जीवन कर लेता है पुष्टिंगा
गुण्गों से यूँ गुण्गों से
वा बन्धन में बन जाता है प्याँ
गुण्गों से यूँ गुण्गों से
नाजुक शीशे सा था जीवन का दर्पा
बल्कि से एक ढोगल और डूटा बन्ध
गुण्गों से यूँ गुण्गों से
रूठा जीवन का एशिका
क्यों हमसे क्यों हमसे
रूठा जीवन का एशिका
क्यों हमसे क्यों हमसे
इसमें है किसका क्या कसूम किसकी खताएं है ओ एक दूझे को क्यों मिल रही फिर ये सजाएं है
नाजुक शीशे सा था जीवन का दर्पां अल किसे कठोकर और टूटा बंध
हुआ है