जगत जाल के मन से जगड मिटा दो
गाये भूमिर जीवन को जीवन बना दो
जगत जाल के मन से जगड मिटा दो
कहां तुमको ढूंढूं, कहां तुमको पाऊँ
कहां तुमको ढूंढूं, कहां तुमको पाऊँ
अपे ना तुम मिलने का पता तो बता दो
प्रपुना तुम मिलने का पता तो बता दो
प्रपुना तुम मिलने का पता तो बता दो
अब मेरे जीवन को जीवन बना दो जगत जाल से मन के झगड़े मिठा दो तो उदर से उत्तर आया क्या नहीं ढूंढने की हमें है जरूरत भकत अपने मने को
न्यीर्मुँ हुआ लो क्या कह रहा है भगवान क्या कह रहा है जो को निर्मलमन जनसो मोहिपावा कि म्युक्त किए
नगावा जिनके कपट धम्भण नहीं माया इनके देह शौला इश्लाह निर्मलमन कवीर मन निर्मल भाया
निर्मल्मन
निर्मल्भाया निर्मल्मन
जैसे गंगांयां दिन पांचे पांचे हरी में यह कहते कि कबीर कबीर निर्मल मन लोगों का खान-पान भी निर्मल
नहीं है भर भी निर्मल नहीं है कपड़े निर्मल नहीं है वाइटिशल निर्मल नहीं है जिंदगी निर्मल कैसे हो
खाने बैठते हैं तो मुर्गा खा रहे हैं बक्रा मुर्गा गदहा कुट्टा विल्ली चूहा सब कुछ भोग लग रहा
था इतना आलू गोइया तो रही टमाटर सब है उसको ना खर करके मेढ़क कहां उबालत खाते हैं और पतिनीश गहा थे तड़ी
नुषद डर दिव लुटे डक्कह टांग मेह स्काला है अरे पागल खाना अंकुर भगई सौं मांवा मांस भेखे से
स्वान जिव बद काल होगा सद्धत पर माँा है कि जिवदायय ओर यातम पूजा अभी कभी धर्म नहीं दूंढा जी व दयाओर यातम पूजा
कभी
जीवों पर दया करो आत्मा की पूजा करो कि यही सबसे बड़ा धर्म धृद्धि शमादमों अस्तेयम सौंचम इद्री निग्रहा
धीविद्या सत्य मक्रोधों दस्कम धर्म लक्षण दस धर्म के लक्षण मुख्य रूप से बताए गए कि अश्टावक्रमुनी कहते
है पूर्ण आये पाप आये पर इसमें धर्म क्या है पुन्णी करना और दूसरों को पीड़ा देना पाप है परहित शरीर
शतार मदन ही भाई पर पीला समझ नहीं एक एक बार ही सदीश धर्म नहीं पाई पड़नी अज 63 नहीं आपको
प्रोपकाराय शताम भी होता है ब्रच्च कब हुनाई फल भखाई नदी न संचैनीर परमार्थ के कारणे साधुन धरा सरीर
शंत का सरीर परमार्थ की लिख होता है आज यह संतों के कारण ही मैं यहां आया यह सुशील साहब राम चंद्र
मिश्री साहब प्रेम चंद साहब रूपिसा है और और बाकि चाहिए नाम नहीं बालूं है कोई बुरा मत मानना कभी
ना कभी नाम तो बोलूंगा नाम लिखकर नहीं आए है छमा कीजिए कल तुम को बुलाएंगे कल माला भी मंगालो साहब
इनको सब्सक्राइब
माला पहना आए ठीक है अब अच्छा भी तैयार रखो अब पुराना खजाना निकलना चाहिए हां आपको साहब बोलेंगे कि
सब कुछ खर्च कराइक तब ही जुड़ी है जैसे खोदे हैं इसे हमको भटकई है खूब नहीं नहीं दान देने से घटने
लगता है कल सब शंतों को दच्छणा मैं भी दूंगा साहब भी देंगे अपने आश्रम की ओर से और जिसकी स्रद्धा होगी वह
देगा साहब लोगों के लिए काफी खजाना खोलने वाला हूं कल पर पांच 500 रुपए सबको हमारे आश्रम की ओर से यह
संचालक खड़े हैं आश्रम के यहीं देंगे हम कवड़ी नहीं देंगे इनके पास बहुत खजाना है यहां से यह ज्यादा
है रुपया सब भरे रहा है अब कल निकालिए तब रोई है यहीं हां रोएंगे नहीं उनसे मैंने कहा कि आप आइए यहां
बोले जैसे आग्या तब निकालिए फिर नाइपाल चलो गए बोले जैसे आग्या वहां चलते हैं तब निकालिए आश्रम का बोले
हमको फिकर नहीं हमको आदेशक पालन करना कि कल शंतों को पांच-पांच रुपये दक्षिणा कवीर धाम लखीमपुर खीरी
पूर्श से प्रदान की जाएगी सभी शंतों को और सुशील साहब वह हमसे कम थोड़े हमसे ज्यादा देंगे कुछ नहीं
नहीं आप तो आपका साहब जो दोगे वह 500 भी आपका ही है आप अपनी शृद्धा से देना हमारा आपका कोई कंपटीशन
नहीं है क्योंकि आपकी बात अलग-मेरी अलग है हम संतों का सम्मान करेंगे क्योंकि इतने संतों का दर्शन
बारा बंग की पहली बार एक सब्सक्राइब को हुआ है फर्स्ट बार एक साथ है
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