Nhạc sĩ: Traditional
Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650
करु साधना साध्य की साधन है जिन देव
पंच परम परमेश्ठी जी नित्य करे हम सेव
सुपाश्वनात भगवान जी मेरा हो कल्यान
चाली सा मैं नित्य पढ़े बारंबार प्रणाम
सुपाश्वनात भगवान की
जैव
जिन वर उजड़ा चमन खिलाते
अध्यातम रस आप पिलाते
जीवन को नई दिले
शादी खाती भटकों को सत पथ पतलाती
इसलिए भगती को मैं आया इसलिए चाली सा गाया
इसलिए मैं करता पूजा इस सम सच्चा काम ना दूजा
सर्वास्त सिद्धी तज कर आए
सर्वास्त सिद्धी तज कर आए
मा प्रत्वी के गर्भ समाए
सोलह सोपनों का फल जाना
तिर्धंकर का हो गाना
पिता प्रतिष्ठित राज्य करते
चर्चा सुन भे
भी सुख वरते
अस्ट देवी मिले सेवा करती
माता के कस्टों को हरती
दन कुबेर ने कर दी वर्षा
रतन गिराए हर्षा हर्षा
जन्म समय शची देवी आई
बालक रख जिन वर को लाई
इंद्र सहस्त्र नेत्रों से लखता
फिर भी त्रिप नहीं हो पाता
एरावत हाथी भी लाया
उस पर जिन वर को बैठाया
पांडुक शिला पर ले कर जाए
पांडुक शिला पर ले कर जाए
पांडुक शिला पर ले कर जाए
पांडुक शिला पर ले कर जाए
इंद्र ने तांडव नेत दिखाया
लोट नगर फिर काशी आया
जब जब बालक मुस्काता था
सब का दिल वो भर लेता था
सब का प्यारा राज दुनारा
जग मी था यह सब सिन्यारा
धीरे धीरे बढ़े कुमारा
राज व्यवस्था
ज्ञान संभारा
सिर्वे राज्य का झोकाया
विश्व दिगंबर बाना पाया
मौन साधना चित को साधा
आत्म ध्यान में आये न बाधा
निज्ज सिर्वे राज दुनारा
आत्म ध्यान में आये न बाधा
आत्म से आत्म सो खेलिया था
आत्म ध्याने आत्म ज्ञाने
आत्म के गुण ही जिनवाने
कर्मों का बंधन जब तूटा
कर्मों से नाता जब छूटा
केवल ज्ञान का दीप जगा था
मोह महातम शेगर
मिटा था चहूँ दिश ग्याल की है उजियाली
चहूँ दिश ग्याल की है हरियाली
मिज्यातम के गीत है गाते
आत्म को हर दम ही ध्याते
समभ शरण में भावे ही जाते
अमरित वाणी जाकर पाते
रोग शोक बीमारी टलती
बाधानी जाकर पाते
विपदाएं मिटती
अन्धा देखे गुंगा गावे
लंगडा सीडी चर कर जावे
अपूत्री सुत का मुख देखे
लूला अपने हाथों लेखे
अशुभ भाव सब नश जाते हैं
पाप दूर भी हो जाते हैं
चमत कार यह प्रभू चरण का
चमत कार तप त्याग वरण का
तप से शाक्ती इतनी आई
तपने कर्म की फोज भगाई
फिर सम्मेद शिकर पर राजे
मोक्ष गमन पर राजे
बजे थे बाजे
उट प्रभास की अद्भुत माया
मिट्टी में भी अतिशे पाया
भक्तों के प्रभू हो रखवाले
भक्त की नईया आप संभाले
स्वस्थि प्रभू के गुणि नित गाये
चरणों में नित शीश झुकाये
स्वस्थि प्रभू के गुण नित गाये
चरणों में नित शीश झुकाये
चालिसा चालिस दिन
पड़ों
रिद्धि सिद्धि मंगल बढ़े कटते करम आपार
सुपार्शुनात भगवान से विनते मेरी आज
भगतों को रखना शरण जुकता सकल समाज