एकों का सत्वुर्पर्साँ
स्री जब साहिब
एकों का
सत्ना करता पुरक
निर्भाव निर्वेव
अकाल मूरत आजूनी सहवा गुरपरसाद जब
आज
सच
जगद सच है भी
सच नानिक उसी भी सच
पौरीं फकत पड़ दिन या बुद दिन तफैज रसंदो केतरो
जेसी अखर अखर जो अर्त हंदायदो की नहीं है सा
तेसी वेंदो कीन अंदर जो आपो अहंकार है ब्या सब वहम विकार
सुर्गवासी परत्राम जया
श्री जब साहब जो अर्त सुंदर सलीष सुपक सिंधी
कविता में कलंबंद करें सिंधें सा वडो वर प्याओ है
धेन चिलिय जे आवाज में आहे या अभलाखा
या उकीरत सदा लिवाए फीस सत्वुर अध्याँ
उतींदी रहे अमरिद उननें लाए जिन जी मन्शा
आहे तन नाम खुमारी नान का चड़ी रहे दिन रात
अचोतं
असीमिचों सत्नाम स्री हर्वाहगुरू एह बुधूं भेन चिलिय जे
मिठ्रे मिठ्रे आवाज में श्री जब साहब जो सिंधी कविता में अर्त
कायं दायं जग में आहे एक उंकार नाम सच पार सच पाले तो संसार
निर्भोसो नारायन आहे भाण रखे भगवान
वेर न कह सवाल यज़ो आहे नाहे शक गुमान
जमर मर खा रहत रहे तो आहे दिराकार
बन्दा गुरजे करपा सातों ध्यालो उन है जो धार
सचो पावी थी दो साखी सिर जरहार सचो अज
भी सचो ए सचो सुपाने आहे सो हर वार सचो
जिनके बुख भगवान जी आहे धन्न माल सांप बुख न लगे
सबेरा कन स्यान पस्यान थिक भी मगर दिन सान हले
गुरजो पर दो दूर थी ये थी असच खायो थी आरजान
रभ रजाते राजी नान को फुक्म जो लिखियो आहे सां
शिकल्यों भिन भिन बन जन खुक्म जाराज न था कत जन
खुक्म सा साप पवे थो तन में खुक्म सा शान थी ये उतपन
नान नात अथे गुरजी वानी वेद अथे गुरमुख
मेहु पान समायो गुरमुख जाही वेद अथे
गुरमुख जाही वेद अथे गुरमुख जाही वेद अथे
शुर सती लच्छमी पारपती सब गुर जाना लाकर यादे
मनसा तैखे मनी दोसोई भागन वारो थी दोसोई पारी पंद्री
मनसा जेको मनी हरी अखे खुलनता उनलाए मोख दुआ
मनसा जेको मनी उन्हे जो मुक्त थी थो पुल परवा
कोशिश भले नसान करे मालिक जी माया आहे
अफाल!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
पारी सतावीं
पारी सतावीं
सुर भिघरा एं राग घरा
पारी अठावीं