तो कहते हैं
कि मनुष्य को सबसी पहला जो उपाए है
सुस्त रहने का
सरीर को भी और मन को भी
सुस्तता दो प्रकार से होती है
एक सरीर से और एक मन से
हर मनुष्य को प्राता काल जल्दी उठना चाहिए
हमारी हिंदू शनातनी बेदिक परमपराह है ना
बहुत अद्भूत है महराज़, अद्भूत विज्ञानिक है
इससे बड़ा विज्ञान यह कहीं है,
नहीं संसार में,
दुनिया में
सास्त्र कहते हैं मनुष्य को प्राता उठना चाहिए
और प्राता उठकर ही हमारी साधना प्रारम हो जाती है
औल आ बी आ बुस्तर पी हैं और बिस्तर पे ही आ पी पूज钏 चालू हु गई
प्राता उठ जल लेनम और उठ कर क्या करें
हाथों का दर्शन करें
कितनी सुनदर बात है
और दर्षन करति ही क्या कने!
कराग्रे वस्ते लक्षमी
कर्मस दम्हे thee सर सवती
करमूलेतु कोबिंटम
प्रभाते करिभतर्षनम।
इतनी सुनार सभी क persec", कराग्रे वस्ते लक्षमी
कराग्रे वसृत लक्षमि
करागरे बस्ते लक्षमी
आप महनव करोगे
परिश्रम करोगे तो आपको लक्षमी
अवस्थ प्राप्त होगी
करागरे बस्ते लक्षमी
और जब आपने महनव करके
जो धन कमाया है ना, उस धन का
इधे आप सदूपियोग करोगे
धन को धर्म में लगाओगे तो कर्मद्धे सरस्वती
उस धन के माध्यम से जब आपने अपने धन का सदुप्योग किया
अब देखिए हमारे सुपला जी ने कहां रहते हैं
कहां निवास है क्या कारे हैं लेकिन कहा नहीं
पर पर ताकुर जी ने दिया है उसको ताकुर जी
की चरणों में लगाना है सबकर्म में लगाना है
पर महराज धर्म करने से कभी धन घट्टा नहीं है
संद्धजन कहते हैं ना कि तुलिसी पंची के पिए घट्टे न सरी तानीर
अधर्म की धन ना घट्टे हैं सहाई दो गोबीर
तो यदि आपने जो धन कमाया हैं उस धन को आप धर्म में लगाओगे
तो करमर्धे सरस्वती अरथात आपको ज्यान भी प्राप्त होगा
और आपको जो ज्यान प्राप्त हुआ है उस ज्यान की माध्यम से
गोबिंद को जानेने का प्रयास करेंगे
तो करमूलेत गोबिंदम प्रभाते कर धर्शनम
अब आप बताये इतना सुन्दर बैदिक सनातन हिंदू धर्म के
अभी हम बिस्तर में हैं कहीं नहीं गए हैं
लिकिन प्रारम से अंत तक ता ज्यान मिल गया हमें
इस भारत वर्स में जनाकी याद मैं अठायत खिलाहें कि अपनी अवार
प्रशु जीवन के साथ साथ और महराज दूसरी करपा यह है
कि बच्चपन से ही अगरजों का संतों का आशिरबाद मुझे
प्राप्त हुआ ठाकुर जी आपकी बहुत बहुत बड़ी करपा है
पर सबसे बड़ी करपा तो यह है कि आपने अपनी ही कथा कहने
और सुनने की सेवा पढ़ान कर दे प्रशुरुजान वाले करते हैं
इस से बड़ी पड़िपा क्या हो सकती है?
मैं तो कहता हूँ एगुविन्द एगुविन्द थाकुर
तिरी कथा कहते कहते ही ये प्राण निकल जाएं
अंत समय तक तिरी कथा का सानिद और तिरी कृपा रहें
तुकाचार महराज बड़ा सुन्दर भाव प्रगट कर रहे हैं
अभी देखिये हम विस्तर से उठे नहीं हैं
लेकिन जीवन का सार्च समझ में आ गया
फिर क्या करें?
अपने हाथों का दर्शन करें महराज और फिर माता प्रत्वी कूपरणाम करें
मा प्रत्वी उपर पेर रखने के पुरव मा से कहें के है मा
समुत्र वसने देवी परवतिस्तन मंडले
विश्णुपती नमस्तुभ्यम् पादिस्पर्सम् चमस्मे
मा मैं कर्म करने के लिए आपके उपर पेर रखना हूँ
मा मुझे चमा करें
ऐसा निवीदन करें और फिर नित्य कार करनी का प्रयास करें
ऐसी जब बार बार करेंगे तो भगवान की
करपासे आपका यह मन रूपी जो चंचल है मन
यह मन धीरे धीरे इस्तिर हो जाएगा धाकुर जी के चरणों में
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