Nhạc sĩ: Traditional
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वोलिये श्री किष्ण भगवान की जेव!
प्रीय भक्तों,
श्रीमत भगवत कीता का बारवे अध्याय आरम्ब करने जा रहे हैं
और इसकी कथा है
भक्ती योग
नाम से इसपश्ठ है भक्तों
कि इस कथा को सुनने में बड़ा आनन्द आने वाला है
भक्ती का रस्ट तपकने वाला है
जितना चाहें उतना आप ले लीजिये
तो आईए आरम्ब करतें इस कथा को
पुछा जो भक्त सदेव योग युक्त हो आपके साकार रूप का भजन पूजन और
आराधना उपासना विधी पूर्वक करते हैं और वे पुरुष जो निराकार ब्रह्म
के रूप में आपका चिंतन और भजन करते हैं इन दोनों में कौन शेष्ट है
श्रीभगवान बोल
वे उत्तम योगी हैं निराकार के उपासक जो इंद्रियों को संयमित करके और
सर्वत्र सम्द्रश्टी रखकर मुझ में लगे हुए अकतनीय अव्यक्त सर्वव्यापी
अचिंतनीय निर्विकार ब्रह्म का चिंतन वे
भजन करते हैं वे मुझे प्राप्त होते हैं
एपार्थ जो प्राणी अपने सब कारियों को
मुझे आरपन करके मेरी शरण में आ जाते हैं
मैं उन शरण में आये हुए भक्तों का थोड़े
काल में संसार सागर से उध्धार कर देता हूँ
इसलिए तुम मुझे में ही मन और बुद्धी रखो
तब तुम मुझे में निवास करोगे
इसमें कुछ संदेए नहीं है
यदःननज्य जदि प्रारंब में तुम इसपरकार मुझे अपने चित को लगाने में समर्थ
नहीं हो सको तो योगा भ्यास द्वारा मुझे पाने के लिए बारंबार यतन करो
यदि अभ्यास भी नहीं कर सको तो मेरे उध्धेश से वृत करो
मेरी लिए तुम ��
अपना कर्म करूँ।
हे अर्जुन,
अभ्यास से घ्यान,
घ्यान से ध्यान और ध्यान से भी कर्मों के फल का त्याग श्रिष्ट है।
त्याग से तुरंद शान्ती प्राप्त होती है,
जो किसी से द्वेश्ट नहीं करता,
सबका मित्र है,
दयावान है,
मम्ता और एहंकार जिसमें नहीं है।
जो ख्षमावान और संतोषी है,
इस्तिर्चित है,
इंद्रियों को वश्मे रखता है,
द्रह विश्वासी है,
मुझ में अपना मन और बुद्धी लगाय हुए है,
जिससे किसी को भै नहीं है,
हर्ष,
ईर्शा,
भै और विशाज से जो रहीत है,
जो कुछ मिले,
उसी में संत�
है,
वह मुझे सर्वाधिक प्रिय है,
जो लाब से प्रसन्य और हानी से खिन्ण नहो,
किसी से द्वेश नहीं करे,
भली बुरी वस्तू पाने का हर्ष, शोक नहीं करे,
शुब और अशुब इन दोनों का समान भाव से त्यागी हो,
जिसे शत्रू, मित्र,
सुख, दुख,
मान
ता है,
वाचाल नहीं है,
जो यह नहीं समझता,
कि यह मीरा घर है,
वह मीरा प्यारा है,
मुझ में शद्धा रखते हुए,
मुझे मान कर इस अम्रित के समान कल्यान
कारी मेरे उपदेश के अनुसार करते हैं,
ऐसे निषकाम भाव से कर्म करने वाले भक्ष
मुझे सबसे �
प्रिये भक्तों,
इस प्रकार यहां पर श्रीमत भगवत घीता
का ये बार्मा अध्याय समाप्त होता है,
स्नेहें और शद्धा के साथ पो लेंगे,