Nhạc sĩ: Traditional
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बोली शिवशंकर भगवाने की जैसे
प्रीय भक्तों
शावन महात्म का
दस्मा अध्याया आरम्ब करते हैं
और इसकी कथा है
शनीवार व्रत कथा
भक्तों इस कथा के अंदर
श्री हन्मान
श्री नरसिंग जी
तता शनीदेव जी की व्रत कथाये हैं
आईए आरम्ब करते हैं
भगवान शंकर ने
ब्रह्मा पुत्र सनत कुमार से कहा
अब मैं तुम्हें शनीवार व्रत की विधी
और महात्म कहूं
तुम ध्यान लगा कर सुनो
शावन मास में शनीवार को तीन देवताओं
तेल मिष्रित सिन्दूर उनके शरीरपर लगाएं
जपा,
अर्क
तथा मन्दार की माला से पूजा कर नयवेध्य के लिए
उडद का बड़ा पकोड़ा तथा उपचारों द्वारा पूजन करें।
उनके 12 नाम इस परकार हैं।
हनुमान,
अञ्जनी पुत्र,
वायू पुत्र,
महाबली,
रामेश्ट,
फालगुन सखा,
पिंगाक्ष,
अमित विक्रम,
अवयधी,
क्रमन,
सीताशोक, विनाशक,
लक्षमन प्रानवता,
तथा दश्गृ,
वतरपाहा।
जो सुबह उठकर इन 12 नामों का जाप करता है,
उसे कभी कश्ट की अनुभूती नहीं होती।
उसको सम्पून एश्वरिय प्राप्त हो जाता है।
शावन मास में जो हन्मान जी की शनिवार को आराधना करता है,
उसका शरीर वज्र की भाती कठोर होकर
मजबूत बन जाता है।
उसकी बुद्धी तीवर हो जाती है,
उसके शत्रु निस्तेज हो जाते हैं,
मित्रों की संख्यावी बढ़ जाती है।
हन्मान जी के मंदिर में बैठकर जो व्यक्ति
हन्मान कवज का एक लाख पाठ करता है,
वै अनीमा आधी सिध्धियों का साधक हो जाता है।
उसके दर्शन मात्र से यक्ष,
राक्षस और बेताल आधी उसके सामने नहीं ठहर पाती।
भगवान नरसिंग को तिल के तेल या शुद्ध घी से इसनान कराना चाहिए।
शनिवार के दिन स्वैम से परिवार शरीर पर तेल लगा कर नहाना चाहिए।
उड़द की दाल की खिचडी वनानी चाहिए।
इससे भगवान नरसिंग प्रसन्न हो जाते हैं।
इसप्रकार शावन मास में समस्त शनिवारों को
व्रत रखें।
इस व्रत से लख्ष्मी का निवास घर में हर समय रहता है।
धन धान्य की व्रत्धी होती है।
प्राणी संसार में हर प्रकार का सुख भोक कर
वैकुंठ को जाता है।
भगवान नरसिंग के वरदान तथा प्रसाथ से उसकी चारो और कीरती फैलती है।
हे शनत कुमार,
अब मैं शनी देव के व्रत की कथा
एवं उसका महात्म बताता हूं।
शावन के समस्त शनिवार को शनी का व्रत करना चाहिए।
किसी लंग्रे ब्राह्मन या उसके ने मिलने पर
किसी अन्य ब्राह्मन को तिल का तेल लगाकर
गरम पानी से स्नान कराएं।
इसके बाद नरसिंग व्रत के वताय अनुसार अन्य से उसे भोजन कराना चाहिए।
शनी के प्रित्यर्ध,
तेल, लोहा, तिल,
उडध तथा काला कंबल दान करें।
अब मैं शनी देव के रूप, रंग का वर्णन करूँगा।
शनी देव का शाम वर्ण हैं,
गती मंदर है,
कश्चब गोत्र है,
शनी का जन्म सोराष्ट में हुआ है,
ये सूर्य नारायन के पुत्र हैं,
ये इंद्र नील मनी तुल्ले हैं,
इन्होंने बान, धनुश तथा तृशूल धारन कर रखा है,
इनकी सवारी गिध है,
इनके यम अधिधिता हैं,
इनको कस्तूरी,
अगर,
चंदन तथा गुगल और नयवैध्यमे उडध की खिश्री प्रिय है,
शनी की पूजा में इनकी लोहे की प्रतिमा रखी जाती है,
दान देने के लिए शाम वर्ण का ब्राह्मन उत्तम है,
ब्राह्मन को दो काले कपड़े तथा काले रंकी गाय,
बच्चडे सहिद दान में देनी चाहिए,
और इसकी स्तुति करनी चाहिए।
एक बार राजा नल का राज्य छिन जाने पर,
राजा नल ने शनी देव की आराधना की थी,
शनी देव ने उन्पर क्रपा की और खोया हुआ राज्य वापस प्राप्त हो गया।
वनिश्य को चाहिए कि वैस प्रकार शनी देव की आराधना कर कहें,
मेरे उपर शनी देव प्रसन हो।
निलानजन के समान कानती मान अती बंद भ्रामी
छाया नाम वाली इस्त्री से सूर्य द्वारा उत्पन,
शनी देव को मैं हात चोड कर नमस्कार करता हूं।
बंदल कोण में इस्तित पिंगल नामक शनी देव को प्रणाम करता हूं।
हे शनी देव,
मुझ अतीह तीन पर करपा करो।
इस प्रकार बार बार उनकी स्तुती करनी चाहिए।
शनी देव की आराधना में शन्नो देवी मंत्र का उचारन करना चाहिए।
शनी ध्यान पूर्वक विधी विधान से शनी देव की पूजा करता है।
उसे स्वप्न में भी
किसी प्रकार का भै नहीं रहता।
शनी जन्मराशी से पहले,
दूसरे,
चोथे, पांचवे, साथवे, आठवे,
नवे या बारवे स्थान में हो तो सदा पीड़ा पहुंचाता है।
इसलिए उसकी शान्ती के लिए शामागनी मंत्र का चाप
करना चाहिए। और इंद्रनील मनी का दान करना चाहिए।
प्रीयभक्तों इस प्रकार इस कथा के साथ शावन महात्म का यह
। दस्मा अध्याय हम्पर समाप्त होता है। तो सनहे के साथ बोलिये,
बोलिये शिवशंगर भगवाने की जए।