कर समध सकंद
तोभुज कंठ की तव सीघोरा सुनुशट असप्रवान पनमोर
चंद्रहास हरुमम परितापम रगुपति विरहानल संजात
सीतल निसित बहसी बरधारा कह सीता हरुमम दुखभारा
तुनतव जन पुने मारन धावा मैं तनिया कही नेति वोजावा
कह सीज़कल निसि चरीन बोलाई सीतही बहुबिदि त्रास हुजाई
मास दिवस मो कहान माना तो मैं मारव काणी करपान
भवन गय उद्धस कंधर इहां पिसाच निव्रंद
सीतही त्रास देखा वहीं धरही रूप बहुमंद
तुरिज़टा नाम राक्ष सी एका राम चरन रतिन बुन विवेका
सबनो बोली सुनाई सी सपनाः सी तहीं से ही करव हिते अपना
सपने वानर लंका जारी जात धान सेना सब मारी
खर आरूढन गनदस सीसा मुंडित सिर्कंडित भुजवीसा
एह विदि सोधचिन दिस जाई लंका मनह विवीशन पाई
नगर फिरी रख वीर दोहाई तब प्रभु सीता बोली पठाई यह सपना मैं कहाँ पुकारी
होई सत्य गए दिन चारी तासु बचन सुनिते सब डरी जनक सुताके चरन निपरी
जहता गई सकल तब सीता करमन सूच मास दिवस बीते मोही मारी ही
निश चरपोच तुरिजटासन बोली कर जोरी मातु विपति संगीते मोरी
तजव देह करूबेगी उपाई तुसह बिरहु अब नहीं सही
जाई आनी काठ रजुचता बनाई मातु अनल पुनि देही लगाई
सत्य करही मम प्रीति सयानी सुने कोशमन सूल समबान
सुनत बचन पदगही समुझाई शिपरो प्रताप बल सुझसु सुनाईश
निशिन अनल मिलि सुन सुकमारी असकही सोनी जबवन सिधारी
कहसी तावि दिभापरति कूला मिलीन पावक मिटीन सूल
दक्यियत प्रगटगगन अंगारा अवनिन आवत एक उतार
पावक मैसे सिस्रवतन आगी मानहों मोही जानी हत भागी
सुनाईश विनैमम बिटप असोका सत्य नाम करू हरूमम सोका
नूतन किसले अनल समाना देह अगनी जनी करही निधान
देखि परम विरहा कूल सीता सोचन कपी ही कलप समभीता कपी करे हरदें विचार
देन मुद्र का डार तब जनु असोके अंगार देन हरशी उठी कर गहे वू तब देखी
मुद्र का मनोहर राम नाम अंकित अति सुन्द चकित जितो मुदरी पहिचानी हरश विशाद
हरदें अकुलानी जीत को सके अजैर गुराई माया ते असीरची नहीं जाई सीता मन �
जैराम जैराम शीराम जैराम जैराम लागी सुने स्रवन मन लाई
आधि होते सब कथा सुनाई शवनामर्त जैही कथा सुहाई कही सो
प्रगट होती किन भाई तब हनुमन्त निकट चली गयो थिरी बैठी मन
विशमे भयो राम दूत मैं मातु जान की सत्य सपत करुणा निध
कप के बचन सप्रेम सुनी उप जाओ मन बेश्वास
जाना मन क्रम बचन यह करपा सिंधु करदास
हर जन जानि प्रेतियती गाण ही सजल नैन पुलका वली
बाड़ी बूढ़त विरह जलदी हनुमाना वयो तात मो कहु जल जान
अब कहु कुछल जाओ वली हारी अनुज सहित सुख भवन खरारी
कोमल चित क्रपाल रघुराई कप के हेत उधरी निथुराई
सह जबानि सेवक सुख दायक कब ओंक सुरत करत रघुनायक
कब ओंनैन मम सीतल ताता वैंहिनिर किस्यावं विम्रदु गाता
बचनन आवनैन भरी बारी अहनात हो निपट विशारी देखे
परम विरहा कुल सीता बोला कब इंबड़ो बचन बिनीता
मात कुछल प्रभुवनुज समेता तब दुख दुखी सुख क्रपानी केता
जर जननी मान नहों जी आओना तुम ते प्रेमराम के दून रगुपति कर
संदेश अब सुनु जननी धरधीर अस कही कभी गध गध भयाव भरे भी लोचन नीर
कहे वराम भी ओग तब सीता मोक हो सकल भये भी परीता
नवतर किसले मन हो कृशानु काल निशासम निच सशिभानु
कुबले भी पिन कुंत बन सरिसा बारिद तपत तेल जनु बरिशा
येही थे रहे करत ते पीरा उरग स्वास समत्र बित समीरा
कहे हूं ते कच दुख गटी होई काही कहों यह जानन कोई
तत्त प्रेम करमम अरुतोरा जानत प्रिया एक मन मोर
सो मनु सदा रहत तोही पाही जानु प्रीत रसेत नहीं माही
प्रभु संदेश सुनत वैदेही मगर प्रेम तन सुधी नहीं तेही
कहक अर्धय धीर धरू माता सो मेरी राम सेवक सुख दाता और आनहु रगुपति
प्रभुताई सुनिमं वचरत जहूं कदराई देशि चरनिकर पतंग समर रगुपति बान करिशानु
जनने अर्धय धीर धरू जरेनी साचर जानु जो रगुबेर होती सुधिपाई करते �
ज़राम ज़राम के ज़राम शीराम ज़राम ज़राम
चलेव नाई सिर पहथेव बागा फल खाये सी तरु तोरें लागा
रहे तहां भुफट रखवार कच्चु मारे सी कच्चु जाई पुकार
नात एक यावा कभी भारी तहीं अशोक बाट का उजारी
खाये सी फल अरुबी तब ओ पारे रच्चक मर्दी मर्दी मही डारी
सोनी रावन पथे भटना नाती नहीं देखी गर जेव हनुमान
सवरज नीचर कभी संघारे गई पुकार तकचु अधमार
पुनी पथे यो तहीं अच्छ कुमारा चला संगले सुभट अपारा
भूरी सुन सुत बधलंकेश रिशाना पथे सिमेगनाद बलवाना
महरसी जन सुत बांध सुताइं देखी कभी कहा करेयाँ
चला इंद्र जिते अतुलित जोधा बंदुन धन सुनि उपजा क्रोधा कभी देखा दारुन
भटयावा कट कटाई गर जारुधावा ति विशाल तरु एक ओपारा विरत ठीन लंकेश
कुमार रहे महाँ भटता के संगा गही गही कभी मरदाईन जेवंग तिनही निपात �
तुक लागी सभा सभे आई दाचमुक सभा दीक कभी जाई कही नजाई कच्छोधी प्रभुताई
गर जोरे सुर धिश्व भिनीता ब्रिकुट बिलोकत सगल सभीता देखे प्रतापन
कपी मन संकाजी में आई गनमहु गरुण असंकाई कपी बिलोकी दसानन बिहसा कही द�
देखे अति असंक सथ तोही मारे निशचर
केही पराधा कहु सथ तोही न प्राण केवाधा
पुनुरावन व्रह्मान्ड निकाया पाई जासो बलविर चितमाया
जा केवल विरंची हरी ईसा पालत सुरजत हरत दस जीसा
जा बलसीस धरत सहसानन अंडकोस समेत गिरकानन धराई
जो विविद देह सुरत राता तुम ते सथन सिखावन दाता
हर को दंड कठने जहीं बन जाते ही समेत निपडलमत गंजा कर दूशन
तुर सिरा अरुबाली वधे सकल अतुलित बलसाली जा केवल लवलेस तें जिते
हो चराचर ज्हारी तासु दूत मैं जा करी हरी आने हो प्रेनारी
जानो मैं तुम्हारी प्रभुताई सहस बाहुसन प
करी तो प्रभुताई सहस बाहुसन प
प्रभुताई सहस बाहुसन प
प्रभुताई सहस बाहुसन प
पाव गजरत देखी हनुमन्ता भयो परमलगुरूप तुरंता
देबुग चड़ेओ कभी कनक अटारी भयी सभीत निसाचरनाई
हर प्रेरित नहीं अवसराचले मरुतोंनु चास
अट़थास करी गर जाओ कभी बड़ी लाग आकास
श्रीराम जैराम जैजेराम श्रीराम जैराम जैजेराम तेह विसाल परम हरुआई मंदिर
ते मंदिर चड़धाई जरै नगर भालोग भी हाला जपट लपट बहुकोटी कराल तात मातो
हासुनी पुकारा इही अवसर को हमें ओबार हम जो कहा यह कपी नहीं होई बानर रू
मात मोहि दीजे कच चीना जैसे रगुनाईक मोहि देना
चूडा मणी उतारी तब दैवु अरस समेद बवन सुतलैव
कहें तात यस मोर परनामा सब प्रकार प्रभु पूरन
काम देन दयाल विर्द संभारी हर हो नात मम संकट भार
तात सक्र सुत कथा सुनाये हो बान प्रताप प्रभु समझायो
मास दिवस महु नातन आवा तो पुनि मोही जीयत नहीं पाओ
कहूं कपी केही विधिरात हो प्राना तुमहु तात कहत अभजान तोही
देखी सीतल भई चाते पुनि मोह कहूं सोई दिन सोई रात जनक उसते ही
समुझाय करी बहुबधी धीरज़ दीन चरन कमल सिरुनाय कपी गवनराम पहकीन
शीराम जैराम जैजैराम शीराम जैराम जैजैराम चलत महादुनि गर्ज सी भारी गर्भ
शवहि सुनि निष्चरनारी नाग सिंदुए ही पार ही आवा सबध किलकिला कपें
बंधाव अरसे सब्विलोकी हनुमानानू तन जन्म कपें तव जान मुगव्प्रसन्तन तेज�
नवल इतिहास तव मदुबन भीतर सब आये अंगद सम्मत मदुबल खाये रखवारे जब
बरजन लागे मुष्ट प्रहार हनत सब भागे जाय पुखारे तेजब बन उजार जो भरात
सुन सुग्रेव हरश कपे करियाई प्रभुकाज जो न होति सी ता सुधिपाई मद�
पुखारे तेजब बन उजार जो भरात सुधिपाई मद पुखारे तेज़ार जो भरात
सुधिपाई मद पुखारे तेज़ार जो भरात सुधिपाई मद पुखारे तेज़ार जो
भरात सुधिपाई मद पुखारे तेज़ार जो भरात सुधिपाई मद पुखारे तेज
पुखारे तेज़ार जो भरात सुधिपाई मद पुखारे तेज़ार जो भरात सुधिपाई
मद पुखारे तेज़ार जो भरात सुधिपाई मद पुखारे तेज़ार जो भरात
सुधिपाई मद पुखारे तेज़ार जो भरात सुधिपाई मद पुखारे तेज़ार जो
जोनत करतान दिमन अतिभाये पोनी हनुमान हरशी हेलाये
कहाँ थात कही भात जानकी रहती करती रच्छास प्रानक
नाम पहारू दिवसनसी जान तुमार कपाथ
लोचन निज़ पद जंत्रित जाने प्रानक ही बात
चलत मोही चूडा मनी दीनी रगुपतेर दैलाई स्वेलीनी नात जुगल लोचन भरी बारी
बचन कहे कशुजन ककुमार अनुच समेत गहें प्रवुचरना दीन बंद प्रन तारती
हरन मनकरम बचन चरन अनुरागी कही अपराध नात हो त्यागी अवगुन एक मोर मैमान
विलोकी मुख गात हरस नुमंत चरन परेव प्रेमा खुल त्राही त्राही भगवन्त
बार बार प्रवुचरन उठावा प्रेम मगनते उठवन भावा प्रवुकर पंकज कपिके सीसा
सुमेरि सुदर सामगन गौरी सावधान मन कर पुनिशंकर लागे कहन कथाती सुन्द क
प्रव प्रसन जाना हनुमाना बोला वचन विगत अभिमान साखा मृक्के बड़ी मनुसाई
साखा ते साखा पर जाए नागि सिंदुहा टकपुर जारा निश चरगन बधी विपिन ओजार
सो सब तब प्रताबर घुराए नाथन कच्चु मोरी प्रभुताए ता कहूं प्रभु
कच्चु अगम नहीं जापर तुम अनुकूल तब प्रभाव बढ़वान लही जार सकै खलुतूल
नाथ भगत अति सुख दायनी ते हुः करपा कर अनुपायनी सुन प्रभु परम सरल
कपी बानी एव मस्तु तब कहो भवान पुमाराम सुभाव जह जाना ताही भजन
तज़ुभावन आन यह संबाद जासूर आवा रघुपति चरन भगति सुईपाव सुन प्रभु ब
पिन कहो आये सुधीज भवतुप देखी सो मन बहु बरशी नवते भवन चले सुरःरशी
पपी पती वेगी बलाये आये जूत पजूत नानावरन अतुल बल बानर भालु बरूत प्रवपद
पंक जनावही सीसा गरजही भालु महाबल कीसा देखी राम सकल कबिसे नाचित
प्रवपद पंक जनावही देखी फरके बाम अंग जनु कही देखी जोय जोय सगुन जान
की ही होई असुगुन भैव राम नहीं सोई चलाक टको बरणे पारा गरजही बानर भालु
पार नक आयुध गिरी पाद पधारी चले गगनम ही इच्छाचारी के हरिनाद भालु क�
छ्येकर नहीं दिकज डोल मही गिरी लोल सागर खर भरे
मन हरश सब्गंधर्व शुर्म नी नाग किनर दुख तरे
कतकतही मरकट भिकट भट भहु कोटी कोटी न धाववही
जैरांब प्रवल परताप कोशल नाथ गुन गनगाववही
सैसकन भार उदार आहे पति बार बार है मोहै
गहधसन पुनपुन कमथ प्रेश्ट कटोर सोक में सोहै
रखोबेर रुचिर प्रयान प्रस्थित जानी परम सुहावनी
जनु कमथ खरपर सर्पराज सुलिखत अभी चल पावनी
एविद जाई क्रिपान धी उतरे सागर तीर जह तह लागे खान फल भालू भिकल कपीबीर
उहानि साचर रहा है ससंका जबते जारी गय उकपीलंका
निजन जगरह सब करही विचारा नहीं निसिचर कुल केर ओ बार
जासु दूत बल बरन नजाई तहीं आये पुर कवन भलाई दोतिन सनसुन पुर
जनबाने मन दो दरी अधिक खुलान रहसि जोर कर पति पगलागी बोली बचन
नीतीर सपागी कंत करश हरी सन परीहर हुँ मूर कहा अतीत ही धरव
समुझत जासु दूत कै करनी श्रवही गर्भरज नीचर धरन ता सुनार नीज सच्चिव
बलाई पठ बहु कंत जो चहव बलाई तब कुल कमलव पिन दुख दाई सीता सीत निसा समाई
सुनहुनात सीता बिन दीन हे हितन तुमार सम्हुजकीन रामवान अहिगन
सरिस निकर निसा चरभेक जब लगे गर्शन तब लगी जतन करवत जितेक
श्रवन सुनी सट्थ ता करिबाने बिहसा जगत बिदित अभिमान सभै सुभाव नारी
करसाचा मंगल महु भैमन अतिकाचा जो आवै मर कट कट काई जियें भेचारे निश चरखाई
कम पहलोक पजा की त्रासाता सुनार सभीत बड़ी हासा
अस कही बेहसिता ही उरलाई चलेव सभा ममता अधिकाई
मन दोधरी हर्दाई करे चिंता भै उकंत पर विधिविपरीत
मैठेव सभाखभरी सिपाई सिंधु पार सेना सब आई
वो ज़्यसी सचेव ओचितमत कहा हूं ते सब आहसे मस्ट करी रहा
हूं जिते हु सुरासुर तव शमना ही नरबानर कही लेके माई
सचेव वैद गुरुतीन जो प्रेबो लहिब है आस राजधर्म तनतीन कर होई बेग ही नास
सोईरावन कहू बनी सहाई अस्तुति करही सुनाई सुनाई आवसर जानी विभीशनु
आवा भ्राता चरन सीस तहिनाव पुनिजरुनाई बैठ निजे आसन बोला वचन पाई अनुसास
जो खृपाल पूछीव मुझे बात मतियन रूप कहां हूई ततात जो आपन चाहे कल
बच्चाई नहीं सोई उन सागरणागर नरजोवू अलप लोब भल कहै न को
काम क्रोध मदलोब सब नाथ नरक के पंथ सब
परी हरी रगू भी रही भजव भजएँ जें संत
तात रामनेन रभू पाला भूवने स्वरकाल हूँ करकाल
ब्रह्म अनामे अज़ भगवनता व्यापक अजित अनाधी अनंत
पोद्युज धेनु देव हितकारी कृपा सिंधु मानुशत नुधार
जनरंजन भंजन खलब्राता वेद धर्म रच्चक सुनव्राता
ताहि बैरुत जिनाय माता प्रनतारति भंजन रभुनाता
देहुनातु प्रभु कहु बैदेह भजव राम विनहेत सनेह
सरण गये प्रभुताओन त्यागा विश्व द्रोह कृत अगज़ हिलागा
जासुनाम त्रेतापन साउन सोई प्रभु प्रगट समुझ जियराओं बार बार
पद लागाओं विने कराओं दस्तीस परिहरेमान मोहमद भजव कोसल अधीस
मोने पुलास्तिनी जिसे सेशन कही पठाई यह
बात तुरस्ट में प्रभुषन कही पाईसव वसरुतात
रे पुत करशक हत सथ्थ दोओं दूरिन करहुया इहको
मालेवन्त ग्रिह गयाओं बहोरी कहाई विवीशन पुनिकर जोरि
सुमत कुमत सबके उरे रहे ही नाथ पुरान निगम असक हैं
जहां सुमत तहं संपति नाना जहां कुमत तहं विवति निधान
तब उरो कुमत बसी विपरीता हितन हितमान हुरप प्रीता
आल रात निसचर कुल के रीत ही सेथा पर प्रीति घनेर
तात चरन गही मागव राखव मुर दुलार सीता देव राम कहूं अहितन होई तुमार
बुद पुरान शुति सम्मत बानी कही विवीशन नीति वखान
सुनत दसानन उठारि साई खल तो ही निकट मृत वजाए
जीयसी सदा सथ मूर जीयावारिभ कर पच्छ मूणते ही भावा
कहस नखल असको जगमाही भुजबल जाहिजता मैनाए
मम पुरवसी तब सिन पर प्रीति सथ मिलुजाए तिनही कहूं नीति
अस कही कीनसी चरन प्रहारा अनुज गहे पद बार ही बारा
उमा संत कैही है बडाई मंद करत जो करई भलाई तुम
पितु सरी सभले ही मोहे मारा रामु भजे हितनात तुमारा
सचिव संगले नपद गयव सभई सुनाई कहत अस भयव
रामु सत्ति संकल्प प्रभू सभाकाल बस तोरी
मैं रखुबीर सरन अब जाओ देंँ जनिखोरी
अस कही चला विभीशन जबही आयो हीन भये सब तबही साधु अवज्यातुरत भवानी कर
कल्यान अखिल केहानी रावन जबही विभीशन त्यागा भयो विभोबुन तबही अभाग चलु
हर सिर घुनाएक पाही करत मनोरत बहुमन माई दिक्खे हुझाई चरन जल जाता �
पाप मयत नहीं बिलोकत हानी कोटी विप्रबधलाग
ही जाहूं आये सरनत जाओं नहीं ताओं
सनमुख होई जीव मोही जबही जन्म कोटी अगनास ही
तबही पाप वंत कर सहस भाव भजन मोरत ही भावन काव
पाप मैं दोश्ट हर्दाय सोई होई मोरे सनमुख आव की सोई यरमल मन जन सोमोही
पावा मोही कपट चल छिद्रन भाव भेदलेन पठवादस सीसा तबहून कच्छुभेहानी
कपीसा यगमहु सखानी साचर जेत लच्छिवन हनाई निमिशम होतेत यो सभीत आवासर ना
उधरि कश्र्नकी साथ
भुज विशाल गई हर्दे लगाव
अनुज सहित मिली धिक बैठारी
बोले बचन भगत भैहार
कहलंकेस सहित परिवारा
कुसल कुठा हरवास तुमारा
खल मंडली वसहु दिन राती
सखा धर्म निवही के बात
मैं जानो तुमारी सबरीती अति नैने पुनन भाव अनीत
बरुभल बासन रक गरताता दुष्ट संग जनि देविधाता
अपपद देकी कुसल रघुराया जो तुम की नि जानी जन दाय
तब लगे कुसलन जीव कहूं सपन हु मन बिश्राम
जब लगे भचतन राम कहूं सोक धामत जिकाम
तब लगे हर्दाय वसत खलनाना लोभ मोह मच्छरम दमान
जब लगे उरन वसत रघुना था धरें चाप सायक तिभा था
ममता तरुन तमी अधियारी राग द्वेश उलूक सुखकार
तब लगे वसत जीव मन माही जब लगे परोपरता पर विनाय
अब मैं कुसल मिटे भैभारे देखे राम पध कमल तुमार
तुम कृपाल जापर अनुकूला ताहिन व्यापत्र विद भोशूला
मैं निसीचर अति अधम सुभाओ सुभाचरन कीन नहीं काओ
जासुरोप मुनि ध्यानन आवा तेहिं प्रवहर
शिहरे मुहिलावा हो बाग्यमम मित अति
राम कृपा सुखक पुञ्ज देखे उनैन विर्यंच शिवशेब जुगल पध कंज
सुनहु सखानिज कहाओ सुभाओ जान भुसुंदि संभु गिरिजाओ
जौनर होई चराचर द्रोही आवे सभै सरंत की मुहिलावा
तजिमद मोह कपट चल नाना करव सद्धेते ही साधु समान
जननी जनक बंद सुत दारा तनु धनभवन सुहद परिवार
सवके ममता ताग बटोरी मम पदमन ही बांध बरीडोरी
समधर से इच्छा कच्छुना ही हरश्चोक भय नहीं मनमाईं
असधध जनमम ओरवस कैसे लोभी हरदय बसे धनुजैस
तुम सारी के संत प्रेमोरे धरावु देह नहीं आननी होरी
सगुन उपासक परहित निर्तनीत द्रिधनेम
ते नरप्रान समानमम जिनके दुज पदप्रेम
सुनु लंकेश सकल गुन तोरे ताते तुम अधिसे प्रेमोर
रामबचन सुनि बानर जूथा सकल कहें जै किर्पा बरूत
सुन तवे भीशन प्रभु कैवानी नहीं अघात सर्वनामित जान
पदअंबुजिगहि बारहि बारा हर्दय समातन प्रेमु आपार सुनहु देवस चराचर स्वामि
प्रत पाल उर अंतर जाम उर कजो प्रतं बासनारही प्रवुपदपीति सरित सोबही
अब करपाल निज भगत पावनी देहु सदाशिव मन भावनी
एवा मस्तु कही प्रवुरन धीरामा गातुरत सिंधु करनीर
जद विसका तवे इच्छा नाही मोर दरसु अमोग जगमाई
अस कही रामति लगते ही सारा सुमन व्रिष्टि नव भईय पार
श्रुड़ करने के बिसिका वीप ओहताय रामति गड़े
बिसेवीलियो दिम्याज़ेवने दालते ही तऍरैंक्रीश
प्रभु सुभाव कपिकुल मनभाव
पुनि सरवग्य सर्व ओर बासी सरव रूप सबरहित उदास
पोले बचन नीत प्रतिपालक कारण मनुज तनुज कुल घाल
सुन कपीश लंका पति बीरा केह विधितरी जलिदि गंभीरा
संकुलम करऊ रग जग जाती यति अगाध दोस्तर सबभाती कहलंके ससुन रगुनायक
कोटि सिंदु सोशक तब सायक जद जवितत विनीती असी गाई विनै करी सागर सन जाय
प्रभु तुमार कुल गुर जलधी कहीं उपाय विचारी
बिन प्रयास सागर करी ही सकल भालुक पिधारी
सखा कही तुम नीकी उपाय करी दैव जो होई सहाय
मंत्रनेह लच मन मन भावाराम बचन सुनियति जुख पाव
नात दैव कर कवन भरोसा सोखी सिंदु करी मन रोसा पादर मन कहुए क्या धारा
दैव दैव आलशी पुकारा सुनत भी हसी बोले रघु बीरा ऐसे ही करब धरहु मन धीरा
अस कहे प्रभु अनुज़हि समुझाई सिंदु समीप गए रघुराई प्रतं प्रनाम
कीन सिरुनाई बैठे पुनित धरभडसाई जबहिं विवीशन प्रभु पही आए पाचे रामन
दूत पठाए सकल चरित तिन देखे धरवी कपट कभी देए है प्रभु कुनिरदै
मम संदेश ओदार सीता देई मिलहुनत आवा काल तुमार तुरत नाई लच्चमन पदमाता
चले दूत बरनत गुन गाता कहत राम जसुलंका आए रावन चर्ण सीस तिन नाए
बिहसिदसानन पूची बाता कहसन सुक आपने कुसलाता पुनिक खवर विवीशन केरी जाहिं �
जिनके जीवन कर रखवारा भयों रदुल चित सिंधु विचारा कहु तपसिन
कै बात बहोरी जिनके हर्दय त्रासियती मोरी की भई भेटक फिरी गए
स्रवन सुझस्ट सुने मूर कहसन रिपदल तेजबल बहुत चकत चित चूर
नाथ कृपा कर पूचे हुँ जैसे मान हुँ कहा क्रोधत तैसे
मिला जाए जब अनुज तुम्हारा जाते हैं राम तिलकते हैं सारा
रामन दूत हम अहि सुने काना कपेन बाद दीने दुख नाना
स्रवन नासिका काटे लागे राम सपत दीने हम त्यागे
उच्छिवनात राम कटकाई बधन कोटी सत वरनिन जाई नाना
वरन भाल कपी धारी विकटानन विशाल भैकारी
जैंपूर्देह उहते उसत तोर सकल कपेन महते ही बल थोर अमित नाम भट कठिन
कराला अमित नाग बल भिबुल विशाल दिविदमंद नीलनला अंगदगद विगठास दधमुके
हरिन सट्सथ जामुवंत बलरास एक अभिसबसुक ग्रीव समाना इन समकोटिन गनै कुना
अगर विशाल दिविदमंद नीलनला अंगदगद विशाल दिविदमंद नीलनला
अंगदगद विशाल दिविदमंद नीलनला अंगदगद विशाल दिविदमंद नीलनला अंगदगद
विशाल दिविदमंद नीलनला अंगदगद विशाल दिविदमंद नीलनला अंग
विशाल दिविदमंद नीलनला अंगदगद विशाल दिविदमंद नीलनला अंगदगद
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विशाल दिविदमंद नीलनला अंगदगद विशाल दिविदमंद नीलनला अंगदग�
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विशाल दिविदमंद नीलनला अंगदगद विशाल दिविदमंद नीलनला अंगदग�
प्रभु अग्या अपेल शुति गाई करवं सो बेगिज तुम्हे सोहाई
सुनत विनीत बचन अतेक है करपाल मुस्काई
जही विधूतरे कप कटकू तात सुकह हो पाई
नाध नीलनल कप दो भाई लरिकाई रिशी आशिश पाई
तिनके पनस की गिरी भारे तरी हैं जल धी परताप तुम्हारे मैं पुनी उर्धर
प्रभु ताई करी हूं बल अनुमान सहाई यह विधिनाथ पयो दिवन्धाई जही है सुज सुलोग
तेही गाई यही सरमम उत्तर तटबासी हता हुनाथ खलनर अघरासी सुने करपाल सा�
शी रौंा ***-yoga
me upथा ढी उथ पंडेन एक � Campus Na
अंचम सूपान श्रीमदमानसुन्दरकांड समाप्त
बोली राजराम चंद्र की जय
बोली बजरंगवली की जय
नमः पार्वती पतै
हार हार महादे
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