श्री क्रेश्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायन वासु देवा
बोलिए श्री किष्ण भगवाने की जै
प्रिय भक्तों, श्रीमत भगवत गीता के पश्चात एक बहुती महत्तपून कथा मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ
और ये कथा है श्री गर्व गीता
श्रीमत भगवत गीता के पश्चात गर्व गीता सुनने का बहुती महत्व है
ये पूनता प्रदान करती है आपके श्रवन को
तो आये भक्तों, आरम्ब करते हैं इस कथा को जिसके सुनने मात्र से सबी भक्तों का कल्यान हो जाता है
भगवान शी कृष्ण ने स्वेम अपने मुखारविंद से कहा है
कि जो प्राणी इस गर्व गीता का नित्य पठन पाठन और चिंतन करते हुए
इसमें बतलाये मार्ग पर चलने का सतत रूप से प्रयत्न करते हैं
वे आवागमन के चक्र से मुक्त होकर भगवान के परम सरूप के साथ एकाकार हो जाते हैं
अर्जुन ने भगवान शी कृष्ण से विनेपूर्वक पूछा
हे जगदीश्वर यहां प्राणी गर्व में किस दोश के कारण आता है
हे प्रभुजी जब जन्मता है तब उसको जरा आदी रोग लगते हैं फिर मृत्यू हो जाती है
हे स्वामी वे कौन-कौन से कर्म हैं जिनके करने से मनुष्य जन्म मरन से रहित होए
शी भगवान बोले हे अर्जुन यह जो मनुष्य है सो मूर्ख है
और संसार की प्रकृति के साथ प्रीत करता है
प्राणी को यही चिंता रहती है कि यह पदार्थ मैंने पाया है और मैं इसको और अधिक पाऊंगा
यह चिंता प्राणी के मन में से उतरती ही नहीं है जाती ही नहीं है
आठ पहर माया ही तो मांगता रहता है वै
इन बातों को करके बारंबार जनमता और मरता है वे मूर्ख
गर्व में आकर दुख पाता है
अर्चुन ने पूछा
हे शी किर्षन जी
मन मदमस्त हाती के समान है और त्रिष्णा उसकी शक्ती है
यह मन पांच विकारों के वश में है
काम, क्रोद, मोह, लोब, एहंकार और पांचों में एहंकार बहुत बली है
कौन यतन है जिनसे मन वश में हो
शी भगवान बोले
हे अर्जुन यह मन निश्चित ही हाती की तरहे है
त्रिष्णा इसकी शक्ती है
यह मन पांचों विकारों के वश में है
एहंकार इसमें सबसे बलशाली है
हे अर्जुन, जैसे हाथी अंकुष के वश्मे होता है
वैसे ही, मन को वश्मे करने के लिए ज्यान रूपी अंकुष है
एहंकार करने से जीव नरक में पढ़ता है
और बारंबार योणियों में जननता और मरता रहता है
अर्जुन ने आगे कहा
हे शी कृष्ण
हे भगवन
कुछ तुम्हे पाने के लिए वनों में फिरते हैं
कुछ वैरागी हैं
और कुछ दान पुन्ने एवं अन्य धर्म करम करते हैं
इनमें सच्चा वैश्णों कौन है
शी भगवान ने कहा
हे अर्जुन
कुछ मेरे नाम के लिए वनों में फिरते हैं
वैश्ण अन्यासी कहलाते हैं
कुछ सिर पर जटा बानते हैं
कुछ भस्म लगाते हैं
तिन में मैं नहीं हूँ
क्योंकि इन्हें अपने इस रूप का एहंकार है
इनको मेरा दर्शन दुर्लव है
अर्जुन ने पूछा
हे शी किष्ण भगवान जी
वै कौन सा पाप है
जिसे करने से स्त्री मर जाती है
जिसे करके पुत्र मर जाते हैं
और नपुन सक्ता कौन सा पाप होती है
भगवान शी किष्ण ने कहा
हे अर्जुन
अर्जुन जो किसी से करजा उठाता है और देता नहीं, इस बाप से इस्त्री मर जाती हैं। जो किसी की आमानत रखी हुई वस्तु पचालेता हैं, उसके पुत्र मर जाते हैं। जो किसी का कारिये सब से पहले करने का वचन देता है और जब समय आपड़े तब उसका कारिये �
न करें इस पाप से नपुनसकता उत्पन्न होती है। अर्जुन ने पूछा, हे श्री कृष्ण भगवान, कौन से पाप से मनुष्य सदैव रोगी रहता है,
कौन से पाप से गधे का जन्म पाता है
इस्त्री का जन्म टट्टू का जन्म क्यों कर पाता है
और बिल्ली का जन्म किस पाप से होता है
शी भगवान ने कहा
हेरजुन जो मनुष्य कन्या का धन लेते हैं
और सादू ब्रह्मनों के दोशी हैं
सो मनिश्च सदा रोगी रहते है
जो विशे विकार के वास्ते मदिरा पान करते है
वे टट्टू का जन्म पाते है
जो जूठी गवाही भरते है
वे दुष्टा इस्तरी का जन्म पाते है
जो रसोई बना कर पहले खुद खा लेते है
उन्हें बिल्ली का जन्म मिलता है।
हे अर्जुन, जो मनुष्य जूठी वस्तु दान करते हैं,
विदासी इस्तरी का जन्म पाते हैं।
इस पर अर्जुन ने पूछा,
हे शी किष्ण भगवान, आपने जो कुछ मनुष्यों को स्वार्ण दिया है,
कई मनुष्यों को आपने हाथी घोड़े दिये हैं,
उन्होंने कौन सा पुन्य किया है।
शी भगवान ने कहा,
हे अर्जुन, जिनोंने स्वार्ण दान किया है,
सोतिन को हाथी, घोड़े और अन्य बहान मिलते हैं,
जो कन्या का दान परमेश्वर के निमित्त करते हैं,
सो उन्हें मनुष्य का जन्म मिलता है।
अर्जुन ने कहा,
हे शी कृष्ण, किसी की सुन्दर विचित्र देह है,
किसी के घर संपत्ती है, कुछ विद्वान है,
उन्होंने कौन सा पुन्य किया है।
शी भगवान ने कहा,
हे अर्जुन, जिसने अन्य दान किया है,
उनका सुन्दर स्वरूप है,
जिसने विध्या दान की है,
सो विद्वान होते हैं,
जिसने गुरुदेव की सेवा की है,
सो पुत्रवान होते हैं।
अर्जुन ने पूछा,
हे भगवान कुछ की धन से प्रीती होती है
कुछ इस्त्रियों से प्रीत करते हैं
इसका क्या कारण है
शी भगवान बोले
हे अर्जुन राज पाठ धन सब नाश रूप है
इन से प्रीत करना विकार है
तन्तु मेरी भक्ति का नाश नहीं है
सो अपना कल्यान चाहने वालों को सदैव मेरी भक्ती करनी चाहिए
फिर अर्जुन ने पूछा
हे श्री भगवान, राजपाट विध्या किस धर्म से मिलती है
श्री किष्टन ने कहा
हे अर्जुन, जो प्राणी श्री काशी जी में निशकाम भक्ती करते हुए दिह त्यागते हैं
पैराजा होते हैं
जो गुरुई की सेवा करते हैं, सोविद्वान होते हैं
अर्जुन ने पूछा
हे भगवान, कुछ को बहुत अधिक धन मिलता है
कुछ सारी उम्र रोग से रहित रहते हैं
सो कुछ सा पुन्य है
इस पर श्री किश्न ने कहा
हे अर्जुन, जिसने गुप्तदान किया है, उसको संचित धन मिलता है
जिसने बिना स्वार्थ के पराया काम सवारा है, वे रोग से रहित रहते हैं
फिर अर्जुन ने पूछा
हे श्री कृष्ण भगवन
कौन से पाप से अमली होते हैं
गूंगे और कुष्टी किस पाप से होते हैं
श्री भगवन ने कहा
हे अर्जुन
जो कुल की इस्तरी से गमन करते हैं
सो अमली होते हैं
जो गुरु से विध्या पाकर
वे गूंगे होते हैं, जिसने गोगात की है, सो कुष्टी होते हैं, अर्जुन ने पूछा, हे भगवन, कुछ की देह में रक्त विकार होता है, कुछ दरिद्र होते हैं, कोई नरखंड वायू होते हैं, कुछ अंदे होते हैं, ये कुछ पापसे होते हैं, जो लड़की बाल �
विद्वा होती है, सुख उनसे पापसे होती है, श्री भगवान ने कहा, हे अर्जुन जो सदा क्रोधवान रहते हैं, उनके रक्त में विकार होता है, जो कुमारगी रहते हैं, सुधरित्री होते हैं, जो कुकरमी ब्राह्मन को दान देते हैं, तिन को खंड वायू होती है, �
जो प्राणी नंगी इस्त्री को देखता है और गुरु की इस्त्री पर कुदृष्टी रखता है,
सो अंधा होता है।
जिसने गो अथवा प्रामण को लात मारी है, सो लंगडा और पिंगल होता है,
जो इस त्री अपने पती को छोड़ कर पराय पुरुष्ट से संग करती है
सो बाल विद्वा होती है
अर्जुन ने पूछा
हे भगवन, हे शी किष्ण, आप पार ब्रह्म हैं
आपको मेरा नमस्कार है
आगे मैं तुम्हें सम्मंधी के रूप में जानता था
अब मैं आपको साक्षात परमिश्वर मानता हूँ
हे पार ब्रह्म जी, गुरु दिख्षा कब होती है
सो कृपा कर कहो
शी भगवान ने कहा
हे अर्जुन, तु धन्य है
तेरे माता पिता भी धन्य है
तुमने सब मत त्याग करके मेरे में मन लगाया है
वही सन्यासी जगत का गुरु है
अर्जुन, यह बात ध्यान देकर सुनने की है
कि गुरु कैसा करे
जिसने इंद्रियां जीत ली है
जिसको संसाल ईश्वर रूप नजर आता है
जगत से उदास है
ऐसा गुरु करे
जो परमिश्वर का जानने वाला होए
वोगे टिस गुरु की सेवा सब तरह से करे
हे अर्जुन, जो गुरु का भक्त होता है
वो मेरा भक्त होता है
जो प्राणी गुरु से विमुक है
उनको साध ग्राम जराने का पाप लगता है
गुरु विमुक प्राणी का दर्शन चांडाल के तुल्य है
जो ग्रहस्ती गुरू के बिना है
सो चांडाल के समान है
उसका दर्शन भी पाप है
जिस तरह मदिरा के बर्तन में भरा हुआ गंगा जल भी अपवित्र होता है
उसी तरह गुरू से विमुख व्यक्ति का भजन सदा अपवित्र है
उसके हाथ का दिया देवता भी नहीं लेते
उसके सर्व कर्म निश्पल होते हैं
कूकर, शूकर, गधा, काक इन सब योनियों में सर्व खोटी योनी है
सबसे मनिश्य खोटा है जो गुरू नहीं धारता
गुरू बिना गती नहीं होती वै अवश्य नरक को जाएगा
वैसे ही गुरू धारी को गुरू की भक्ती और सेवा करनी चाहिए
जैसे सब नदियों में शी गंगाजी शेष्ट है
सब वरतों में श्री एकादशी जी शेष्ट है
ऐसे ही हे अर्जुन सब शुब कारियों में गुरू सेवा ही उत्तम है
गुरु दिख्षा बिना प्राणी पशु योनी में फल भोगता है
चुरास्सी में भरमाता रहता है
अर्जुन ने पूछा
हे शी कृष्ण, हे भगवन, गुरु दिख्षा क्या वस्तु है
शी कृष्ण भगवान बोले
हे अर्जुन, तेरा जन्म धन्य है
जिसने यह प्रश्न किया है
हरी नाम का जो गुरुदेव उपदेश करते हैं
उसका चारो वर्णों को जपता शेष्ट है
हे अर्जुन, जो गुरु की सेवा नहीं करता
सो साड़े तीन करोड वर्षों तक नरक भोगता है
जो गुरु की सेवा करता है
उसको कई अश्वमेद यग्यों का फल प्राप्त होता है
गुरु की सेवा ही मेरी सेवा है
हे अर्जुन, इस मेरे संवात को जो प्राणी पढ़ेगा
वो सुनेगा और इसपर अमल करेगा
वो गर्व दुख से बचेगा
उसकी चोरासी कट जाएगी
इसी करके इसका नाम गर्व गीता है
संसार के द्धार के लिए ये प्रश्न तूने मुझसे किये
और मैंने तुझे इनकी उत्तर दिये है
जो इसे नित्य पढ़ेगा
उससे मैं परम प्रसन्न बना रहूंगा
बोलिये शी कृष्ण भगवान की जै
इती श्री गर्व गीता
प्रिय भक्तो इस प्रकार यहां
श्री गर्व गीता समाप्त होती है
और भक्तो इसी के साथ श्रीमत भगवत गीता भी
यहां संपन्य होती है
मुझे कैराश पंडित को आग्या दीजिए
नवस्कार और स्नेहे और आदर के साथ मेरे साथ गाईए
शी कृष्ण गोविंद हरे मुरारी
हे नाथ नारायन वासु देवा
बोलिये वासु देव भगवान की जै
करते हैं