सज़ धज़ के बैठी हूँ मैं इतने जार में
बेचैन दिल भी रहा ना करार में
पूजा के ठालिये हैं हाटों में मेरे गीत छेड़ दी हैं इन सासों की तर में
नैनों को मेरे लिजाए राहत छन से दूआ एक बार
पिसिमरोबिया को कभ तक मनाऊं मैं अपनी जिया को
सासों की माला पिसिमरोबिया को कभ तक मनाऊं मैं अपनी जिया को
मैं सद की जाऊं अपने सरण को करते ते रहा एक बार
जहाल मेरा पढ़ा जा रहा है ओ मैं