प्रेमी सज्ञों
महत्वूर है
कि हमने कैसा जीवन जिया,
क्या परंपराई,
क्या आधर्श इस्तापित किये
आधर्शनगर अयोज्ञा में आज मंगल गीत गाय जा रहे हैं
चारो तरफ खुशिया ही खुशिया और इत्र की महकार है
लेकिन होनी को कुछ और ही मनजूर है
राजा दसरत दोरा राणी केकई को दिये दो वचनों ने
एक साथ हजारों दीपों को एक ही पूंख में उज़ाकर
महल में गोर अंधेरा कर दिया
सज्ञों,
पहले वचन में भरत को राजगधी
और दूसरे वचन में राम को 14 वर्स का वन्वास माँग लिया राणी की केंने
राजा दसरत पर बज्ज़र सा प्रहार हुया और
अपना हरा बरा बांग उज़ड़ता प्रतिद हुया
और राणी केके इसे क्या कहने लगे आईए सुनते हैं इस राघनी के माध्यम से
लेकिन मत वन्वास राम को दिलवावे मर जानी
लेकिन मत वन्वास राम को दिलवावे मर जानी
लेकिन मत वन्वास राम को दिलवावे मर जानी
ओ बिनाराम के खुद कह दे किस तरिया सबर करूँगा
उस दुखने मैं ही जानूँ जो के कई रोज भाडूँगा
ओ परजाबूर बतावेगी जब मन में आप दरूँगा
जब उजड़ेगी न जदानी
लेकिन मत वन्वास राम को
पटट पटट सर नागा मर ले जिसकी मानी पिछड़ जा
कद सीत कद लच्छिवन रोए सारा काम
भिगड़ जा
कौन से मुह से कह दूँगा इस घटे राम लिकड़ जा
कौन से मुह से कह दूँगा इस घटे राम लिकड़ जा
ओ राम चंड़ का खोड़ बता मेरे हो विश्वास चला जा
आज कह कल रोएगी चर्णों का दाच चला जा
ओ कैसे है माँबाप सोच सा
बेतेन होएगा
लाज महल का सोवनिया कैसे जंगल में सोवेगा
गुरुशरनदास के चरण जैकरण मनमल के दोवेगा
तो होईगा वो तरज सभामे
जो सबको लग सुहानी
लेकिन मतवन वासराम को दिलवावे मर जानी
लेकिन मतवन वासराम को दिलवावे मर जानी