Nhạc sĩ: Traditional
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बोल ये शिवशंकर भगवाने की
जैये
प्रीये भक्तों
शावन महात्म का
अगला अध्याय है
सत्रुमा अध्याय
और इसकी कथा है
पवित्रा रोपन
तो आईए भक्तों
आरंब करते हैं
सत्रुमा अध्याय
भगवान शंकर ने सनत कुमार से कहा
हे देवेश मैंने तुम्हे अभी शावन शुक्ल सप्तमी का व्रत बताया
अब मैं तुम्हे
शावन शुक्ल अश्टमी के विशय में बताता हूँ
ध्यान पूर्वक सुनो
शावन शुक्ल सप्तमी को अधिवासन कर
अश्टमी के दिन पवित्रा रोपन करना चाहिए
जो मनुष्य पवित्रा बनवाता है उसका फल कहता हूँ
पवित्रा बनवाने वाला यग्य,
व्रत,
दान तथा सब तीर्था भी सेचन का फल प्राप्त होता है
क्योंकि सर्वगता शिवा सब में निवास
करती है अत्यः उसे ने आधी व्याधी दुख,
पीड़ा होती है वो नशत्रु का भै रहता है
उसे कोई ग्रह भी पीड़ा नहीं पोँचा सकता
उसके समस्त कारिये
अपने आप सिद्ध हो जाते हैं
राजाओं के पुन्नी की व्रद्धी करने वाला
इससे बढ़कर दूसरा कोई साधन नहीं है
शावन शुक्र सप्तमी के दिन
अधिवासन करके
देवी के लिए उठ्तम पुष्प,
भल,
गंध सब प्रकार की पूजन सामग्री लेकर अनेक प्रकार के नयवैध,
वस्त्र,
आभूशन एकत्रित करें
फिर पवित्रा निर्मान करके पंचगव्य प्राशन करना चाहिए
देवी का सुन्दर मंडब का निर्मान कर रात्री जागरन करना चाहिए
भोजन कराना चाहिए तथा दक्षणा देनी चाहिए
राजा को द्रह्टा के साथ,
नियमों का पालन कर,
उसे इस्तरी, जुवा,
शिकार और मांस का त्याग करना चाहिए
मुत्रे नाँग की पासे अपनी डून
परती वर्ष पवित्रा रोपन करना चाही।
कर्ग अथ्वा सिंघ का सूर्य हो जाने पर
शामन शुक्ल अस्तमी के दिन
देवी के लिए पवित्रा रोपन करना चाही।
इसे नित्य कर्म समझ कर करना चाहीए।
सनत कुमार ने कहा,
एदेवादि देव महादेव,
आपने जो पवित्रा रोपन बताया है,
उसके निर्मान की विधी ठीक तरह से मुझे समझाईए।
भगवान महादेव कोले,
हे सनत कुमार,
रेश्मी वस्त्र कुष या
कान से निर्मित या ब्राह्मनी द्वारा
रूई से बना सूत होना चाहीए।
सोग्रंथी का उत्तम,
फचास्ग्रंथी का मध्यम,
तता सोल्ग्रंथी का पवित्रा कनिश्ट होता है।
अम्मा, विश्णो और शंकर का आवाहन करना चाहिए।
नो सूतों में ओमकार, सोम, वहिनी, नाग, रवी,
ईश और विश्वदेव का आवाहन करना चाहिए।
हे सनत कुमार,
अब मैं तुम्हें गंत्यों में देवों की स्थापना की विधी बताता हूं।
क्रिया,
पोरुशी,
वीरा,
विजया,
अपराजिता,
मनोनमनी,
जया,
भद्रामुक्ति और ईशा नामों के
आधी में प्रनव लगाकर गंत्यी संक्या के अनुसार
आवर्ती करके आवाहन तथा चंदन से पूजा करनी चाहिए।
इसप्रकार
प्रनव द्वारा अविमंत्रित कर देवी को
पवित्रा रोपन का विधान तुम्हें बताया है।
जिन दूसरे देवों को प्रतिपदा आधी
तित्हियों में पवित्रा रोपन करना चाहिए,
उनके विशे में सुनो।
धनद्ध्र,
श्री,
गवरी,
गनेश,
चंद्रमा,
गुरु,
सूर्य,
चंडिका,
हम्बा,
वासुकी,
रिशी,
चक्रपाणी, अनंत,
शिव,
ब्रह्मा और पित्र आधी देवों का प्रतिपदा आधी तित्हि में पूजा करें।
यह पवित्रा रोपन प्रधान देवों का है।
उनके सह देवों को तीन
तार वाला पवित्रा समर्पन करें।
शावन,
शुकल पक्ष और क्रक्षन पक्ष की नवमी तित्ही का महात्म।
दोनों पक्षों की नवमी के दिन यथा विधी कुमारी नामक देवी का अरचन कर।
नक्त, वृत का दूद और शहद मिलाओब पूजन करना चाहिए।
यह उपवास रखकर इस दिन कुमारी नाम से देवी का निरंतर पूजन करें।
चादी की प्रितिमा बनवाकर उसमें भक्ति पूर्वक दुर्गा,
पाप,
नाश,
नीका,
कनेर के फूल,
गंध,
अगर,
चंदन,
दशांग, धूप और लडू द्वारा पूजन करना चाहिए।
फिर मौन धारन कर
बिल्व पत्र भूजन करना चाहिए।
प्रानीों के साब भापं को नष्ट करने वाला,
समस्त संपत्त्यों को प्र्दान करने वाला,
पुत्र पौत्र हादि की व्रद्धी करानेवाला
और सद्घती प्रदान करनेवाला है।
कोली शुरू शंकर भगवाण की जैमू।
प्रीये भक्तों,
इस प्रकार,
इस कथा के साथ शावनमाहत्म का सत्रमा अध्या यहां पर समाफ्त होता है।
सिनहे के साथ पोलेंगे।
बोलिये शिवशंकर भगवान की जैए, जैए,
जैए।