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Ram Katha By Morari Bapu Mulund, Vol. 25, Pt. 2

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Lời bài hát: Ram Katha By Morari Bapu Mulund, Vol. 25, Pt. 2

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पादुका ने पुजा करवा माते सरिव जल लएं जाए,
पादुका ने पुजा करे,
बाप जी ने पुजा करे,
अधिकारियों ने अधिकार ने फरजो समजावे,
मा कवसल्या नि पासे बएसी आवे,
अने पछी नंदी गराम आवी अखन्ड जप करे,
शरीर ने टकावा माटे थोड़ा फरज के यू के लई ले छे,
परिणामे शरीर पर असर थई,
मानस कारे लखयू,
दइख दिन ही दिन दूबरी होई,
दिवसे दिवसे दइख दूबरी थवा लगी,
शरीर भरज जी नी काया कशन थवा लगी,
मुख नु तेज वधवा लगी,
आतम शक्ती जवरधसत,
मुचाय पमचवा लगी,
समसार ना सुखो भरज जी माते उलटी थयी गया,
जम चमपा ना बगीचा मा बहमरा निललेप बनि जाए,
कदि चमपा ना पुष्पो पर बहसे नही,
एम योध्या नी समरुद्धी मा,
बरत जी चमपा ना बाग ना भहमरा नी जएम,
निसंग ने निललेप बनि गया,
सेही पूर बसत बरत भीलो रादा,
चंचर हीक जीमी चमपक बागा,
बिल्कुल आसंग बनि गया,
बरत जी योध्या मा वेहवार करे छे,
पण बरत जी नी पकड कई रितनी छे,
जम बिलारी उन्दर ने पन पकडे,
अने यना बच्चाओ ने पकडे,
बने पकड मा जमीन आसमान मु अंतर,
बिलारी उन्दर ने पकडे,
त्यारे भोग छे,
शिकार छे,
पता ना बच्चा ने पकडे,
त्यारे एमा पकड नथी,
भोग नथी,
वैसे शरी भरत जी ने संसार ने रहकर,
ऐसा निर्ण दिया जगत को,
कि संसार से भाग कर कहा जाओगे,
ऐसे रहो,
रामायन मा एम लक्षू छे,
भरत जी नु तप जोए,
मोटा-मोटा तपसवी यो नीचु जोए जाये,
भरत जी नु त्याग जोए ने,
मोटा-मोटा महतमाओ,
संकोच अनु भवेच आवु अद्भूत,
सवरूप शरी भरत जी नु,
त्याग, परेव, सनेख,
या बदानु जाने,
एक रूप ओय भरत जी यववु लाए,
शरीर सुकाएछ,
महतमाओ कहएछ,
रोज मा कवसल्या पांसे,
आविन बएसे,
मा कवसल्या जी,
मथाओपर आथ फेरवे,
कयि पूछे,
बरत जी जवाव आपे,
बरत जी मा ने पूछे,
मा तू जमई,
ओगनद आपेश,
रा ने चखवड आवेश,
जमाड आपेश,
बरत जी ना शरीर उपर मा आथ फेरवे,
बरत जी ना शरीर मा हढडकाओ देखावा माढडा छे,
जओई जओई न कूप रणि पडर,
कायसे अवधी बीते गी,
आम आयोध्या ने सथिपी चे,
राम विरह मा,
महतमाओ काये छे, आयोध्या मा बे टुकडि पडि गएली,
एक राम मंडल, बिजु भरत मंडल,
बे भाग मा आयोध्या महतमा,
इन वरत कोई सपरधा ना ओतो करतु,
अथवा तो, कोई ने, एक पला,
पण अमुक लोको ना इश्ट भरत जी बनि गय,
अमुक ना इश्ट राम जी,
राम मंडल ना लोको,
अणे भरत मंडल ना लोको,
परजा करता था,
राम मंडल ना लोको एम कहे,
के राम लक्षमण सिता जी,
किटलो त्याग करि,
जङगल मा निवास करे,
भरत भवन बसि तप तन कसही,
भरत जी घरए रहेन तप करए जे,
पचि बणने मंडल एत थही जता था,
के ठीक है,
अम को इस परजा करवा जी उलाग तो नथी,
केम, बाबा जी लिखते है,
दो दीसी समू जी,
इस तरप, उस तरप, बणने बाजुने,
दो दीसी समू जी,
कहत सब लोगु,
सब बीधी भरत सराहण जोगु।
मन्ने पक्षनों निरणे करी,
लोगो सरवानु मति निरणे आपे छे,
नही, बले राम, वणमा होई,
बाकि एक वसतु कयवि परछे,
बरत जी दरएक रिते सराहण आने योग्य।
इशवर नी सरच्टी मा गुण दोष होई छे,
एम बरमा नो करम छे,
कोयपन वयक्ती मा एतलास सदगुण अथ नथी ओता,
एमा एकाप दुरगुण तो होई निकडे,
कोयपन वयक्ती मा परिपन दुरगुण पन नथी ओता,
एमा एक बे सदगुण ओतो केंक दबायला पढया से,
बरममा नी सुरष्टी गुण दोष मई छे,
पर बरममा नी गुण दोष मई सुरष्टी मा,
एक अपवात छे युगा अम,
अने ते शरी भरत जी,
एक पण दोष नथी,
सब भीदी भरत सरहम,
मनदेश्वरो जुवे,
तो मनदेश्वरो ने एम लागे,
भरत मारा आचारिय से,
भरत मा पुर्ण ब्रमचारी ना दर्शन था,
समाज मा अपने नथी जुवे,
गणा तस्वीरो एभी होई,
गणा फ्ओटाओ एवा होै,
जे बाजु थी जुव, आपडी सामे जुव तो ओयू ना,
गणा मूर्ती एभी ओयू,
कोई भी कौने से अम देखे,
मूर्ती हमारे सामने देख रही,
परत हमारे,
रहमायन मा संत ना गुणो माते जटलू लखयू,
एक एक चवपाय भरत जी ना लगू खडा,
सब के परिय सब के हित काय,
दुख सुख सरिस परसमस गारी,
सब हमान परदापू अमानी,
शत विकार जित अनग अपां अकामा,
परम अकिंचन सुची सुख धामा,
परगुण सुनत अधिक हरशाही,
एक एक सद्गूम,
एक एक वात शरी भरत जी न लागू पड़े,
अदभूत तप करे,
आम, चवद वरसनो वियोग,
सहन करवा माटे,
नंधि ग्राम ने कुटिया मा निवास करेओ,
अने बिजा आरथमा लईये,
तो रामराज्य आवी रित्यायो से,
कुटिया मा रहिने,
महल मा रहिने,
वहरज्य रहा,
कुटिया मा,
अने शासन चलायो से,
आवी रित्य रामराज्य,
भारत मा,
वह बैर करकाहु सन कोई,
येवजे रामराज्य ने,
आपने मा ज़िना,
बैर करकाहु सन कोई,
येवजे रामराज्य ने,
आवी रित्य रामराज्य,
भारत मा,
वह बैर करकाहु सन कोई,
येवजे रामराज्य ने,
आपने मा जिना,
युगो थि,
रामराज्य आरिपे आयो,
कयोध्या विरह मा,
आमनम् दूवी से,
अवे तुलसिदाज्य,
आपताना भाव पुश्पोर पन करता,
कयोध्या पांडनी समाप्ति मा,
उपसंहार करता,
हरी गीत छंद लखे,
दुखदाँ दारिद,
दंभदूशन,
सुयसमिस अपवरत,
कलिकाल तुलसिस सथन,
अथिराम सनमुख करत,
सियराम प्रेम प्यूस,
पूरन होत,
जनमन भरात को,
मुनिमन यगम,
यमनियम समदम,
विशाम ब्रत आचरत को,
सियराम प्रेम प्यूस,
पूरन होत,
जनमन भरात को,
श्री भरत जी नो जनम भरत मा न थे,
होत गुस्मामी जी कहे,
जनम मुनीयोंना मनने अगम,
एवा साईयम, नियम कौन पालि बताओ?
दूक,
वेदना यनिदा,
दारिद्र्य,
अने दंभना परदाने,
चिरी अने साचो,
प्रेम सु कहाई,
साची भक्ति सु कहाई,
ये दुनियाने कौन बताओ?
अने तुलसी कहाई,
विजु तो जे थवू होते थात,
परन्तु भरत जीनो जनम न थयो होत,
तो आ कठीन कल यूग मा,
मारा जेवा शथने,
रामनी सनमुख कौन ले जाते?
गोस्वामी जी अपने आपको,
कलिकाल तुलसी से सथन,
अथिराम सनमुख करत को,
बरत महराज तो हमारे आचारी हैं,
गोस्वामी जी कहते,
आम श्री भरत जीनी वंदना करता,
भरत जी, तुलसी जी छले लखे जे,
बरत चरित करिने,
मु तुलसी चे,
आदर सुनही,
राम पदु प्रेम,
अवसी होही भवरस बिरती,
बरत जी नु आदिव्य चरित्र,
प्रेम चरित्र,
अने बरत नु नियम,
अनु तप,
आ कथाने जी सादर सामल शे,
गोस्वामी जी कहे,
अने सिताराम जी ना चरण मा प्रेम उत्पन था,
पालकांड नु फल सुक,
अयुध्याकांड नु फल प्रेम,

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