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Bài hát shri garbh gita do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shri garbh gita - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shri Garbh Gita chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shri Garbh Gita

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

श्री क्रेश्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायन वासु देवाबोलिए श्री किष्ण भगवाने की जैप्रिय भक्तों, श्रीमत भगवत गीता के पश्चात एक बहुती महत्तपून कथा मैं आपको सुनाने जा रहा हूँऔर ये कथा है श्री गर्व गीताश्रीमत भगवत गीता के पश्चात गर्व गीता सुनने का बहुती महत्व हैये पूनता प्रदान करती है आपके श्रवन कोतो आये भक्तों, आरम्ब करते हैं इस कथा को जिसके सुनने मात्र से सबी भक्तों का कल्यान हो जाता हैभगवान शी कृष्ण ने स्वेम अपने मुखारविंद से कहा हैकि जो प्राणी इस गर्व गीता का नित्य पठन पाठन और चिंतन करते हुएइसमें बतलाये मार्ग पर चलने का सतत रूप से प्रयत्न करते हैंवे आवागमन के चक्र से मुक्त होकर भगवान के परम सरूप के साथ एकाकार हो जाते हैंअर्जुन ने भगवान शी कृष्ण से विनेपूर्वक पूछाहे जगदीश्वर यहां प्राणी गर्व में किस दोश के कारण आता हैहे प्रभुजी जब जन्मता है तब उसको जरा आदी रोग लगते हैं फिर मृत्यू हो जाती हैहे स्वामी वे कौन-कौन से कर्म हैं जिनके करने से मनुष्य जन्म मरन से रहित होएशी भगवान बोले हे अर्जुन यह जो मनुष्य है सो मूर्ख हैऔर संसार की प्रकृति के साथ प्रीत करता हैप्राणी को यही चिंता रहती है कि यह पदार्थ मैंने पाया है और मैं इसको और अधिक पाऊंगायह चिंता प्राणी के मन में से उतरती ही नहीं है जाती ही नहीं हैआठ पहर माया ही तो मांगता रहता है वैइन बातों को करके बारंबार जनमता और मरता है वे मूर्खगर्व में आकर दुख पाता हैअर्चुन ने पूछाहे शी किर्षन जीमन मदमस्त हाती के समान है और त्रिष्णा उसकी शक्ती हैयह मन पांच विकारों के वश में हैकाम, क्रोद, मोह, लोब, एहंकार और पांचों में एहंकार बहुत बली हैकौन यतन है जिनसे मन वश में होशी भगवान बोलेहे अर्जुन यह मन निश्चित ही हाती की तरहे हैत्रिष्णा इसकी शक्ती हैयह मन पांचों विकारों के वश में हैएहंकार इसमें सबसे बलशाली हैहे अर्जुन, जैसे हाथी अंकुष के वश्मे होता हैवैसे ही, मन को वश्मे करने के लिए ज्यान रूपी अंकुष हैएहंकार करने से जीव नरक में पढ़ता हैऔर बारंबार योणियों में जननता और मरता रहता हैअर्जुन ने आगे कहाहे शी कृष्णहे भगवनकुछ तुम्हे पाने के लिए वनों में फिरते हैंकुछ वैरागी हैंऔर कुछ दान पुन्ने एवं अन्य धर्म करम करते हैंइनमें सच्चा वैश्णों कौन हैशी भगवान ने कहाहे अर्जुनकुछ मेरे नाम के लिए वनों में फिरते हैंवैश्ण अन्यासी कहलाते हैंकुछ सिर पर जटा बानते हैंकुछ भस्म लगाते हैंतिन में मैं नहीं हूँक्योंकि इन्हें अपने इस रूप का एहंकार हैइनको मेरा दर्शन दुर्लव हैअर्जुन ने पूछाहे शी किष्ण भगवान जीवै कौन सा पाप हैजिसे करने से स्त्री मर जाती हैजिसे करके पुत्र मर जाते हैंऔर नपुन सक्ता कौन सा पाप होती हैभगवान शी किष्ण ने कहाहे अर्जुनअर्जुन जो किसी से करजा उठाता है और देता नहीं, इस बाप से इस्त्री मर जाती हैं। जो किसी की आमानत रखी हुई वस्तु पचालेता हैं, उसके पुत्र मर जाते हैं। जो किसी का कारिये सब से पहले करने का वचन देता है और जब समय आपड़े तब उसका कारिये �न करें इस पाप से नपुनसकता उत्पन्न होती है। अर्जुन ने पूछा, हे श्री कृष्ण भगवान, कौन से पाप से मनुष्य सदैव रोगी रहता है,कौन से पाप से गधे का जन्म पाता हैइस्त्री का जन्म टट्टू का जन्म क्यों कर पाता हैऔर बिल्ली का जन्म किस पाप से होता हैशी भगवान ने कहाहेरजुन जो मनुष्य कन्या का धन लेते हैंऔर सादू ब्रह्मनों के दोशी हैंसो मनिश्च सदा रोगी रहते हैजो विशे विकार के वास्ते मदिरा पान करते हैवे टट्टू का जन्म पाते हैजो जूठी गवाही भरते हैवे दुष्टा इस्तरी का जन्म पाते हैजो रसोई बना कर पहले खुद खा लेते हैउन्हें बिल्ली का जन्म मिलता है।हे अर्जुन, जो मनुष्य जूठी वस्तु दान करते हैं,विदासी इस्तरी का जन्म पाते हैं।इस पर अर्जुन ने पूछा,हे शी किष्ण भगवान, आपने जो कुछ मनुष्यों को स्वार्ण दिया है,कई मनुष्यों को आपने हाथी घोड़े दिये हैं,उन्होंने कौन सा पुन्य किया है।शी भगवान ने कहा,हे अर्जुन, जिनोंने स्वार्ण दान किया है,सोतिन को हाथी, घोड़े और अन्य बहान मिलते हैं,जो कन्या का दान परमेश्वर के निमित्त करते हैं,सो उन्हें मनुष्य का जन्म मिलता है।अर्जुन ने कहा,हे शी कृष्ण, किसी की सुन्दर विचित्र देह है,किसी के घर संपत्ती है, कुछ विद्वान है,उन्होंने कौन सा पुन्य किया है।शी भगवान ने कहा,हे अर्जुन, जिसने अन्य दान किया है,उनका सुन्दर स्वरूप है,जिसने विध्या दान की है,सो विद्वान होते हैं,जिसने गुरुदेव की सेवा की है,सो पुत्रवान होते हैं।अर्जुन ने पूछा,हे भगवान कुछ की धन से प्रीती होती हैकुछ इस्त्रियों से प्रीत करते हैंइसका क्या कारण हैशी भगवान बोलेहे अर्जुन राज पाठ धन सब नाश रूप हैइन से प्रीत करना विकार हैतन्तु मेरी भक्ति का नाश नहीं हैसो अपना कल्यान चाहने वालों को सदैव मेरी भक्ती करनी चाहिएफिर अर्जुन ने पूछाहे श्री भगवान, राजपाट विध्या किस धर्म से मिलती हैश्री किष्टन ने कहाहे अर्जुन, जो प्राणी श्री काशी जी में निशकाम भक्ती करते हुए दिह त्यागते हैंपैराजा होते हैंजो गुरुई की सेवा करते हैं, सोविद्वान होते हैंअर्जुन ने पूछाहे भगवान, कुछ को बहुत अधिक धन मिलता हैकुछ सारी उम्र रोग से रहित रहते हैंसो कुछ सा पुन्य हैइस पर श्री किश्न ने कहाहे अर्जुन, जिसने गुप्तदान किया है, उसको संचित धन मिलता हैजिसने बिना स्वार्थ के पराया काम सवारा है, वे रोग से रहित रहते हैंफिर अर्जुन ने पूछाहे श्री कृष्ण भगवनकौन से पाप से अमली होते हैंगूंगे और कुष्टी किस पाप से होते हैंश्री भगवन ने कहाहे अर्जुनजो कुल की इस्तरी से गमन करते हैंसो अमली होते हैंजो गुरु से विध्या पाकरवे गूंगे होते हैं, जिसने गोगात की है, सो कुष्टी होते हैं, अर्जुन ने पूछा, हे भगवन, कुछ की देह में रक्त विकार होता है, कुछ दरिद्र होते हैं, कोई नरखंड वायू होते हैं, कुछ अंदे होते हैं, ये कुछ पापसे होते हैं, जो लड़की बाल �विद्वा होती है, सुख उनसे पापसे होती है, श्री भगवान ने कहा, हे अर्जुन जो सदा क्रोधवान रहते हैं, उनके रक्त में विकार होता है, जो कुमारगी रहते हैं, सुधरित्री होते हैं, जो कुकरमी ब्राह्मन को दान देते हैं, तिन को खंड वायू होती है, �जो प्राणी नंगी इस्त्री को देखता है और गुरु की इस्त्री पर कुदृष्टी रखता है,सो अंधा होता है।जिसने गो अथवा प्रामण को लात मारी है, सो लंगडा और पिंगल होता है,जो इस त्री अपने पती को छोड़ कर पराय पुरुष्ट से संग करती हैसो बाल विद्वा होती हैअर्जुन ने पूछाहे भगवन, हे शी किष्ण, आप पार ब्रह्म हैंआपको मेरा नमस्कार हैआगे मैं तुम्हें सम्मंधी के रूप में जानता थाअब मैं आपको साक्षात परमिश्वर मानता हूँहे पार ब्रह्म जी, गुरु दिख्षा कब होती हैसो कृपा कर कहोशी भगवान ने कहाहे अर्जुन, तु धन्य हैतेरे माता पिता भी धन्य हैतुमने सब मत त्याग करके मेरे में मन लगाया हैवही सन्यासी जगत का गुरु हैअर्जुन, यह बात ध्यान देकर सुनने की हैकि गुरु कैसा करेजिसने इंद्रियां जीत ली हैजिसको संसाल ईश्वर रूप नजर आता हैजगत से उदास हैऐसा गुरु करेजो परमिश्वर का जानने वाला होएवोगे टिस गुरु की सेवा सब तरह से करेहे अर्जुन, जो गुरु का भक्त होता हैवो मेरा भक्त होता हैजो प्राणी गुरु से विमुक हैउनको साध ग्राम जराने का पाप लगता हैगुरु विमुक प्राणी का दर्शन चांडाल के तुल्य हैजो ग्रहस्ती गुरू के बिना हैसो चांडाल के समान हैउसका दर्शन भी पाप हैजिस तरह मदिरा के बर्तन में भरा हुआ गंगा जल भी अपवित्र होता हैउसी तरह गुरू से विमुख व्यक्ति का भजन सदा अपवित्र हैउसके हाथ का दिया देवता भी नहीं लेतेउसके सर्व कर्म निश्पल होते हैंकूकर, शूकर, गधा, काक इन सब योनियों में सर्व खोटी योनी हैसबसे मनिश्य खोटा है जो गुरू नहीं धारतागुरू बिना गती नहीं होती वै अवश्य नरक को जाएगावैसे ही गुरू धारी को गुरू की भक्ती और सेवा करनी चाहिएजैसे सब नदियों में शी गंगाजी शेष्ट हैसब वरतों में श्री एकादशी जी शेष्ट हैऐसे ही हे अर्जुन सब शुब कारियों में गुरू सेवा ही उत्तम हैगुरु दिख्षा बिना प्राणी पशु योनी में फल भोगता हैचुरास्सी में भरमाता रहता हैअर्जुन ने पूछाहे शी कृष्ण, हे भगवन, गुरु दिख्षा क्या वस्तु हैशी कृष्ण भगवान बोलेहे अर्जुन, तेरा जन्म धन्य हैजिसने यह प्रश्न किया हैहरी नाम का जो गुरुदेव उपदेश करते हैंउसका चारो वर्णों को जपता शेष्ट हैहे अर्जुन, जो गुरु की सेवा नहीं करतासो साड़े तीन करोड वर्षों तक नरक भोगता हैजो गुरु की सेवा करता हैउसको कई अश्वमेद यग्यों का फल प्राप्त होता हैगुरु की सेवा ही मेरी सेवा हैहे अर्जुन, इस मेरे संवात को जो प्राणी पढ़ेगावो सुनेगा और इसपर अमल करेगावो गर्व दुख से बचेगाउसकी चोरासी कट जाएगीइसी करके इसका नाम गर्व गीता हैसंसार के द्धार के लिए ये प्रश्न तूने मुझसे कियेऔर मैंने तुझे इनकी उत्तर दिये हैजो इसे नित्य पढ़ेगाउससे मैं परम प्रसन्न बना रहूंगाबोलिये शी कृष्ण भगवान की जैइती श्री गर्व गीताप्रिय भक्तो इस प्रकार यहांश्री गर्व गीता समाप्त होती हैऔर भक्तो इसी के साथ श्रीमत भगवत गीता भीयहां संपन्य होती हैमुझे कैराश पंडित को आग्या दीजिएनवस्कार और स्नेहे और आदर के साथ मेरे साथ गाईएशी कृष्ण गोविंद हरे मुरारीहे नाथ नारायन वासु देवाबोलिये वासु देव भगवान की जैकरते हैं

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