खल्पत रोपन्यातमा प्रेम
सुधाशव नाल
हितकारत संजीवने शिवचंतन अविराल
प्रेम दुखने शिवरसना के घोल भत्ती के हंसा ही चुगे मूती ये अनमाल
जैसे तनिक सुहागा सोने को चमकाय
शिव सुम्रन से
आत्मा
अधगुत निखरी जाय
यैसे चंदन व्रेक्ष को दसती नहीं है नाल
शिव भत्तों के चोले को कभी लगी नादाल
ज़िन्दर चूड के त्रीनेत्र उम
पती वेश्वास
शर्णागत के ये
सदा काटे सकल कलेश
शिव द्वारे प्रपंच का चल नहीं सकता
खेल आग और पानी का जैसे होता नहीं में
भरभंजन नटराज है डम्रूबाले नाज शिव का वंदन जो करे
शिव है उनके साथ
लाखो वश्व मेग हो सौगंगासनान इन से उत्तम है कही
शिव चर्णों का ध्यान
हो जाते का अज नम हाई शिवाई रट
चाज शिव रखेंगे लाख
अवश्यमान सिवार् अवश्यमान सिवार्
शिव करता संसार के शिव
स्रिष्टी के मूल
रोम रोम शिव रम ने दो
शिव ना जएयो भोल