ये रात मदोशी में लगशरी पाने की कोशिश है
सबने में देखो बढ़नी नहीं आता ना जाने
क्यों क्या क्या हम खो चुके रो चुके
कुछ से वफ़ा है ये सिंतेगी बनी गवा है
और कर्मा भी बनता फना है
फिकर मोका मिलता सा सहल मुराद खुदा से भी बस एक
राफ़ता राफ़ता देखू अर्श पे
सेकर उसका मेरे लवस पे
मैं खोना चाता अपने आप से
तला पानी का ना सहर मिला के पिला दो
मिला दो जस्पातों में जान नहीं बाकी है
काफिला काफी है तूर अकेले मैं घोमू अब खुद का ही सरफीरा राही
सहन में दिक्कते ना पीए मासे मांगी मैंने माफी है
आज भी आसू बहाती है कैदी बनता कुछ का कातिल है
कैदी बनता लड़ता बापी है लड़ता हडामी
बहती कंगा सब दोते हाथ साथ देने वाला ना कोई बाकी है
कुछाइश करूँ ये नुमाईश मेरा और क्वाबों में क्वाईश भी रोज सताती है
करता रहता स्टूडियो में क्राइंड धंडी हवा हमें काफी सताए बढाए
बने लोग जितने भी आए वो काम निकाले ना रिष्टा निपाए क्या हाल
बागा चला करमों से मैं तो काफी दूर ध्यान नहीं धर्मों में धर्ना वजूद
खाओ नहीं जखमों को नोच के नसूर अब आए क्या हाल
उसाफिर भी रासी हुसूर लिफाफिय में � ढाला सुरूर
बूतने बढ़ता गुरूर अंधेरे में नहीं ये जुनून
अब धूइये से मिलता सुखून और आखों में नहीं ये बूंद
आँसू का नहीं ये बूंद अब धूइये से मिलता सुकून
हाँ, मैं पड़ेशानीयों में पला बड़ा देखे अपनी बाप को वो गम में शराप को बुकारता
रमी आँखों से सुनी मा के चीकी चला पैदल रास्ते बिन चपलों के काटा
अलफासों में दम है और हातों में रम है अब सिबने से लिप्टा भी गम है
और चेहरे में दागे अब मियत न साफ है अब आजी को चाहिए पसराग है
रहा चुपने का सब लगा मौनदत न चला आगे किस मन से न परकत
सुर्मा आत्मे न ढूल करती हरकत अंधेरा देखने पे आत्मा को थंडक
कौन सा पैसा है जो खुशियों को दाम देगा पर बिना पैसे से न खुशियों का दाम मिला
और बारा वनने पे बड़े शानी दाग देता कलम के प्यास से फिर बूर का वो आग बुड़ा
खुला आँख मैं गुलाम ना कोई भाजशा नवा भी खुआईश का मैं रोज एक गुलाम था
हराम था उसके धर में शेतान था इंसानी रूप में वो नाम लेता राम का
किसको तेना दोश खुद को खुदा रोश शराबी हाल रोज इलावी चाल डोस
आत्म मोक्ष मेरी रूप लेती जासोस दिलापास से आवास से अलफास दोस्त
मेरा हमास्त अभी नहीं देता फ़क दमबास और फ़क दे जाओ मुझको दूब
दे जाओ मुझको दूब दर्दे सफर
हुआ है