Nhạc sĩ: Traditional
Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650
बोलिये शुवशंकर भगवान की जयए
प्रीय भक्षु,
आज हम आरम्ब करने जा रहे हैं
शिष्यु महा पुरान की कैलास सहीता
तो आईये बन्धो हिरदे में
भगवान शुवशंकर को बैठा कर बोलिये मेरे साथ
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जए!
बोलिये उमह पारवती की जए!
बोलिये शी गनेश जी महराजे की जए!
कार्तिके भगवाने की जए!
तो भक्तों,
शी शिव महा पुरान की रुद्र सहिता की पहली कथा है।
रिश्यों का सोज जी से तथा वामदेव जी का सकंध
से प्रश्न प्रणवार्थ निरूपन के लिए अनुरोध।
तो आईए भक्तों,
आरंब करते हैं इस कथा के साथ एक से लेकर ग्यारे अध्याय की कथा।
जो प्रधान, प्रकृति और पुरुष के नियंता
तथा स्रिष्ठी पालन और संघार के कारण हैं,
उन पार्वती सहीत शिव को
उनकी पार्शदों और पुत्रों के साथ प्रणाम है।
रिशी बोले,
हे सूज्जी,
हमने अनेक आख्यानों से युक्त परम मनोहर उमा सहीता सुनी,
अब आप शिव तत्व का ज्यान बढ़ाने वाली कैलास सहीता का वर्णन कीजिए।
व्यास ची ने कहा,
हे पुत्रों,
शिव तत्व का प्रतिबादन करने वाली दिव्य कैलास सहीता का वर्णन करता हूं,
तुम प्रेवं पूर्वक सुनो,
तुमारे प्रती स्नहे होने के कारण ही मैं तुम्हे प्रसंग सुना रहा हूं।
वर्ण पूझन, प्रनावार्ध पद्धती,
आधी प्रसंगों का वर्ण करके,
पुन्हे रीस,
यादियां दिव्य का शायव, खोरतिणत पूर्धाति।
अधिवार्थ पद्धति आधी प्रसंगों का वर्णन करके,
पुनहें रिशीगन तथा सूज्जी के मिलन एवं समवाद की अवतार्णा करते हुए,
सूज्जी के प्रती रिश्यों के प्रश्न का यों वर्णन किया।
विर्जा होम के समय पहले आपने जो वामदेव का मत सूचित किया था,
उसे हमने विस्तार पूर्वक
नहीं सूचते था।
विर्जा होम के समय पहले आपने जो वामदेव का मत सूचित किया था,
उसे हमने विस्तार पूर्वक नहीं सूचते था।
हे मुने,
विर्जा होम के समय पहले आपने जो वामदेव का मत सूचित किया था,
उसे हमने विस्तार पूर्वक नहीं सुना।
अब हम बड़े आदर और शद्धा के साथ उसे सुनना चाहते हैं।
कृपा सिंदो,
आप प्रसनता पूर्वक उसका वर्णन करें।
विश्यों की यह बात सुनकर सूत के शरीर में रोमान्च हो आया।
उन्होंने गुरू के भी परम उत्किष्ट गुरू महादेव जी को,
त्रिभुवन जननी महादेवी ओमा को,
तथा गुरू व्यास को भी भक्ती पूर्वक नमसकार करके,
मुनियों को आलाधित करते हुए गंभीर वानी में इस प्रकार कहा।
सूत जी बोले,
हे मुनियों,
तुम्हारा कल्यान हो,
तुम सब लोग सधा सुखी रहो।
आप भाग महात्माओं,
तुम भगवान शिव के भक्त तथा द्रश्ता पूर्वक व्रत का पालन करने वाले हो।
यह निश्यत रूच से जान कर ही मैं तुम लोगों के
समक्ष इस विशे का प्रसन्नता पूर्वक वर्णन करता हूं।
ध्यान देकर सुनो।
पूर्वकाल के रथन तरकल्प में
महा मुनी वामधेव
माता के गर्ब से बाहर निकलते ही शिव तत्त्व
के ग्याताओं में सरवस्रीष्ठ माने जाने लगे।
वे वेदो,
आगमो,
पुराणो तथा अन्य सब शास्त्रों के भी तत्विक अर्थ को जानने वाले थे।
देवता, असुर
तथा मनुष्य आदी जीवों के जन्म,
कर्मों का उन्हे भरी भाती ज्यान था।
उनका संपून अंग भस्म लगाने से उज्जवल दिखाई देता था।
उनके मस्तक पर जटाओं का समुशोभा देता था।
वे किसी के आश्यत नहीं थे। उनके मन में किसी वस्तों की इच्छा नहीं थी।
वे शीत,
उश्ण आदी द्वन्दों से परे तथा एहंकार शुन थे।
वे दिगंबर महाज्यानी महत्मा दूसरे महिश्वर के समान जान पढ़ते थे।
उनी के जैसे स्वभावाले बड़े-बड़े मुनी शिष्य होकर उने घीरे रहते थे।
उने चर्णों के स्वश्वर जनित पुन्य से इस पृत्थी को
पवित्ध करते हुए सब ओर विचरते और अपने चित्द को निरंतर
परमधाम सरूप परब्रम्व परमात्मा में लगाय रहते थे।
उने घूमते हुए वामधेव जी ने मेरू के दक्षिन शिखरत
कुमार शिंग में परसन्यता पूर्वक प्रवेश किया।
पूर्वाहन शिव कुमार ज्ञान में शक्ती धारन करने वाले समस्त
असुरों के नाशक और सर्वदेव वंदित बगवान इसकंद रहते थे।
उनके साथ उनकी शक्ती भूता गजावल्ली भी थी।
महा मुनी वामदेव ने शिष्चों के साथ उसमें इस्नान
करके शिखर पर बैठे हुए मुनी व्रंद सेवित कुमार का दर्शन किया।
वह ज़राशे इसकंद स्वामी के समीप ही था।
दो शक्तिया उनकी उपासना करती थी। उन्होंने
अपने चार हाथों में क्रम से शक्ती,
कुकुट,
भर और अभै धारन करके थे।
इसकंद का दर्शन और पूजन करके उन मुनिश्वर
ने बड़ी भक्ती से उनका इस्तवन आरम्ब किया।
वामदेव बोले जो प्रणव के वाच्चार्थ,
प्रणवार्थ के प्रतिपादक,
प्रणवाक्षर रूप बीज से युग्द
तथा प्रणव रूप हैं। उन आप स्वामी कार्टिके को बारंबार नमस्कार है।
वेदांत के अर्थभूत ब्रह्म ही जिनका
स्वरूप हैं जो वेदांत का अर्थ करते हैं,
वेदांत के अर्थ को जानते हैं, और नित्य विधित हैं।
उन स्कंद शामी को बारंबार नमस्कार है।
समस्त प्राणियों की हिर्दय गुफा में पतिष्चित गुह को नमस्कार है।
जो सुवैं गुह्य हैं, उनका रूप गुह्य है,
तथा जो गुह्य सास्त्रों के ग्याता हैं,
उन स्वामी कार्ठिके को नमस्कार है।
यहि प्रभु आप अनू से भी अत्यंद अनू और महान से भी परंमहान हैं।
कारणों और कारिय अत्वा भूत और भविश्य के भी ग्याता हैंत।
आप परमात्त्व सरूप को नमसकार है।
आप सकंध माता के गरबसे चित हो है।
इसकंदन गर्ब से इसकलन ही आपका रूप है।
आप सूर्य और अरुन के समान तेजश्वी हैं।
परी जात की माला से सुशोबित मुकुट आधी दारन
करने वाले आप इसकंद स्वामी को सदा नमस्कार है।
आप शिव के शिष्ष और पुत्र हैं।
शिव कल्यान देने वाले हैं। शिव को प्रिय हैं तता शिवा
और शिव के लिए आनन्द की निधी हैं। आपको नमस्कार है।
आप गंगा जी के बालक,
कृतिकाओं के कुमार,
भगवती उमा के पुत्र तता सरकंणों के वन में शैन करने वाले हैं।
आप महा बुद्धी महन देवता को नमस्कार है।
शरकशर मन्त्र आपका शरीर है।
आप छे प्रकार के अर्थ का विधान करने वाले हैं।
आपका रूब छे मारगों से परे है।
आप शडानन को बारंबार नमस्कार हैं।
आदशात्मक आपके बारे विशाल नीत्र और बारे उठीवी भुजायें हैं,
उन भुजाओं में आप बारे आयुद्ध धारन करते हैं,
आपको नमसकार हैं.
आप चत्र भुज रूप धारी,
शांत तथा चारो भुजाओं में क्रमश हैं, शक्ती,
कुकुट,
वर और अभय धारन करते हैं,
आप असुर विदारन देव को नमसकार हैं.
आपका वक्षहिस्तल गजावल्ली के कूचों में लगे हुए कुमकुम से हंकित हैं,
अपने छोटे भाई गनेश जी की आनन्दमें महिमा सुनकर,
आप मन ही मन आननदित होते हैं,
आपको नमसकार हैं.
ब्रह्मादी देवता,
मुनी और किन्नर गणों से गाई जाने वाली गाथा विशेश के द्वारा,
जिनके पवित्र कीरती धाम का चिंतन किया जाता है,
उन आप इसकंद को नमसकार हैं.
देवताओं के निर्मल किरीट को विहूशित करने वाली,
पुष्पमालाओं से आपके मनोहर चरणार विन्दों की पूजा की जाती है,
आपको नमसकार हैं.
जो भाम देव द्वारा वर्णित इस दीवे इसकन्ध स्त्रोत का पाठ यस्वण करता है,
वै परंगती को प्राप्त हुता है,
वै स्त्रोत बुद्धी को बढाने वाला,
आईव भगती की व्रद्धी करने वाला,
आईव आरोग्य तथा धन की प्राप्ती कराने वाला
और सदा सम्पून अभिष्ट को देने वाला है।
आम देव जी कहते हैं।
ओम नमः
प्रणवार्थाये
प्रणवार्थ विधायिने
प्रणवाक्षर भीजाये
वेदान्तार्थ विधायिने
वेदान्तार्थ विधे नित्यं विधिताये नमो नमहाँ
नमो गुहाये भूतानाम
गुहासू निथाये चै
अरोणनीयसे तुभ्यं महतो अपीमहीयसे
नमहाँ परावर्ज्याये
परमात्प स्वरूपिने
इसकंदाये सकंदरूपाये
महीरारोन तेजसे
नमो मंधारे मालोध्ध नमुकुटाधि भृते सदा
शिवशिश्याये पुत्राये शिवस्यशिवधायिने
शिवप्रियाय शिवयोरा नन्धनीधये नमहाँ
गंगेयाय नमस्तुभ्यं कार्तिकेयाय धीमते
उमा पुत्राय महते शरकाननशायिने
शरक्षरशरीराय शरविधार्थविधायिने
शरध्वातीतरूपाये
शनमुखाये नमो नमः
द्वादशायत नेत्राय द्वादशोधः तवाहवे
द्वादशायुधधाराय द्वादशात्मन नमोस्तुते
चतुर्भुजाये शान्ताये शक्तीको कुट्टधारिने
वरदाये हस्ताये नमो असुर्विधारिने
गजावल्लिकु चालिप्त कुंकुमांकित वक्षसे
नमो गजाणनानन्दम हिमानन्दितात्मने
ब्रह्मादि देव मुनिकिन्नर घीयमान गाथा विशेश सुची चिंतित कीर्तिधामने
व्रंदार कामल किरीट विभूशन इस्त्रक पुझाभिराम पदपंकजते नमस्तुते
इती स्कंदस्तवं दिव्यं वामदेवेन भाशितं यहे
पठेच्छ्वीर्णुयाद्वापि सहयाती परमांगतिम्
वामदेव ने इसप्रकार देव सेनापती
भगवान स्कंद की स्तूती करके
तीन बार उनकी परिक्रमा की
और पुर्थिवी पर दन्ड की भाती गिरका नतमस्तक हो बारंबार साश्टांग
परणाम और परिक्रमा करने के अनंतर वे विनीत भाव से उनके पास खड़े हो गए
वामदेव जी के द्वारा किये गए इस परमार्थ पून स्त्रोत
को सुनकर महिश्वर पुत्र भगवान स्कंद बढ़े प्रसन होई
उस समय वे महासेन वामदेव जी से बोले
हे मुने मैं तुम्हारी की हुई पूजा,
इसतुती और भकती से तुम पर बहुत प्रसन हूँ
तुम्हारा कल्यान हो आज मैं तुम्हारा कौन सा प्रिय कारे सिद्ध करूँ
तुम योग्यों में प्रधान सर्वता परिपून और निह्स प्रिय हो
इस जगत में कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसके
लिए तुम वैसे वीत राग महरशी याचना करे
इस तंद की वह बात सुनकर महा मुनी वामदेव ने
विन्यावनत होमेग के समान गंभीर वानी में कहा
तथापी है आपका अनुग्रह है कि आप मुझसे बात करते हैं
हे महा प्राज्य मैं कृतार्थ हूं
कण मात्र विज्ञान से प्रेरिध हो आपके समक्ष अपना प्रश्ण रख रहा हूं
मेरे सप्राद को आप ख्षमा करेंगे
प्रणव सबसे उत्तम मंत्र है वे साक्षात परमिश्वर का बाचक है पशुवों
जीवों के पाश बंधन को चुड़ाने वाले भगवान पशुपती ही उसके बाच्चार्थ है
इस परकार मैंने
समश्टि द्वारा व्यक्ष्ती भावू से
प्रण वार्थ का शवन किया है ...
ताथ पर ये ये है कि समश्टि और व्यक्ष्टी,
सभी पदार्थ परणव के ही अर्थ है,
प्रणव के द्वारा सब का प्रतिपादन होता है, ।
यह बात मैंने सुन रखी है।
महासेन,
मुझे कभी आप जैसा गुरू नहीं मिला है।
अत्यः कृपा करके आप प्रणव के अर्थ का प्रतिपादन कीजिए।
उपदेश की विधी से तथा सदाचार परंपरा को ध्यान में रखकर
आप मुझे प्रणवार्थ का उपदेश दें।
बोलिये शिवशंकर भगवाने की
जए!
प्रिय भगतों,
इस प्रकार यहां पर
श्रीशिव महपुरान की केलास सहीता की ये
कथा और एक से लेकर ग्यारमा अध्याय तक की
कथाएं समाप्त होती हैं।
बोलिये शिवशंकर भगवाने की
जए!
स्नेह के साथ पोलिये
ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय