सतीर्थराजो जयति प्रयागा नमामि गंगे तवपाद पंकजम हरहार गंगे जय हो तीर्थराज प्रयाग की जय हो
हुई है
छलुकूम्भ चले छलुकूम्भ चले छलु कूम्भ चले महाकूम्भ चले छलुकूम्भ चले छलुकूम्भ चले छलुकूम्भ चले महकूम्भ
चले छलुकूम्भ चले महाकूम्भ चले जनमु जनमों के पुढ़िक कठले छलुकूम्भ चले छलुकूम्भ
चलो कुम्ब चले, चलो कुम्ब चले, महा कुम्ब चले
चलो कुम्ब चले, चलो कुम्ब चले, महा कुम्ब चले
एकुम्ब सनातन की महिमा, जहां ज्ञान की गंगा बहती है
भकती का संगम होता है, संतों की नगरी
सजती है, होता है अमृत योग यहां
मुकती का भी सैंयोग यहां, मिल जाते यहां नारायण भी
मिल जाते यहां नारायण भी, जब अंतर मन के पाप दुले
चलो कुम्ब चले, चलो कुम्ब चले, चलो कुम्ब चले
महा कुम्ब चले जनमों जनमों के पुड़िय खिले
यहां राम कृष्ण भी आते हैं संग देवों को भी लाते हैं
महा देवों की दूनी लगती है भक्ती में सब रम जाते हैं
होता है पावन में संगम सब देव तभी
गाते मंगल मिल जाते अगर नारायड भी
मिल जाते हैं नारायड भी ऐसा भक्ती का रंग चड़े
चल कुम्ब चले चल कुम्ब चले चल कुम्ब चले महा कुम्ब चले
चल पुंब चले चल कुम्ब चले चल कुम्ब चले महा कुम्ब चले
चलो कुम्ब चले महा कुम्ब चले जनमो जनमो के पुड़े किले
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