रचा है श्रिष्टी
को जिस प्रभू ने
वहीं ये सिश्टी चला रहे हैं
जो पेड़ हमने लगाया पहले
उसी का फल हम अब पा रहे हैं
रचा है श्रिष्टी को जिस प्रभू ने
वहीं ये सिश्टी चला रहे हैं
जो पेड़ हमने लगाया पहले उसी का फल हम अब पा रहे हैं
रचा है श्रिष्टी को जिस प्रभू ने वहीं ये सिश्टी चला रहे हैं
इसी धरा से शरीर पाए
इसी धरा में फिर सब समाए
है सत्य नीज से यही धरा का
है शात नीज से यही धरा का
इक आ रहे हैं इक जा रहे हैं
जच्चा है श्रीष्टी को जिस प्रभूने वहीं ये स्रीष्टी शला रहे
और क्या?
जिन्हों ने भेजा जगत में जाना
तै कर दिया लोट के फिर से आना
जिन्हों ने भेजा जगत में जाना तै कर दिया लोट के फिर से आना
जो भेजने वाले हैं यहाँपर वहीं फिर वापस बुला रहे हैं
कौन कआस है अत्मां अतमान वो चाली से?
हीला ति जो वो पहूँ कुछACHAN भाशि हो wszystkो तो
हऋ चश्य आयावर ति वहाई जला रहे हैं
बहते हैं जो
बैठे हैं जो धान की बालियों में
जिन्दी की लालियों में
बैठे हैं बैठे हैं
बैठे हैं
बैठे हैं जो धान की बालियों में
शमाय मेहन्दी की लालियों में
हर डाल हर पते में समाकर हर डाल हर
पते में समाकर
पते में अच्छा है श्रीश्टी जो पेड हम ने
लगाया पहले
रच्चा है स्रिष्टि को जिस प्रभूने वहीं ये स्रिष्टि शना रहे हैं
ये स्रिष्टि शना रहे हैं