रुत भी गेतन घराई थी
पलके मुन्दे वापस हो जाएगी
दे तो दे गई
इक लमहे में लिप्टी सिंदगे
शाखों पे जब पत चेड़ था
पेड़ों तले सुनेरे पत थे
गीली जमीपे हरे लच्छे थे
मौसम के ये दो चहले
घेले आख मिचोले
यहाँ,
यहाँ, यहाँ
जब पत चेड़ थी
पलके मुन्दे वापस हो जाएगी
जो गई तो दे गई
एक लमहे में लिप्टी सिंदगे
हैं
जो अंधिर मुर जाती है,
जो महफूज है पहलों में लीलों निचोड के वो पल यहाँ,
यहाँ, यहाँ
जो गई तो दे गई
एक लमहे में
लिप्टी सिंदगे हैं