रादा ये कृष्मकु, कृष्मकु नहीं रादा ये
तो मेरे वेहन भाईयों
एक समय की बात थी
महराज भीष्मकु
उनके पाँच पुत्र
लेकिन कोई कन्या नहीं थी
तो महराज भीष्मकु मने मने बड़ी चिंता हुई
कि बिना कन्या के तो
गरस्त धर्म पूरा नहीं होता
ये कहा गया हाया
गरस्ती के घर में चाएं
बालक हो जायें टस बेटा हो जायें
पर जब तक प्यारे एक गन्या दान गरस्ती अपने जीवन में
नहीं लेता समय लो उसने कोई बढ़ा यक्य नहीं किया
कन्यादान को महायक्य कहा गया है
महादान कहा गया है
लेकिन माराय बीश्मक बड़े धार्मित थे
भगवान में उनकी बड़ी आस्ता थी
एक बार घूंपने किले गिले निकले
तो उनको सरोवन में कमल के फूल पर
एक नन्नी सी बाल का चोटी सी रूप में
उनको दिखाई बड़ी हुई
और वोई कन्या बड़ी हुई उसका नाँ हुआ रुकमनी
यही रुकमनी
जब भगवान नर्यन को प्राप्त हुई
तो प्रगट हुई समुदर से
समुदर मंथन के समय
और यही रुकमनी
जब भगवान नर्यन को त्रेता में प्राप्त हुई
तो प्रगट हुई प्रत्वी से
और वही रुकमनी जब नर्यन किष्ण मने
तो प्रगट हुई कमल के फूल से
कहने का मतावे मेरे बहन भाईयो जो जग की मा है
उसको अपना मा वनाईगी
जग की मा है मातरोग मनी अब तो एक बार नारेची कुंडलपूर में आये
और कुंडलपूर में आकर के
कुछ धरम उपनेश कर रहे थे
और भगवान स्री कृष्ण के विशे में चर्चा होई
और रुकमनी में भगवान कृष्ण की चर्चाओं को सुना
तो मन में ये अपना विश्वास कर लिया गाट वाला अब
मैं जब बड़ी होगी तो अपना जीवन साती चुरूगी स्री क
चेहाई है
अब हम बारबार जरमद्दुरे चक्र में नहीं पड़ना चाहते हैं
हम वस्परहुँ को पाणा चाहते हैं
तो विक्ष्मती माता बड़ि प्रश्नम होनी
इतर क्या हुआ कि उनकी साधी जो थेना
उनके भाई करना चाहते सुश्वाल के साथ में
लेकर रुकमणे जानती हैं ये तो मौत के मुँझे जाने वाला है
और मैं ऐसे अपने गोविन्द के लावा अप किसी को शुष्टार नहीं बरोगूं।
ब्राहमन के हाथ पर का भेजी
और उसमें साप्त मंत्र लिखे हुए थी
कि जब से प्रभू आपके तिप्पी गोडों के विष्टा में मैंने सुनानार
चीक के द्वारा तब से आपको दिल से मेरे अपना पत्ती माना हैं।
प्रभू मेरे भाई मेरी साधि सुस्पाल के साथ करना चाँते हैं लेकिन मैं तुमसे
प्रात्ना करती हूँ कि प्रभू आप आना कुनलपुर और मुझे यहां से लेके जाना।
कहते हैं ना प्यारे यह साधी होती है ना किर्णिया
की अबर की तो सबसे पहले उसे मंदर में लेके जाते हैं
मंदर में उसे भगवान के साँने प्रणाम कराते
हैं कि भगवान मेरी साधी में कोई दोश नहाई।
मेरे बैवायक जीवन में कोई कष्णा हो तो ठाकुर जी का
आशिरवाद ले करके अपने बुजरों का आशिरवाद ले के जाते हैं।
इतना जम सुना
और भगवान श्याम सुदर
आज आते हैं कुनलपुर।
इदर रोकमणी के भाईयोंने सिशपालो को भी निमिटन दिया
है साधी के लिए वो भी अपनी बरात ले की आ रहे हैं।
इदर ब्रहमन पत्रका ले के पहुंचा है दुआर काधिश के पास और
भगवान दुार काधिश देविचार की एक लुकमणी मुझे पाना चाहती है।
तो चलो हम चलते हैं। रास्ते में मिल गए बलराम
जी। बलराम जी बोले काहां जा रहे हो ऐया।
हमारी मन मन नहीं है।
आखिली वोते हैं। इदर प्यारे आज वो ठाकुर्जी वहाँ जाते हैं।
यहाँ माता भगवती का मंदर था और माता रुकमनी वहाँ पूया कर रही थी।
और जैसे भगवान में कुंडलपूर के मंदर में प्रभीश किया,
सारे पहरेदार भगवान को देख भी रहें।
क्या बात है प्यारे यहाँ।
जब लेकिन जाते हैं उधर उनके भाई भी पिछे दोड़ने लगें।
लेकिन भगवान में उसको भी ढंग से सबग सकाया।
और धूमधाम से पिर भगवान के शादी हुई है।
जो आज आपलोग कथा के माध्यम से माता रुकमनी
और भगवानकृष्ट अर्थात लक्ष्मी और नारायन।
उनका रुकमनी कृष्ट के रूप में दर्शर कर रहे हैं।
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