पलपल का
साथ था
छोटी छोटी बाते थी
हर लम्भा तेरे बिना
जैसे अधूरी राते थी
अब की जो बिछड गए
सब कुछ ही अझा हुआ
जो रिष्ता सदियों का था
इक पल में ही कुर्मा हुआ
सदिया लगी जिसे बनाने में
इक पल भी ना लगा इसे मिटाने में
सदिया लगी जिसे बनाने में
इक पल भी ना लगा इसे मिटाने में
प्राजाव की पस
एक लकीर बनके धुन्द ला गए तुम
तस्वेर बनके
रफता रफता रासते भी खो गए पल खुशी के कहीं जाके सो गए
अब तुम जो भिछर गए सब कुछ ही अंजा हुआ
जो रिष्टा सदियों का था पल भर में ही कुर्बा हुआ
सदिया लगी जिसे बनाने में इक पल भी ना लगा इसे मिटाने में
सदिया लगी जिसे बनाने में
इक पल भी ना लगा इसे मिटाने में
एक पल भी ना लगा इसे मिटाने में
एरा नरा आख्या