Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैए!
प्रीय भक्तों,
शावन महात्म का उन्नीसमा अध्याया आरम्ब करते हैं
और इसकी कथा है एकादशी व्रत एवं द्वादशी व्रत
तो आये भक्तों,
आरम्ब करते हैं इस कथा के साथ
भगवान शंकर ने
ब्रह्मा पुत्र सनत कुमार से कहा
हे महामुने,
शावन मास के दोनों पक्षों की एकादशी
तिति के दिन क्या करना चाहिए उसे सुनो
एकादशी व्रत के सम्मन्ध में मैंने आज तक किसी को कुछ नहीं बताया
यह व्रत गुप्त, उत्तम,
बहान,
पुन्य तथा पाप तार को जड़ से नश्ट करने वाला है
शावन मास में किये गए पापों का नाश्च करने वाला
तथा सब व्रतों में उत्तम यह पवित्र एकादशी का व्रत है
दश्मी के दिन प्राते स्नान कर गुरुदेवों की आज्या से
वेद वेद्धा
पुरान ग्याथा
जितेंद्री ये प्राह्मनों का पूजन करें
बगवान विश्णू का सोले उपचारों से पूजन करना चाहिए
उनसे प्रार्थना करें
हे पुन्रिकाक्ष मैं दूसरे दिन आने वाली
एकादशी को निराहार रहकर व्रत करना चाहता हूं
आप मेरी रक्षिया करें भगवन
उस दिन गुरुदेव और अगनी के समीप भुमी पर शैन करना चाहिए
काम, क्रोध और मोह को त्याग कर
एकादशी के दिन राते काल बगवान विश्णू में
मन लगाकर श्रीधर का चाप करते रहना चाहिए
तीन दिन तक किसी भी पाखंडी से बारतालाब न करें
घराने पर
शद्धा तथा भकती पूर्वक भगवान विश्णू का अरचन पुष्प,
दीप,
धूब आदी से करना चाहिए
रात को गेद,
वाध्य तथा कथा सुनते हुए जाग्रन करना चाहिए
तर कलश इस्थापन कर
पंच रत्मे और स्वर्ण को कलश में डाल कर
सफेद चंदन से पूजा कर
कलश को दो सफेद कपडों से धग देना चाहिए
देविश की प्रतिमा शंक,
चक्र तथा गदा से युक्त कर उसकी पूजा करनी चाहिए
शंक, चक्र का दात था
पदम धारी भगवान विश्णों की पूजा करके ब्राम्मन
को सोनी की दखशना सहित कलश देना चाहिए
कलश के साथ मक्खन देना चाहिए मक्खन देना न भूलें
भगवान श्रीधर
आप प्रसन होकर मुझे लक्षमी परदान करें
इस प्रकार उच्छारन कर शेष्ट वेद पाठी ब्राम्मनों को भोजन कराकर
अफनी सामर्थ की अनुसार
उन्हें दखशना देकर फिदा करना चाहिए
अफने नोकरों को भोजन कराकर गौँ को भूसा
देकर स्वें बन्दु बाधो सहित भोजन करना चाहीए
इस प्रकार शुक्लपक्ष और क्रिश्णपक्ष दोनों
तित्यों के ब्रतों का विधान एक समाण है
शुक्ल पक्ष में श्रीधर और कृष्ण पक्ष में भगवान विश्णु जनारदत कहे गए।
अम मैं तुम्हें द्वादशी के दिन भगवान विश्णु के
निमित पवित्रारोपन के सम्मन्ध में बताता हूं।
हे तात्
इसका अधिकारी कौन है
यह जान लेना भी आवश्चक है।
ब्राह्मन,
वैश्ष, क्षत्रिय, शुद्रो
और स्वयधर्म इस्तित जनों को भक्ती द्वारा पवित्रारोपन करना चाहिए।
इस्तिरियों तथा शुद्रों को केवल नाम
मात्र द्वारा श्रीहरी का पूजन करना चाहिए।
सत्युग में मनी का,
त्रिता युग में सुहन का,
द्वापर में रेश्मी तथा कल्युग में सूत
द्वारा पवित्रा का निर्मान करना चाहिए।
सन्यासियों को मानसिक पवित्रारोपन करना
चाहिए। पवित्रा को बास के पात्र में रखकर
उसे साफ वस्तर से धक,
भगवान श्रीधर के सम्मक उसे रखकर कहना चाहिए।
हे प्रभु
मैंने अपने क्रिया लोप आर्थ पवित्रा को धका है। हे देव
मेरे काम में विघन ना हो। हे नात आप मुझपर दया करें।
आपको मैं इस पवित्रा द्वारा प्रसंद करना चाहता हूँ।
हे देवेश,
आज से लेकर वर्ष भर तक व्रत नाशक,
काम,
क्रोध आधी न हो।
आप तब तक मेरी सुरक्षा करें।
जब तक मेरा व्रत पूर्ण हो,
करश परबास के पात्र में रखे पवित्रा की,
नमरता पूर्वा किस प्रकार प्रात्ना करनी चाहिए।
हे पवित्रा,
एक वर्ष तक किये अर्चन से प्रसन्न होकर,
आप विश्णू लोक से यहाँ आई हैं,
अतहें आपको नमस्कार है।
हे देव,
विश्णू तेज से उत्पन्ने रमणिये तथा पाप नाशक सब इच्छाओं
के प्रदाता आपके शरीर में पवित्रा को धारन करता हूं।
हे देवेश,
हे पुरान पुर्श्वत्तम,
आप मेरे द्वारा आमंत्रित हैं,
आतहें आपका पूजन करता हूं।
आतें निर्मित इस पवित्रा को अरपना करूंगा,
इसके बाद पुश्पांजली देकर रात्री में जाग्रन करना चाहिए।
एक आध्शी के दिन अधिवासन करत तिया को सुबह पूजा करें,
गंध,
दूब,
चावल तथा आत में पवित्रा को ग्रहन कर कहें।
एवेश,
आपको नमस्कार है,
इस पवित्रा को आप स्विकार करें।
एक वर्ष तक पुन्य फलप्रत पवित्रा से निवेदन करें,
आप मुझे पवित्र करें।
एदेव,
आपके सुपरसाथ से,
मेर से,
जाने अनजाने जो पाप हो गए हैं,
उन पापों से मैं रहित हो जाओं।
मूल मंत्र द्वारा पवित्रा को संपुटित कर निवेद्य देना चाहिए।
मूल मंत्र से अगनी में ग्रत तथा पायस द्वारा
हवन करना चाहिए। इसी मंत्र द्वारा पवित्रा को विसरजन करके कहें।
हे पवित्रे,
इस वर्ष तक किये मेरे अरचन को सवधी परिपौन करें।
विश्णो लोग को लोट चाएं। इसप्रकार कहकर उसे
ब्रह्मन को दे दे ये जल में विशरजित कर दे।
हे बच्च,
जो मनुष्य हरी काय है पवित्रा रोपन करता है वह इस
संसार में आनन्द भोग कर अंत में विश्णो लोग को जाता है।
पोलिये शिवशंकर भगवाने की जैए।