आईए सजनों
ये रागनी रहेगी
महाबारत से और पुरसंग होगा कीचक वद
उस समय की बात भी जिस समय
कीचक महलों में
सरंद्री को देख लेता है
और उसके रूप पर फिदा हो जाता है महरबानों
क्या कहने लगा सरंद्री से एक बात के दुवारा
आईए सुनते हैं इस रागनी के माध्यम से क्या
लिखा है पंड़िजी ने क्या हवाल बता देवा
आईए सेरंद्री तेरे
रूप का
ना जग में पाया तोड़
इंद्रिलोक की उर्परी रहें
पावे होड़ सेरंद्री तेरे रूप का ना जग में पाया तोड़
सेरंद्री तेरे रूप का अरी आज तलक मन मिली नहीं कोई तेरे
वे
राटनगर का सुन बोरी में खुद मुख त्यार बना डोलू
तु आज मान या काल मान तेरे
गाथ भरम की मैं खोलू
री रात तिना फंखा जो लूचो आजा मेरी ओड
सेरंद्री तेरे रूप का ना जग में पाया
तोड़ सेरंद्री तेरे रूप का
औरी इसकी चक्मरदाने का बेरन गर्वासा बस जागा
रंग मेहलों में सेरंद्री तेरे नाम का दीपत चस जागा
रितीन लोक में की
चक्सा पलसा लीटो हे पावेना
दोटसी सेराणी ओजा क्यूं मुझसे मेल मिलावेना
नरेशन चन्दवेना क्यूं करता फिरेमरोड