मैं भजन गाता हूँ एक कि कभी राम बनके कभी श्याम बनके चले आना
आपके अंदर भी राम का गुण होना चाहिए
उस देश में तुम्हारा जनम हुआ है
जिसमें राम जैसे भगवान, कृष्ण जैसे भगवान, मीरा जैसी भक्ति मती
नारी, शिवरी जैसी भक्तिवान महिला का भी अवतार हुआ था
राम के कुछ गुण धारण कर
प्रेम के शागर बनो, गम खाना सिखो, शरल बनकर जीना सिखो
ये क्रोध और लोब है
ये क्रोध और लोब है
ये हंकार और इर्शा दोस
इसको निकाल कर बाहर करो
इस जमाने के प्रभू सागर हो तुम
प्रेमियों के प्रेम के सागर हो तुम
प्रेमियों के प्रभू सागर हो तुम
प्रेमियों के प्रभू सागर हो तुम
प्रेमियों के प्रेम के सागर हो तुम
प्रशन रहने वाले बच्चे रहते हैं सेवा सील नारिया निमास करती है और जिस घर में मुश्कराती ही एक कोतोभू सबके कार्यों को करती है वो घर धरती का स्वर्ग होता है
जिस गुरु के आश्रम में सभी शिष्य लपट कर जपट कर चिपट कर सेवा करते हैं
सभी शिष्य बुद्धिमानी की प्रेड़ेता बनते हैं और आश्रम को चमका करके स्वर्ग जैसा बनाते हैं
वह गुरु हमेशा सुखी रहता है
है और जो गुरु बुद्धिमान होता है समझदार होता है जिसका डिसीजन ए टू जेट कंप्लीट राइट होता है उसके
शिष्ट भी बड़े खुशाली को प्राप्त करते हैं इसलिए याद रखना चाहे संत बनो या ग्रहस्त बनो अपने शुभाव को
गोव बदला कि चिर्चड़ा सुभाव पाम का है टेंशन में रहने का सुभाव है जैसा है तैसा है लेकिन थोड़ा शुभा
मैं कितने लोग हर समय ऐसा मात्र चढ़ाई है इस हर समय गुस्सा नहीं रहते हैं शाद चिंता में ही राता है
उनकी पतनी भी कहती है क्या बात क्या है
खुश क्यों नहीं रहते है
वो कहते है हम शुरू से ही ऐसी रहते है
तो शुरू से ऐसी कैसे रहते है
बच्चपन के फोटू हस्ते मस्कराते फोटू
जे जे उमर बढ़ रही है
हसी खुसी विदा हो रही है
और इस दुनिया में कितना तुम दुखी रहो, चिंतित रहो, टेंशन में रहो, चिर्चडे बनो, ये दुनिया जैसी की तैसी रहेगी, ज्यादा सुधरने वाली नहीं है, ज्यादा इसमें ठीक ठाक कुछ होने वाला रहेगी, बस
बस, कान्टों की बीच में जैसी गुलाब का फूल खिलता है, ऐसे अपनी जिंदगी के बगीचे में, इस दुनदफंद के बीच में ही, अपनी जिंदगी के गुलाब को खेलाना सीखो, मुश्कराकर जीना सीखो, ये टेंशन में जिंदगी को क्यों बरबात करते हो, एक दि
बिजनेस साथ जाएगी ना राजनितिक पद साथ जाएगा लेकिन ये जिन्दगी तो नरक बन जाएगी इस जिन्दगी को हस्ती हुई जिन्दगी बनाईए और मुस्करा कर संसार में जीना सिखी