जैजिनिंद्र बंद्धूँ
जैजिनिंद्र
आज मैं आपको आदिनात भगवान की अनुपम पावन कथा सुनाने जा रही हूँ
ध्यान पूरवक सुनिएगा
हम आज तुम्हें श्री आदिनात की कथा सुनाते हैं
पावन कथा सुनाते हैं
रिशबदेव भगवान की जीवन गाता गाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
प्रथम तीर थंकर के हम दर्शन करवाते हैं
हम दर्शन करवाते हैं
हम रिशबदेव भगवान की जीवन गाता गाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
श्री आदिनात भगवान
करे मानव का गल्यान
बंधूओं आदिनात भगवान चैन धर्म के प्रथम तीर थंकर कहलाते हैं
तो आईए आज आदिनात भगवान की जीवन गाता सुनते हैं
प्रथम जिनेंद्र है आदिनात जी अन्तिम है महवीर
चोबिस तीर थंकर हैं काटते भवबंधन जनजीर
भवबंधन जनजीर
आदिनात की कथा सुनाओ सुनो लगा के ध्यावान
कैसे राजा से मुने बन गए आदिनात भगवान
कैसे सबको जीना सिखाया कैसे सिखाया ज्यान
कैसे किया है आदिनात ने मानव का कल्यान
कैसे किसने आदिनात को कहा दिया आहार
आदिनात मुनिराज की जीवन गाथा गाते हैं हम कथा सुनाते हैं
हम आदिनात भगवान की पावन कथा सुनाते हैं हम गाथा गाते हैं
बंधुओं आदिनात भगवान की इस कथा को सुनने मात्र से
ही मन को शान्ती मिलती हैं ज्यान प्राप्ती होती हैं
राजा नाभी राय माता मरु देवी के आंगन में
एक दिव्य कमल पुष्प का अपतरण हुआ
हारे राज में मंगल गीत गाये जाने लगे
देता स्वर्ग से पुष्प की वर्षा कर रहे थे
माता मरु देवी प्रसंता से फूले नहीं समा रही थी
भगवान आदिनात का जन नगर अयोध्या में
चैत्रवदी नव्मी को माता मरु देवी ने
एक दिव्य पुत्र को जन दिया आईए आगे जानते हुँ
मरु देवी के उदर से जनने आदिनात भगवान
चंड्रवरन अति दिव्य रूप था मुखडा कमल समान
कोटी कोटी के देव बहाँ दर्शन को आते हैं
आदिनात भगवान के कई नाम पढ़े हैं
रिशबदेव के नाम से भी जाने जाते हैं
जब आदिनात भगवान बड़े हो जाते हैं
क्यान में राजनीती में निपण हो जाते हैं
उनके राज में भारी संकट आ जाता हैं
कल्प, व्रेक्ष बिछरने लगते हैं
कल्प, व्रेक्ष जब लगे भिछरने प्रजा हुई बेहाल
आदिनात भगवान से आके करने लगी सवाल
करने लगी सवाल
सिवा आपके कोन हमारा कोन रखेगा ध्यावान हम दिनों
के लिए है राजन आप ही है भगवान आप ही है भगवान
आदिनात भगवान उन्हें फिर धीर बनाते हैं
सूर्य, चंद्र, तारों की गनना उन्हें सिखाते हैं
गनना उन्हें सिखाते हैं
उत्तम खेती करन सिखाया शिक्षा का दिया ध्यावान
आंकर अक्षर सिखलाते है आदिनात भगवान आदिनात भगवान
श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात भगवान
श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात
भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात
भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात
भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात
श्री
आदिनात भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात
भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात भगवान
श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिन
श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात
भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात भगवान
श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिनात भगवान श्री आदिन
आदिनात के संग बन गए बंदु कई हजार परिशबदेव
के संग तप करने को सारे तईयार तप को सब तईयार
लगे
तपस्या करने सारे सहे धूप बरसात आदि वर्षा
धूप की गर्मी सहे सभी दिन रात सहे सभी दिन रात
वेश दिगंबर धर लिया सबने आने लगी थी लाज
अंतर मन से आने लगी तिर सबके यही आवाज
सबके यही आवाज
वस्त्र विहीन हुए हम सारे धर्म की है विपरीद
उनकी तपस्या हार गई थी माया गई थी जीत
माया गई थी जीत पत्ते छाल अदी से अपने
तन को छुपाते हैं वो तन को छुपाते हैं
हम अधिनात बगवान की पावन कथा सुनाते हैं हम गाथा गाते हैं
श्रिए अधिनात बगवान करे वानव का कल्याँ
अधिनात जी के साथ
जितने भी अनुयाही उनके साथ वन में तपस्या करने गए थे
भूग प्यास से व्याकुल होने लगे थे उन्हें
पश्टावा होने लगा था कि हमारी मती मारी गई थी
जितने भूग प्यासे मरने चले आए
फिर ध्यान आता है कि हम तो वस्त्र विहीन है लाज आने लगी थी
पेडो की छाल पत्तो से अपने तन को धख लेते हैं और
सारे के सारे एक एक करके नगर की तरफ भाग जाते हैं
परन्तु केवल आदिनात जी तपस्या में लीन है और समाधिश्ट हैं
श्यै महिने तक आदिनात ने तप में लगाया ध्यान
उसके बाद चले ते करने दुनिया का कल्यान
दुनिया का कल्यान
तीन संतेर सथ धर्म फ़िलाए दिया धर्म का ज्यान
यही से आदिनात कहलाए आदिनात भगवान आदिनात भगवान
श्यै महिने के बाद रिशबती लेने चले आहार
भोजन की विधी जाने न कोई कैसे मिले आहार
कैसे मिले आहार
कैसे मिले आहार
कैसे मिले आहार
सभी न भी अदिनात आहार न पाते हें
आहार न पाते हैं
हम आदिनात भगवान की आवण कथा सुनाते हैं
हम ग़ान फाँ काते हैं
श्रिaku나ध भगवान जो स�स सते है तरी
वाननवका कल्यान
जहां भी जाते, जिसके भी दर्वाजे पे जाते,
सबही सोना, चान्दी, द्रव्य लेकर आते थे।
आदिनाथ जी को धन, दौलत, द्रव्य से क्या काम था?
वो तो आहार के लिए निकले थे,
परिंतु आहार नहीं मिल पा रहा था।
इसी तरहा से समय बीता रहा,
आहार के बिना आहार के लिए चलते रहे,
चलते रहे,
वो हस्तेनापुर नगर में पहुचे।
वहाँ आदिनाथ की विधी मिल जाती है,
श्रेयांच के द्वारा गन्ने का रस का आहार प्राप्त करते हैं,
और अपना पिछला भव याद करते हैं।
आतिशे युक्त बना है मंदिर चांद खेडी के धाम,
कस्त कलेस जहां कटते हैं प्रत दिन सुब हो शाम।
वान तुंग पर दया दिखाई जाने सब संसावाद,
धीरे धीरे जैन धर्म का बढ़ने लगा आकार।
आदिनात को जब मृत्यू का होने लगा आभाश, चले गए
चवदे दिन पहले मोक्ष मार्ग के पास।
नमन करो श्री आदिनात को हाथ जोड सोबार,
जिनके कारण जैन धर्म का ऐसे हुआ विसतार।
लिखी सुख देवन, देवि सकुनबन गाते हैं,
हम गा के सुनाते हैं।
हम आदिनात भगवान की पावन कथा सुनाते हैं,
हम दाथा गाते हैं।
श्री
आदिनात भगवान,
करे वानव का खल्याँ,
करे वानव का खल्याँ,
श्री आदिनात भगवान।