Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650
एक नश्टर से टपकती है रात
सो रहा है एक मल्क पुरा
देखते हुए अधुरे खाब आजादी के
किसी मुठी में तो अंगारे से भी च्छाला नहीं पड़ता है
मगर मैं बर्फ चूता हूँ
तो मेरे हाथ चलते है
रखी को
वो हीर ही क्या जो मास के चमड़ों में मिले
वो इश्ख ही क्या जो शूनने में ना मिले
हम तो वस सूखे हुए फूलों को चुनते हैं
कौन है ये जो हीर को मट्टी का बताता है
कौन है ये जिसके जिसम का सारा खून
उसकी आँखों में सिमटाया है
कौन है ये जिसके दिल में दैखते हैं शोले
सोचते हैं वही एक बात
के हीर की गर्दन से उतार दिये
सोने के सेवर किसी ने
वो जिनको रंग, खुश्बू, फूल, बच्चे कुछ नहीं बाता
हमारे गिर्द ऐसे भी अधुवे लोग रहते हैं
जाने कैसा मौसम आया है, हर जगा वसंती वसंत
फूल, हवा, मकान, इनसा, हर जगा वसंती वसंत
वो जमी पर बहती नदी, जो आकाश गंगा सी भाहा करती थी
आज लाल है
जाने कैसा मौसम आया है, हर जगा वसंती वसंत
मगर कौन है ही, जो हाथ में सफेद भूर लिये
उस नदी की लाश को सजाता है
रभी को
रभी को हम तो बस सूखे हुए फूलों को चुटते हैं
क्योंकि अगली फसले गुल के बीच उनहीं के पास होते हैं
वो माई जिनके आचल को चीरती हुए गुजरी है बोली
पूछो कैसे ढखती है बच्चे आजकर
दुफान हुए
निहत्थों पर वार बनाए जो नवा
वो कायर ही तो है
बाग से कर दे जो भूल खफा
वो डायर ही तो है
रभी को रभी को रभी को
वो मुल्क जो आजाद है आज ठूँडते हैं बीडिया नहीं
बढवारों का सिल्सिला शुरू हुआ ऐसा जो धमा नहीं
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