महराज
सनक सनन्दन सनातन सनत कुमार
वो बालक के रूप में वहाँ पर आये
और जब वो आये न
तो इन्होंने दूर से देखा
और ये देखा कि ये तो छोटे छोटे बच्चे हैं
सब खड़े हो करके प्रणाम करने लगे
लेकिन इन्होंने मन में बिचार किया कि इनकी अवस्था हमारी अवस्था से छोटी है
हमको प्रणाम करना चाहीगी नहीं
माराज वो स्वधा की जो सुता यानि कन्या है
वो तीनों कन्याई बैठी रहे गए
और जब बैठी रहे गए
बैठी रहे गए ना तुमारा जा कर के
सनक्सनन्दन सनातन संत कुमार
उनोंने देखा कि तुम उच्छकुल की
पत्री हो
अच्छे घराने से और इतना
संसकार नहीं है आने के बाद
अब्युथान नहीं कर सकते प्रणाम
नहीं कर सकते, स्राप दे दिया, कहा जाओ, आज के बाद तुम स्वर्ग लोग से इतनी दूर रहोगी, निर्जर में कि कुछ कहने पूरे, अच्छा जब स्राप दे दिया, तुमारा उठ करके, छमा प्रार्थी हो गई, छमा मांगने लगी, और जब छमा मांगने लगी, त�
कहा चंता मत करो, ये स्राप तुमारे लिए वरदान का काम करे, तुम तीन बहने हो, हा, कहा पहले, जो मेना है, इसका बिवाँ होगा, हिमाले जी के साथ, और दूसरे का बिवाँ, कहा दूसरी जो धन्या है, इसका बिवाँ होगा, जनक जी के साथ, और तीसरी जो है, कहा क
कलावती इसका बिवा होगा ब्रिखुभान के साथ होगा क्या क्या की पहली का बिवाह प्रंभड के साथ होगा
हिमांचल के साथ दूसरी का बिवाह छत्रिये के साथ होगा और तीसरी का बिवाह वैश्य के साथ होगा फायदा क्या
होगा इसे कहा जो हिमांचल के साथ जिसका विवाह होगा उसकी कुक्षी में मां पार्वति स्वयं अवतरित हो करके उसको
धन्य करेंगे और दूसरे के परिवार में मां जानकी जन्म लेकर के धन्य करेंगे और तीसरे के परिवार में स्वयं
आधारभूता स्वसक्ति विराजमान स्री राधिका जी अवतरित हो करके उसके कुक्षी को धन्य करेंगे तो माराज जब इन तीनों के विजय में इस प्रकार से बताया कि स्राप बस जब ये लोट करके आई तो धीरे धीरे ये बड़ी होने लगी और जब बड़ी होने लग
आई माराज प्रथम पुत्री का विवाह कर दिया गिरिराज हिमाले के साथ और जब गिरिराज हिमाले के साथ विवाह कर दिया
तो बहुत दिन तक कोई संतान नहीं हुई और जब कोई संतान नहीं हुई तो उसके बाद वो तपस्या करने चले गए
और तपस्या भी सामान्य नहीं कहा चैत्रमासम समारभ्य शप्त विन्सति वस्सराम शिवह संपूज्यामास पार्थिवन्यायतं व्रता
शप्त विन्सति महाराज चैत्रमासम से आरंभ हुई चैत्रमासम समारभ्य और 27 वर्षों तक शप्त विन्सति
7 और 20, 27 वर्षों तक लगातार तपस्या करते रहे तब बृह्माजी का आगमन हुआ बृह्माजी ने कहा वरमाँगू क्या चाहते हो
तो वाह बोल पड़े
कहा माराज हमको जो वरदान चहिए
पहले
कहा सबसे पहले माराज
हमको सो पुत्र चहिए
एक दो नहीं कितने पुत्र चहिए
सो पुत्र चहिए
क्या है
किसली
जनसंख्या नहीं बहुत ज़्यादा
पढ़ जाएगी
जनसिंख्या नहीं पड़ जाए तो हिमाले जी ने बताया कहा महाराज पश्चाताई का तनजा स्वरूप गुणसालनी
बड़ी हमको सव पुत्रों की अभिलास है तो सव पुत्र हो जाएंगे कि क्या होगा हमारा शामराज बढ़ा
है अच्छा करोगे क्या कहाज वह स्वापुत्र हो जाएंगे तब हम अपने पूरे परिवार को पूरे
परिवार का भरण पालन पोषण करेंगे और साथ ही साथ धर्म की रक्षा भी करेंगे कि ब्रह्मा बाबा ने कहा हम बात
समझे नहीं है कि हमको फिर से बताइए का माराज में गिरिराज हिमाले अकेला हूं और नाना प्रकार के आतताई
तैत्य राक्षस आकर के परेशान करते हैं का फिर कहा जब हमारा परिवार बड़ा रहेगा तो लोग हमारे पास आएंगे
देखिए यद्यपि मैं किसी नीत का विरोधी नहीं हूं लेकिन कभी-कभी यह चिंतन जरूर करता हूं
कि मानाज है कि क्या दुनिया के सारे नियम कानूनों को करने का खाली एक ही विशेष समुदाए
के लोगों को अधिकार है और किसी को नहीं जब से पहले हमारे यहां क्या होता था हम दो हमारे होते हैं
हम दो हमारे एक अब धीरे धीरे कहते हैं कि उसकी भी आओ सकता नहीं है
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