Nhạc sĩ: Traditional
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प्रभु का सुम्रण नित करो
करो प्रभु का ध्यान
पंच परंपरमेश्थि को
बारंबार प्रणाम
सुमतिनात भगवान जी
दो सुमति का दान
चालिसा शुभ भाव से
पढ़ेंगे हो कल्यान
बोलो सुमतिनात भगवान की जैज़ेवन
अरिहंतों की शरण में आऊं
सुमति पा गुनगान को गाऊं
गुल की सागर कहनाते हो भक्तों को आपही भाते हो
शामे
लाली छाई
देख स्वापन माता हरशाई
मामंगला भर
खुशीया छाई गर्भ धार करवे हरशाई
पिता में घस्त होते
पुलकित
धीरे धीरे हो गए विकसित
प्रतनों से भी भरा आगना नहीं किसी से कुछ भी मांगना
जन्मों सव जब हुआ प्रभू का
बचा नहीं था दुख भी किसी का
पीन ज्यान संग लेकर आए
मतिशुत अवधी ज्यान को पाए
पांडुक शिला की महिमान्यारी
जन्मनवं की है तैयारी
सुर सुरेंद्र स्वर्गों से आए
कल्याणक कर वेहर शाये
धनुश तीन सो पाई काया
सुन्दर
रूप को लख हर शाया
वीस लाख पूरब की आयो
सुक्ह ही सुक्ह की
बहती वायो
इक दिन बैठे थे चिंतन में रहते थे
आतम मन्धन में
उर्ब भवों की आद जवाई फिर वेराज्य की जोती जगाई
लोकांत एक सुर भूपर आए
अनुमोधन वेराज्य बढ़ाए
भे पालकी में बैठाया
वन में जातम को ध्याया
अहाँ व्रतों की दीक्षा धारी
मूप्ती की करली तयारी
एक सहस्त राजा थी संग में
दीक्षाले संग चले थे पथल में
उन्म गती का
भाग्य जो जागा
प्रतम आहार का मौका लागा
पंच बृष्टी देवों ने कर दी
नहीं दरेत रज्जोलियां भर दी
सब के दुखडे दूर हैं करते
संकट सब के आप ही हरते
सुमती नात है ज्यान के धारी
प्रभो को मती को हरो हमारी
ज्यान नेक्र मुझे को मिल जावें
जो मुट्ती पत्राह दिखावें
सच्चे ज्यान बिना जग दुखिया
ज्यान आये तब होए सुखिया
अज्यानी त्रिश्णा में रोभें
अपना जीवन व्यर्त ही खोबें
ज्यान संसार बढ़ावें
सच्चा सुख खशण भर ना पावें
बूति की शोती प्रभो कर दो ज्यान ध्यान की बत्ती कर दो
कैसे
आप
बने हो भगवन
मुझे बना कर रखना चरन
आतम की गहराई रानो बात आपकी
बस में मानो
आरघातियां कर्म नशाये
केवल ज्यान जोती प्रगटाये
सम्वशरण सा महल बना था
भक्तों का भी संग घणा था
दीव्यधनी
उपदेश सुनाये
जीवों का कल्यान कराये
अमर नामो गण
धरबत लाये
अनंत मति गणनी पद पाये
सम्मेद शिखर मन भाया
अविचल कोट
सेध पद पाया
स्री सम्मेद पे जब भी जाओ
श्रधा से जा शीश जुकाओ
शुमती प्रभू की
दर्शन होंगे
कर्मों की
अपतरशर होंगे
कर्म नाश शिवपुर में जाये
सच आनन्द को पाजाये
शिवपुर में हो मेरा
वासा शुमती प्रभू से कही आशा
श्वपुर में हो मेरावासा
शुमतीप्रभू से कही आशा
भाव सहित चालीस दिन
पढ़ते जो भविमान
दुख दरीदर संकट मिटे
मिले प्रतम इस्थान
गुमतिनात जिनराज से
बिंते बारंबार
अब मेरा कल्यान हो
नमन करूँ शतबार
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