जैगरीष गिरजा सुवन
मंगल मूल सुजान
कहत अयोधादास तुम
देव अभय वर्दान
जैगिर जापति जीन दयाला सदा करत संपन प्रतिपाला
माल तंद्र मा सोहत नीके फानन कुंडल नाग पनीके
अंग गौर शिरगंग बहाई मुंड माल तंछार लगाई
वस्त खाल बागं बरसोहे छविको देखी नाग मन मोहे
नन्दी गनिश सोहे तह कैसे सागर मध्य कमल हैं जैसे
कार्तिक शाम और गनराऊं या छविको कहीं जाते न काऊं
देवन जबही जाय पुकारा तवही दुख प्रभु आप निवारा
किया उबत्रव तारत भारी देवन सब मिली तुमही जुआरी
प्रभुरासुरसन योध मचाये तवही
प्रभाकर नीन बचाये
किया तवही भागी रत भारे फुरब प्रदेख्यातासु पुरारे
प्राणिन मह तुम समकुनाही सेवक स्तोती करत सदाही
वेद माही महिमा तुम गाई अकत अनाधी वेद नही पाई
प्रगटे उदधि मन्थन मेझाला जरक
सुरासर भये विहाला इनि रयात करे सहाई नील कन्थ तब नाम कहाई
नाम चंद जब तीना जीत किलंक विभीशन दीना सहस
कमल में हो रही धारी सीन परीक्षा कबही पुरारी
एक कमल प्रभु राख यूजोई कमल नैन पूजन जह जोई कथिन
भक्ति देखे प्रभु शंपर बहे प्रसंद दिये इच्छित वर
जय जय जय अनंत आवीनाशी तरत कृपा सब के घटवासी
दुष्ट सकलनित मोही सतावे ब्रमत रहो मोही चैन नावे
क्राही क्राही मेन नात पुकारो यह अव्सर मोही आन उबारो
यैक्नी शूल शत्रन को मारो संकत से मोही आन उबारो
मात, پिता, भ्राका सब कोई संकत में पूछत नहीं कोई
स्वामी एक है आस तुम्हारी आय हर हुमम संकत भारी
धन निरधन को देत सदाही जोई कोई जाते सो फल पाही
अस्तुतिके ही विदि करें तुम्हारी शमहुनात अब चूक हमारी
शंकर हो संकत के नाशन मंगल कारण विग्न विनाशन
योगि यती मुनी ध्यान लगावे नारद शारद शीष नवावे
नमो नमो जेनगमह शिवाय सुर ब्रह्मादिक कार नपाय
जो यह पाठ करें मन लाई तापर होत है शंभु सहाई
रिनिया जो कोई हो अधिकारी पाठ करें सो पावन हारी
पुत्र होन की इच्छा जोई इश्चेशिव प्रसादते ही होई
पंडिक त्रयोदशी को लावे ज्हान पूर्वक होम करावे
त्रयोदशी व्रत करें हमेशा तन नहीं ताके रहे कलेशा
भूप दीप नयविध्य चड़ावे चंकर सनमुख पाठ सुनावे
जनम जनम के पाप नसावे अन्त धास शिवपुर में पावे
कहे अयोध्या आस तुमारी जानी सकल दुख हर हुं हमारी
नितनेम उठी प्रातह ही पाठ करो चाहनीस तुम मेरी मनो कामना पून करो जगदीश
मासर छटे हे मंतरितू सम्वत चो सथ जान
इसतुति चाली साश्यवही पून कीन कल्यान
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