हे विश्णू सुनिये भीने
सेवक की चितला
की रत कुछ वर्णन करूँ
दीजे ज्ञान बता
नमो विश्णू भगवान करारी
कष्ट नशावन अखिल विहारी
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी
तुरिभुवन फैल रही उजियारी
सुन्दर रूप मनोहर सूरत सरल सवभाव मोहिनी मूरत
तन पर पी तांबर अति सोहत बैजनती माला मन मूहत
शंख चक्र कर गदा बिराजे देखत दैत्य असूर दल भाजे
सत्य धर्म मद लोब न गाजे काम क्रोध मद लोब न चाजे
संत भागत सजन मन रंजन दनुज असूर दुष्टन दल गंजन
सुक्ष उप जाय कस्ट सब भंजन दोश मिटाय करत जन सजन
पाप काट भव सिंदु उतारन कस्ट नशा कर भक्त कुबारन
करत अनेक रूप प्रभु धारन केवल आप भक्ति के कारण
धरन धेनुबन तुम ही पुकारा तब तुम रूप राम का धारा
भार उतार असूर दल मारा रावन आदिक को संघारा
पाप बराहा रूप बनाया इरन्याक्ष को मार गिराया धर्मत श्यतन सिंधु बनाया
चोदहरतनन को निकलाया
अमिलक असूरन दंध मचाया रूप मोहीनी आप दिकाया
देवन को अमरित पान कराया असूरन को छवी से बहलाया
कुर्म रूप धर्सिन धुमजाया मंद्राचल गिरितुरत उठाया
शंकर का तुम फंद छुडाया भस्मासूर को रूप देखाया
वेदन को जब असूर डूबाया कर प्रबंद उनको ढूंढवाया
मोहित बनकर खल ही नचाया उस ही कर से भस्म कराया
असूर जलंधर अति बलदायी शंकर से उनकीन लडायी
हार पार शिव सकल बनायी
कीन सती से चलकल जायी
सुमिरन कीन तुम्हें शिवराणी बतलाई सब विपत काणी तब
तुम बन मुनिश्वर ज्यानी वरिंदा की सब सूरती भुलानी
देखत तीन दनुज़ शैतानी वरिंदा आय तुम्हें लपटानी
हो असपर्श धर्म चतिमानी हान असूर उर शिव शैतानी
तुमने ध्रूव प्रहलाद उबारे
हिर्णा कुष आधिक खल मारे
गणका और अजामिल तारे
बहुत भक्त भव सिंदु उतारे
हर हु सकल संताप हमारे कृपा कर हु हरी सिर जनारे
देख हु मैं इज धरश तुमारे दीन बंधु भक्तन हितकारे
चहत आपका सेवत धरशन कर हु दया अपनी मदु सूदन
जानु
नहीं योग्य जब पूजन होए याज्य अस्तुति अनुमोदन
शील दया संतोष सुलक्षन विदित नहीं व्रत बोध विलक्षन
कर हु आपता किस विधी पूजन कुमत विलोप होत दुख भी शन
कर हु प्रणाम कौन विधि सुमीरन कौन भाति मैं कर हु समर्पन
सुर मुनी करत सदा सेवकाई हरशित रहत परम गति पाई
दीन दुखिन पर सदा सहाई निज जन जान लेव अपनाई
पाप दोश संताप नशाओ भव बंधन से मूक कराओ
सुक संपति दे सुक उप जाओ निज चरणन का दास बनाओ
निगम सदा ये विनै सुनावे पढ़ह सुने सोजन सुक पावे
भक्त रिदै में वास करें
उन की जिये काज
शंख चक्र और पद्म गदार
ए विश्णू महाराज