दर पे तेरे आ चुका है रियाकार बंदा
मौसिकी से है जुड़ा वो गुनेकार बंदा
तेरी रहमत से अभी तक मौला शायद है महरूम
नजरे करम करते उस पे बने खुश मिजाज बंदा
तू देता है निवाले और में बुला शुकुर करना
किस काम का एरुदबा किर सबीन है मरना
मैं जोड़ता हूँ रूफ खुदा कला को निखारे
कला के सहारे मैंने दिन अपने गुजारे
नफस मेरा चाहता है गुनाओ रैशो इश्रत
शतान पड़ा पीछे चाहता करूँ मैं पगवत
रू मेरी ये बची जो है रहना चाहती भाग
दिल को जोड़ लूँ मैं तुझ से मौला आपे तू संभाल
तू मिलता है क्या उनको जो से तू मैं तुझे ढूंडे
या तू मिल गया है उनको फलस्तीन में जो भूखे
बन जाओं मैं गाजी कर तू खुद को मैं निसार
या फिर करूँ कुछ मैं ऐसा हूँ लोगों के में काम
जीते जीना पूछे हाल और फिर कबरू पे सजावट
आके मार तो तू मुझे जिन्दा रहनी ये लिखावट
दुनिया की इन मैफिलों में हो चुका मस्रूफ
ठीक से यादी नहीं क्या आखिर की कब थी तिलावत
लिबाद साकर पे सबको पहनना है सफेद
तो फिर रंग बरंगे कबरू पे क्यों लगी हुई पैस
मैशर में पता चलेगा कौन कितना नेक
तबी दिल दुखाने से मैं अकसर खरता हूँ परहेज
गिरता सज़िदू मैं बशर अपनी हसरतू के खातिर
गिरता इश्च के खुदा में तो हसरत एहती ना हो दूरी
चले बेश्ट ने नजमें हम तो लवजूं कहे ताजिर
नजमू से उमीदे ये किसान की है खेती
मजब बिला है विरासत में हम नाम के मुसल्मा
काम अपने ऐसे खुद चर्मात है हम से शैता
खुदा के मनसूबे से मिली है शान और शौकत
गर तु सोचे मिला मेहनत से तु ना समझ है इनसा
तु अर्श का मालिक मैं फर्श का फकीर
हर्शिया इस दुनिया में देती है तेरी दलील
दिल को मेरे लग चुकी है मुहर रंजो गम की
पर दे मेरे कलब को नूरे हयाद से तु हर शैब है कादिर हर दिल का हकी
गुना हूँ पे मालिक मेरे डाल देना परदा दुनिया लगी हुई पीछे करना चाहती
मुझे रुस्वा बूला बटका फिर से आ गया हूँ तेरी ही गली में सब तो दे दिया है तुने पर सुकून की कमी है
गमू के रातू में तु आता मुझे याद फिर से बूल जाता तुझे डलते जब ये काले साए
तु है वाहिते की जात जो है सबसे बेनियाज हम गुलामू को तो सारी उम्रे फिकरे ही सताए
इस दुनिया में तो खुदा अब मिलता नहीं इनसाफ मैंने भी है तबी दुख अपने खुदा तुझे सुनाए
चुपाऊँ क्या में तुझज से तू दिलू को पढ़ लेता है अपने बिगड़े हुए बंदू की भी लाइस रख लेता है
जिसको चाहे उसको खुदा खार कर देता है उड़ तु जिसको चाहे मौला उसके राज रख लेता है
तेरे सिवा मेरे खुदा कोई यारी के नहीं लाइक
जिसकी तु हो बस मुहबत बनू मैं भी ऐसा शायर
लोगु के इंतानू पे मैं द्यानी नहीं देता
तेरी चोकट पे मैं आके कर देता हूँ सब कुछ जाहिर