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Shrimadbhagwat Me Shri Kaun Hai

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Lời bài hát: Shrimadbhagwat Me Shri Kaun Hai

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

अभी जो हमने भगवान नाम संगीर्तन किया,
गोबिंद नाम संगीर्तन किया, इसकी महिमा क्या है?
इस संगीर्तन की क्या महिमा है?
बिन भोजन पानी बिना
उदर मचावे क्रांती
जस प्रकार पेट की भूग को सांध करने के लिए भोजन की आवस्था होती है,
उसी प्रकार इस मन को सांध करने के लिए संगीर्तन की आवस्था होती है,
और जस प्रकार हम अपने तन को पवित्र करने
के लिए नाना प्रकार की साभून लगाते हैं,
उसी प्रकार इस मन को पवित्र करने के लिए
संगीर्तन रूपी साभून लगाना परम आवस्थग है,
महाराज,
जस प्रकार
हाती को वस्मे करने के लिए उस महावत को अंकुस्थवाना परता है,
इस मन रूपी हाती को वस्मे करने के लिए
संगीर्तन रूपी अंकुस्थवाना परम आवस्थग है,
इसलिए
आप और हम अपने इस मन को ववित्र करने के लिए संगीर्तन करते हैं,
महाराज,
यह है जो हमारा मन है,
इसकी गती बड़ी तीप्र है,
कैसे?
जैसे अभी आप कथा में विराजमान हैं,
पर आपका मन
कहीं और लगा हो, हो सकता है,
महाराज,
इसलिए इस मन को पवित्र करने के लिए,
वस्म करने के लिए भगवन नाम संगीर्तन आप और हम करते हैं,
और कहा,
कि जब हम
जै बोलते हैं,
जब हम हाथ उठाते हैं,
इसकी पद्धिती क्या है,
हम हाथ क्यों उठाते हैं?
तो किसी न कहा,
कि सब अपने अपने श्ट को नमन करते हैं,
एक बार प्रेम से बोलिये, राधे राधे,
और जोर से, राधे राधे, और जोर से, राधे राधे,
तो हम ये राधे राधे क्यों बोलते हैं,
इसका कारण क्या है?
आप और हम
अपने श्ट को नमन करते हैं,
और
सरवस्य प्रदान करने वाली,
वो तो हमारी सिरी राधा राणी हैं,
जिस प्रकार,
जब हम किसी भीड में फ़स जाते हैं,
तो अपने दोनों हाथों को उठाकर के सामने वाले से कहते हैं,
कि हमें राह दो,
उसी प्रकार
हम इस संसार रूपी भीड में आकर के फ़स गये हैं,
और हम अपने दोनों हाथों को उठाकर स्री राधा राणी जी से कहें जी,
आप कुछ किरपा करें और
हमारा मन आपके स्रणों में लग जाए,
हमको गोविन्द की प्राप्ती हो जाए,
इसलिए हम राधराद्र बोलते हैं.
महाराज,
स्रीमदभागवत महापुरान में बारा अक्षर हैं,
इनकी महाराज एक-एकी वाक्ष्या का वरनन किया है,
यदि महाराज
हमारे मुक से
अनायास स्रीमदभागवत सब्द निकल जाए,
तो पता नहीं हमें कुछ लाव प्राप्त होता है.
स्रीमाने क्या है?
क्यों?
क्योंकि ये जो स्रीमदभागवत महापुरान है,
इसका पहला अक्षर स्री है.
स्री के कहते ही स्री चरणन में वास होते हैं,
तो कहा कि ये स्री कौन है?
जिनका हम अपने अदैमे में वास करने,
जिनकी चरणों में हम
प्रनाम कर रहे हैं, ये कौन है?
तो कहा ये स्री राधाराणी है,
बोल ये राधाराणी सरकार की.
ये स्री कोई और नहीं है,
ये है तो हमारी स्री राधाराणी ही स्री हैं.
स्री मानो राधा,
स्री मानो एश्वर,
महराज,
यदि हमारे मुख से स्री एकचार निगल जाता है,
तो हमें राधाराणी जी के चरणों की रज प्राप्त हो जाती हैं,
उनकी चरण हमें प्राप्त हो जाते हैं,
और
यदि हमें स्री कृष्णे का चिंतन करना है,
तो
पहले हमें राधाराणी का चिंतन करना होगा.
एक बात और,
कि महराज,
राधाराणी में, भगबान में कोई अंतर नहीं है,
स्री कृष्ण तत्व राधा, राधा तत्व कृष्ण,
राधा ही कृष्ण है, कृष्ण ही राधा है,
और जब तक हम किसी चीज़ के वारे में जानेंगे नहीं,
तब तक उसके परती हमारी स्ट्रद्ध कैसे जाकरत होगी?
बावा जी लिखते हैं
बावा जी क्या कहते हैं

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