मातपिका और गुरू कुछिम रूशिव संखर को रही मनाई
सरस्वती माता को शिमनों सिर दुरगे का ध्याने लगाए
पर्थम कुछ गड़े समनाओ
तारक सिद्ध करो गड़ राए सावन माह की कथा सुनाओ
सुनिये सजनो ध्याने लगाए सावन माह की कथा सुनाओ
सावन माह समही ना प्यार सब के दिल में है ये भाई सावन माह हाई सिउ को प्यार
जो माने सो सो पल पाए सिउ का धान धाने सामान में
सरस्वती मामू से तर जाए एक बार की कथा सुनाओ
सुनिये सजनो ध्याने लगाए दिओ और दैच्योंने मिलकर
सागर मंधन लिया कराए नागवस की रस्ती बन गए
मंदा चल की रही बनाए सागर को लगमतने सारे
चोदा रतन के बाहर आए सागर को लगमतने सारे
उन रतनों में एक रतन जो काले कूट बिस्ट जाना चाए
सागर के बिस्ट बाहर आया तीनों लोग हल चल मच जाए
सिष्टी की रच्छा करने को सिव संकर फिर आके आए
काले कूट बिस्ट की गए सम्भू
कंठ में इसको धार लिया कंठ बढ़ गया नीला सूका
नील कंठ सम्भू कहलाए पिस्पी के सिव के सरीर में
हल चल मच गई बहुत आथा पिस्पी के सिव के सरीर में
सभी देवताओं ने मिलकर सिव को चल से रहनह लाए
सबने सिव पर सर्धा के संग
जल अरपड सिव को है किया आप इसकी अगनी ठंड ही पढ़ गई
सिव की चेतना लोट के आए सावन पावन महिना थाओ
और चिकुर्द सितिती कहाए तब से ही सावन में भगतों
कावड ला जल रहे चलाए और याने को कथा जुड़ी है
कुछ का वर्ण नहीं कराए और याने को कथा जुड़ी है
चार बास मल मास के हाथे जब विशडू को नितर छाए
सिरि नारायण के सोने पर सिरिष्टी को समभू है चलाए
पापों के साहारक है जो हम पावन में पालन करवाए
चार और बारिस की छम छम वातवर्ड सुन्दर हो जाए
कहीं परस्ती भारी भरसा कहीं पूद पड़ मन को लुखाए
चार और हरियाली होती
फुसहाली चमदिस छा जाए चार और फुसहाली होती
मोर पती है तीरे जूमते कोयल खूक रही बनमाए
तीज के जूला सावन माहम
जूले बाग में गोरी चाए सावन
में सद्संग सुने हरी
गिर तन में जो ध्यान लगाए
मुख से हर गुड़कान करे दो
लोक सुखी पर लोक सुभाए
हरी कखा कर सरवड मन से
सावन माह के सब फल पाए
सावन माह है सबसे प्यारा
सब के ही जो मन को भाए
सावन माह है सबसे प्यारा
ना नहीं माझल की बेटी जो पार्बती माता कहलाए करी तपस्या सिव संकर की
तब से सिव को लिये मनाए गोरी से परसन हुए सिव
गोरी गोदी गर्सन जाए सावन माहम ही सिव संकर
और गोरी का हुआ विवाँ इसलिए सावन का महीना
और अधिक मावन कहलाए सावन में जो सोममार को
करे ब्रत सिव ध्यानी लगाए सावन में जो सोममार को
सावन के सीव भेर उठान उत्पेया के भुख आओ सिर ज़नियो
हर सोमवार को जल सिवलिंग पर जो भी चढ़ाए
मल की हर इच्छा पूरी हो
जीवन के सारे सुपपाए
सावन के किस सोमवार को
नन्दी जी जो सेवा पाए
कानम नन्दी जी के बोले
सीधे सिव तक बात उचाए
होई मनोरद पूरे उसके
कानम नन्दी के बदलाए
होई मनोरद पूरे उसके